MP Election 2023: जितेंद्र मोहन रिछारिया, जबलपुर। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने में महाकोशल अंचल का बड़ा योगदान था। यहां कांग्रेस ने 11 सीटों से भाजपा पर बढ़त हासिल की थी। बाद में हुआ ज्योतिरादित्य सिंधिया का विद्रोह इतिहास में दर्ज हो ही गया है।
सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के दम पर प्रदेश में भाजपा की सरकार सत्ता में है। कांग्रेस का पूरा प्रयास है कि मप्र विधानसभा चुनाव में महाकोशल क्षेत्र में बीते चुनाव में बनी बढ़त कायम रखी जाए। वहीं, भाजपा का जोर इस बात पर है कि इस क्षेत्र में अपनी साख वापस प्राप्त की जाए। यह तय है कि यहां की कुल 38 सीटों से ही प्रदेश की सत्ता का खेवैया तय होगा।
राजनीतिक हलकों में कहते हैं कि महाकोशल में जिसने चुनावी बाजी मार ली, वही सत्ता का सिकंदर होता है। अगर कांग्रेस विधायकों का विद्रोह नहीं हुआ होता तो पिछला चुनाव और कांग्रेस की सरकार इसका अच्छा उदाहरण थी। हालांकि इस विद्रोह से महाकोशल की तस्वीर में कोई खास बदलाव नहीं आया।
आज भी महाकोशल की कुल 38 सीटों में से 24 पर कांग्रेस का कब्जा है। भाजपा के हिस्से में 13 सीटें ही आई थीं। भाजपा केवल अपने पुराने गढ़ जबलपुर जिले में ही सबसे अधिक चार सीटों पर काबिज हो पाई थी। जबलपुर जिले की बची चार सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया था।
अंचल की एक सीट पर निर्दलीय प्रदीप जायसवाल ने जीत हासिल की थी। महाकोशल के बदले हालात में भी राजनीतिक पंडित यही मानते हैं कि जो महाकोशल फतह कर लेगा, वही सत्ता संभालेगा। इस अघोषित सिद्धांत से शायद भाजपा भी सहमत है, तभी तो प्रदेश के 34 विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों की पहली सूची में महाकोशल के ही 11 उम्मीदवार शामिल हैं।
कमल नाथ की कर्मभूमि है महाकोशल
महाकोशल के साथ खास बात यह भी है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ की यह कर्मभूमि है। छिंदवाड़ा जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा इसी कारण है। पड़ोस के जिलों तक उनका असर है। सिवनी में चार में से दो, नरसिंहपुर में चार में से तीन और बालाघाट में छह में से तीन सीट पर कांग्रेस जीती थी। कमल नाथ की कोशिश पिछले विधानसभा चुनाव से और अच्छी स्थिति बनाने की है। वहीं भाजपा पिछले चुनाव में लगे झटके से उबरने की कोशिश में है और कमल नाथ को उनके गढ़ में हराने का उसका सपना भी वाजिब है।
महाकोशल के महत्व को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही यहां कोई कमी रखने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस ने तो अपने चुनाव अभियान का आगाज महाकोशल की राजधानी माने जाने वाले जबलपुर से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से इसी कारण करवाया है। पूरे राज्य से कांग्रेस बड़े नेता जुटे थे। भाजपा की ओर से यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग हर हफ्ते आ रहे हैं। हाल ही में उनका बड़ा रोड शो जबलपुर में हुआ और यहीं उन्होंने सु-राज कालोनी योजना का शुभारंभ भी किया।
जब एक-एक सीट का संघर्ष होना है तो महाकोशल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां पिछले चुनाव में भाजपा 11 सीटों से पीछे रही थी। पार्टी इस चुनाव में अपनी कमी को दूर करना चाहती है। कभी जबलपुर भाजपा का गढ़ था लेकिन प्रत्याशी चयन और भितरघात के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। अगर जबलपुर को ही देखें तो यहां एक सीट से धीरज पटेरिया ने विद्रोह कर दिया था, नतीजा भाजपा की हार हुई थी। एक और सीट जबलपुर पश्चिम टिकट के दावेदारों के भितरघात के कारण हाथ से चली गई थी। हालांकि धीरज अब पार्टी में वापस लौट आए हैं और जबलपुर उत्तर सीट से ही दावेदारी जता रहे हैं।
सिवनी के गार्गी शंकर मिश्रा हों या विमला वर्मा, अब तो इन दोनों की यादें ही बाकी हैं लेकिन उनकी सीधी-सपाट प्रभावशाली राजनीति के चर्चे आज भी होते रहते हैं। 1970 के आसपास की बात करें तो कांग्रेस उस जमाने से यहां ताकतवर रही है। यही कारण है कि यहां भाजपा अधिकतम दो सीटें सिवनी या केवलारी से ही जीत पाती है। बाकी दो बरघाट और लखनादौन पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता है। वहीं बालाघाट जिले में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कभी प्रभाव हुआ करता था लेकिन पिछले चुनाव में उसे इस जिले से एक भी भी सीट हीं मिल पाई थी।
महाकोशल के कुल आठ जिलों में वर्तमान स्थिति
जिला कुल सीटें भाजपा कांग्रेस अन्य
जबलपुर 8 4 4 0
कटनी 4 3 1 0
डिंडौरी 2 0 2 0
मंडला 3 1 2 0
बालाघाट 6 2 3 1
सिवनी 4 2 2 0
नरसिंहपुर 4 1 3 0
छिंदवाड़ा 7 0 7 0
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कुल 38 13 24 1