Jabalpur News: बुंदेली संस्कृति की धरोहर हैं रचनाएं
जबलपुर में आयोजित कार्यक्रम में भगत दुबे दीप द्वारा सृजित बुंदेली कविताओं की कृति पंचरंगी चूनर का विमोचन किया गया।
By Ravindra Suhane
Edited By: Ravindra Suhane
Publish Date: Wed, 14 Jul 2021 02:25:00 PM (IST)
Updated Date: Wed, 14 Jul 2021 02:25:25 PM (IST)
जबलपुर, नईदुनिया रिपोर्टर। बुन्देलखण्ड के सांस्कृतिक वैभव की बुन्देली कविताओं की ‘कृति पचरंगी चूनर‘ में कृतिकार भगत दुबे दीप ने बुन्देलखण्ड के रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार के साथ शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण, सीता-राम व भगवती दुर्गा की आराधना की है। यह कृति बुन्देली संस्कृति की धरोहर है जो पंचतत्वों की काया का दर्शन कराती है। यह बात पाथेय व वर्तिका संस्था द्वारा कृष्णासदन शास्त्रीनगर में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में आचार्य भगवत दुबे ने की। इस अवसर पर भगत दुबे दीप द्वारा सृजित बुन्देली कविताओं की कृति ‘पचरंगी चूनर‘का विमोचन किया गया।
समारोह के मुख्य अतिथि सुरेन्द्रसिंह पवार और विशिष्ट अतिथि मनोहर चौबे आकाश, प्रमोद तिवारी मुनि
थे। डॉ. राजकुमार सुमित्र के आर्शीवचन के बाद कृति की समीक्षा प्रभा विश्वकर्मा शील और राजेश पाठक प्रवीण ने की। समीक्षकों ने कहा कि कृति में लोक जीवन का सांस्कृतिक रस समाहित है। कृति में मानव जीवन के लिये चेतावनी देने वाले कायागीत प्रेरणा का प्रतीक हैं। बुंदेली बोली वैसे भी दिल को छू जाती है। और जब इसका उपयोग साहित्य में हो तो सोने पे सुहागा। ऐसा साहित्य प्रेरणादायी है।
मुख्य अतिथि सुरेन्द्रसिंह पवार ने कहा कि कृति में समाहित ज्ञानरूपी कविताओं की चूनर ओढ़कर मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है।
कृतिकार भगत दुबे ने बताया कि आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने लोकशैली में गीतों की रचना करना शुरू किया था।
बुन्देली लोकशैली के कारण गांव-गांव की रामायण मंडलियों में उनके भक्तिगीत लोकप्रिय हुये। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति में समाहित संस्कार ही बुंदेलखण्ड की पहचान हैं। विजय नेमा अनुज और संतोष नेमा संतोष ने भगत दुबे दीप का परिचय दिया। अतिथि स्वागत विनोद विश्वकर्मा, आशीष दुबे ने और आभार यशोवर्धन पाठक ने व्यक्त किया किया।