सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। ओशो संन्यास अमृतधाम, देवताल में इस वर्ष की होली में उत्सव आमार जाति-आनंद आमार गोत्र का संदेश साकार हुआ। पिछले दो सालों से कोरोना की वजह से इस होली का रूप सीमित हो गया था। लेकिन इस वर्ष ओशो संन्यासी भरपूर मस्ती के साथ होली मनाते नजर आए। ध्यान की गहराई में डूबने के बाद सद्गुरू ओशो के मूल संदेश उत्सव के महासागर में गोते लगाने में मशगूल हो गए। एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। अपनी ऊर्जा से कल्याण का भाव विकीर्ण किया।
संबोधि दिवस: ओशो संन्यास अमृतधाम, देवताल जबलपुर में इस वर्ष की होली में उत्सव आमार जाति-आनंद आमार गोत्र का संदेश साकार हुआ।#OSHO #Jabalpur #MPNews pic.twitter.com/3zVdl8PVLR
— NaiDunia (@Nai_Dunia) March 19, 2022
छत्तीसगढ़, गुजरात व उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों से जबलपुर आए ओशो संन्यासियों ने जीवन को उत्सव की तरह लेकर सुबह मेडिटेशन किया इसके बाद उत्सव में डूब गए। उनका कहना था कि इससे पूर्व ऐसी होली कभी नहीं खेली। ऐसा लगा मानो जन्नत में आ गए हैं। छत्तीसगढ़ से आए प्रेम चैतन्य ने बताया कि वे अपने गांव में जो होली मनाते अए हैं, वह परंपरागत रही है लेकिन इस बार परंपरा से कोसों दूर ओशो प्रणीत मदमस्त होली का आनंद लिया। इस दौरान तन-मन मेें आध्यात्मिक ऊर्जा आपूरित हो गई। गुजरात से आई एक संन्यासिन ने आनंदित भाव से अवगत कराया कि वे बीसवीं सदी के सबसे बड़े क्रांतिदृष्टा की देशना पर आधृत होली मनाकर अतीव आनंदित हुई हैं। इस आश्रम में स्वामी आनंद विजय का मार्गदर्शन मिला। स्वामी अनादि अनंत व स्वामी राजकुमार ने हर कदम पर साथ दिया। इस वजह से ओशो के ध्यान ठीक से कर पाए। ध्यान के साथ इंद्रधनुषी होली ने मन-मंदिर को पावन कर दिया है।
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होली मनाने की वास्तविक तरीका सद्गुरु ओशो सिखा गए थे। उनकी देशना हर पल को आनंद से सराबोर करने से संबंधित रही है। इसीलिए उनके शिष्य प्रतिपल होली मनाते हैं। लेकिन अंदाजा लगा लीजिए कि जब होली का दिन हो तो उनके उत्सव का ग्राफ कितना ऊंचा होता होगा। इसी आधार पर होली मनाई गई। रंग पंचमी तक यह सब निरंतर जारी रहेगा। सभी संन्यासी उत्सव के महासागर में गोते लगाते रहेंगे।इस दौरान आध्यात्मिक गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
-स्वामी अगेह भारती