जबलपुर।यात्री ट्रेनों का संचालन पिछले छह माह से बंद है। सिर्फ गिनती की ही ट्रेनें चल रही हैं। इस वजह से रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों का दबाव कम है। भले ही इससे रेलवे को घाटा हो रहा हो, लेकिन फायदा भी हो रहा है। उसे ट्रेन, रेल लाइन और रेल ब्रिज की सुरक्षा और संरक्षा करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया है, जिसका वह फायदा भी उठा रहा है। इन दिनों रेलवे ने इनकी सुरक्षा के लिए क्यू2 एचडी ड्रोन की मदद ली है, जिसके सहारे वह न सिर्फ रेलवे ट्रैक पर निगरानी रख पा रहा है बल्कि खतरनाक ब्रिज का सर्वे से लेकर ट्रैक के आस-पास पड़ी रेलवे संपत्तियों का सर्वे और आपदा प्रबंधन के वक्त राहत पहुंचाने में मदद करता है।
बागरातवा ब्रिज बनाने में पहली बार किया प्रयोग
पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा इस ड्रोन का उपयोग शुरू कर दिया गया है। इसका पहली बार प्रयोग जबलपुर-इटारसी रेल लाइन पर बागरातवा से सोनतलाई के बीच नर्मदा नदी पर बने रेल ब्रिज के लिया किया गया। इस बीच को घाट और नदी की वजह से यहां पर 100 साल के दौरान दूसरी लाइन का ब्रिज नहीं बनाया गया, लेकिन इस ड्रोन की मदद से यह काम आसान हो गया। ड्रोन से घाट और नदी का सर्वे कर इस ब्रिज को समय से पहले ही तैयार कर लिया गया।
तीन कर्मचारी को दिया उड़ाने का प्रशिक्षण
रेलवे ने इस ड्रोन को चलाने के लिए अपने तीन कर्मचारियों को खास प्रशिक्षण दिया है। इसमें महेश पांडे, चंद्रकांत देशपांडे, आशीष कुमार हैं। यह इसे किसी भी ट्रैक, बांध, या ब्रिज के आस-पास उडा सकते हैं और दुर्घटना होने की वजह, सर्वे जैसे काम कर सकते हैं। खास बात है कि इसकी मदद से रेलवे ट्रैक और ब्रिज का थ्री डी मैप भी तैयार किया जा रहा है।
यहां हो रहा रेलवे ड्रोन का उपयोग
- पटरियों-बांध के निरीक्षण के दौरान।
- दुर्घटना स्थल के निरीक्षण के दौरान।
- बांध का 3 थ्री मॉडल तैयार करने में।
- ट्रैफिक मैनेजमेंट में करता है मदद।
- ट्रेन दुर्घटनाओं के वक्त राहत देने में।
रेलवे के नए ड्रोन की खासियत
1.फेल सेफ मॉडल की मदद से बैटरी खत्म होते ही यह वापस लौट आता है।
2. हवा यदि 45 किमी प्रति घंटे से अधिक होते ही यह वापस लौट जाता है।
3. इसमें ऑप्टिकल जूम लगा है, जिससे दूर की चीजों भी स्पष्ट दिखती हैं।
4. आपातकाल में यह 10 मिनट में तैयार होकर उड़ने लगता है।
5. 25 से 40 मिनट तक हवा में रह सकता है।
6 इसका वजन 3.2 किग्रा से भी कम है।
7 जीपीएस की मदद से सही लोकेशन भेजता है।