जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, कैट ने एक दिन पूर्व सेवानिवृत्ति के कारण वार्षिक वेतनवृदि्ध से वंचित किए जाने के रवैये को गंभीरता से लेकर जवाब-तलब कर लिया है। इस सिलसिले में केंद्र शासन व सर्वे ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किए गए हैं। जवाब पेश करने के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया गया है।
याचिकाकर्ता रांझी बस्ती, जबलपुर निवासी देवेंद्र कुमार खन्ना की ओर से अधिवक्ता अनिरूद्ध पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता 30 जून, 2020 को सर्वे ऑफ इंडिया, जबलपुर से सुपरिंटेंडेंट सर्वेयर के पद से सेवानिवृत्त हुआ। अगले दिन एक जुलाई, 2020 से वार्षिक वेतनवृदि्ध का लाभ निर्धारित था, जिससे याचिकाकर्ता को वंचित करते हुए पेंशन का निर्धारण कर दिया गया। जबकि इस तरह के मामलों में लाभ दिए जाने के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट व मद्रास हाई कोर्ट के न्यायदृष्टांत मार्गदर्शी हैं। जब आवेदन-निवेदन के बावजूद सुनवाई नहीं हुई तो कैट आना पड़ा।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी काम चलाऊ प्राचार्यों की नियुक्ति क्यों, आदेश का पालन करने की मांग : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार को छह माह के भीतर प्रदेश के सभी सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्थाई प्राचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था, लेकिन पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी काम चलाऊ प्राचार्यों की नियुक्ति की जा रही है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने प्रमुख सचिव तकनीकी शिक्षा और संचालक तकनीकी शिक्षा संचालनालय को पत्र लिखकर 15 दिन के भीतर हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने की मांग की है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांतीय संयोजक मनीष शर्मा ने अवगत कराया कि लंबे समय से सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्स्थाई प्राचार्य नियुक्त नहीं किए जा रहे है। यह जांच का विषय है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है। यह सब लेनदेन के लिए किया जा रहा है। इस मामले में प्रमुख सचिव से एक कमेटी बनाकर जांच करने की भी मांग की गई है। मंच के राकेश चक्रवर्ती, प्रफुल्ल सक्सेना, विनोद पांडे, आश्रिता पाठक व पवन कौरव ने कहा है कि यदि 15 दिन के भीतर स्स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रांरभ नहीं जाती है तो हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की जाएगी।