
उज्ज्वल शुक्ला, नईदनिया जबलपुर ( Jabalpur Industry Conclave)। मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास एक ऐसा क्षेत्र रहा, जिसमें सबसे ज्यादा प्रगति देखने को मिली है। प्रदेश में तेजी से औद्योगिक विकास भी हुआ है। हाल के वर्षों में निवेशकों के लिए प्रदेश पहली पसंद बनकर भी उभरा है। अब मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने प्रदेशभर में एक समान औद्योगिक विकास के लिए रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव का फार्मूला बनाया है। पहला रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव उज्जैन में आयोजित हो चुका है। अब दूसरा रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव शनिवार को जबलपुर में आयोजित होने जा रहा है।
प्रदेश सरकार की इतनी कवायद के बाद भी धरातल में निवेश नजर नहीं आता है। प्रदेश सरकार के पास निवेश के प्रस्ताव तो खूब आ रहे हैं, पर प्रस्तावों की तुलना में वास्तविक निवेश कम हो रहा है। पिछली इन्वेस्टर समिट के परिणामों को देंखे तो निवेश के नाम पर नौटंकी ज्यादा नजर आती है।
मध्य प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट राज्य में सबसे पहले वर्ष-2007 में आयोजित की गई थी। तब से लेकर अब तक 7 समिट हो चुकी हैं। पिछले वर्ष महाकाल की नगरी उज्जैन में हुए दो दिवसीय रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव में 10 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्रदेश को प्राप्त हुए थे।
12 देशों से आए उद्यमियों के साथ ही 3700 से अधिक उद्योगपति शामिल हुए थे। इस सम्मेलन के माध्यम से 17 हजार से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध होने की बात भी कही गई थी। इसमें से अधिकांश प्रस्ताव अभी तक कागजों पर ही दौड़ रहे हैं।
ईमानदारी से पिछले सालों में हुई समिट का विश्लेषण किया जाए तो पता चल जाएगा कि वास्तविकता में कितना निवेश प्रदेश में हुआ है। सरकार ने जितना खर्च इन समिट के आयोजनों पर किया गया है, उससे थोड़ा सा ही ज्यादा निवेश प्रदेश को प्राप्त हुआ है।
दो दशक पहले मध्य प्रदेश में निवेश का परिदृश्य बहुत अलग था। प्रदेश में अधोसंरचनात्मक स्थिति खराब होने से औद्योगिक इकाइयां यहां आने में संकोच करती थीं। प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद से, खासतौर से शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में प्रदेश में चरणबद्ध तरीके से विकास हुआ है।
बीमारू राज्य की छवि से बाहर निकलकर मध्य प्रदेश ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। जबलपुर की बात करें तो जबलपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्रों में अब निवेशकों का रुझान बढ़ा है। निवेश के मामले में जबलपुर उद्यमियों के लिए पसंदीदा जगह बनता जा रहा है।
जबलपुर में उद्योगों के लिए जो सुविधाएं हैं, आमतौर पर वे दूसरी जगह कम मिलती हैं। यहां बिजली और पानी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। वहीं सस्ता श्रम और औद्योगिक शांति भी है। जबलपुर के चारों तरफ बन रही 112 किमी लंबी रिंग रोड के किनारे नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जाएंगे। कुल मिलाकर यहां पहले की तुलना में ज्यादा निवेशक आए हैं।
सरकार ने रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव के लिए जबलपुर का चयन भी इसी कारण किया है। इन सबके बावजूद निवेश प्रस्तावों के धरातल पर नहीं उतरने के पीछे हमारा सरकारी तंत्र भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं। दरअसल सरकार ने उद्योगों के लिए कई सुविधाओं की घोषणाएं तो कर दी है, पर अभी पूरी तरह से अमल में नहीं आ पाई है।
उद्योगों के लिए तीन वर्ष तक अनुमति की आवश्यकता नहीं, पोर्टल पर ही अपनी समस्याओं का समाधान और सिंगल विंडो जैसी सुविधाएं व्यवहार में पूरी तरह लागू नहीं हो पाईं। एक के बाद एक कई ‘विंडो’ से गुजरने के बाद ही उद्योगपति लक्षित स्थल तक पहुंच पाते हैं।
जब तक उद्योगों के लिए नीतियों को अधिक सुलभ और कारगर नहीं बनाया जाएगा, तब तक निवेशक प्रदेश में निवेश करने से कतराते रहेंगे, इसलिए अब हमें आवश्यकता है कि उद्योगों के लिए ऐसी नीतियां बनाई जाएं जो निवेशकों को आकर्षित कर सकें। सरकारी तंत्र को और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए ताकि निवेश के लिए आने वाले उद्योगपतियों को नीतियों की उलझन से न जूझना पड़े। जब तक सरकारी तंत्र पारदर्शी नहीं होगा निवेश कागजों पर ही दौड़ता नजर आएगा।