जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। राष्ट्रीय एकात्मता के लिए पूरे देश में एक समान लिपि होने की बात आचार्य विनोबा भावे से लेकर महात्मां गांधी तक ने कही है। एक समान लिपि होगी तो उससे बहुत सुविधा होगी। राष्ट्रीय एकात्मता का अर्थ है कि हमारे अंदर भाषा के आधार पर भी राष्ट्रीय आत्मगौरव का भाव उत्पन्न हो। हिंदी और देवनागिरी दोनों यह भाव उत्पन्न में समर्थ और सशक्त हैं। हिंदी भारत को एक बड़े परिवार के रूप में देखती है। जहां कई अन्य भाषाएं हैं। लेकिन भाषायी विभिन्नता के बावजूद हिंदी सर्वश्रेष्ठ है।
यह बात रादुविवि कुलपति प्रो.कपिल देव मिश्र ने कही। अवसर था रादुविवि के हिंदी व भाषा विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के समापन का। यह आयोजन हिंदी वर्तमान और भविष्य विषय पर आयोजित किया गया। संयोजक व विभागाध्यक्ष प्रो. धीरेंद्र पाठक ने कहा कि संचार क्रांति और विज्ञापन संस्कृति का हिंदी के प्रचार-प्रसार में खासा योगदान है। देश के हर नागरिक को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि हम चाहे कितनी भी भाषाएं सीखें लेकिन हमें हिंदी पढ़ना-लिखना और बोलना अवश्य आना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विवि के कुलपति प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि नई शिक्षा नीति युवाआओ की आशा- आकांक्षाओं और भविष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। जिसमें में हिंदी को महत्वपूर्ण भूमिका के तौर पर शामिल किया गया है। कई देशों ें में हिंदी को पाठ्यक्रम में जोड़ने पर मुहिम चल रही है। मुख्य वक्ता हिंदी यूनिवर्सिटी फाउंडेशन नीदरलैंड की निर्देशक डा. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि करीब 20 दशकों से हिंदी का प्रसार तेजी से हुआ है। फिर भी अभी काफी कुछ किया जाना शेष है।
वेबिनार में विशिष्ट वक्ता अध्यक्ष हिंदी विभाग रातुम नागपुर विवि से प्रो. मनोज कुमार पांडे ने कहा कि यदि हम वर्तमान में हर स्थिति को ध्यान में रखकर सोचेंगे कि कुछ सामाधान मिलेंगे।
यदि हिंदी रोजगार की भाषा बन जाए तो इस विषय में चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। विशिष्ट वक्ता डा. हरिसिंह गौर विवि सागर प्रो. लक्ष्मी पांडे ने कहा कि हिंदी की दुर्दशा के लिए शिक्षा पद्धति और शासन व्यवस्था दोनों जिम्मेदार हैंं। भारत विद्या विभाग सोफिया यूनिवर्सिटी बुलगारिया से डा. मोना कौशकि ने भी अपनी बात रखी। संचालन डा. नीलम दुबे ने किया।