जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने गुरुवार को प्रवचन में कहा कि किसी भी देश या विदेश में इस तरह का प्रचलन देखने को नहीं मिलता किंतु जैन परंपरा में यह आज भी उपलब्ध है। इसका संबंध पुरातन काल से है। परंतु यह आज भी प्रचलन में है। हम भोजन पानी आहार बिहार का पूरा विचार रखते हैं, लेकिन फिर भी रोग आ रहे हैं क्योंकि हमारा आहार-विहार गड़बड़ हो रहा है यदि आपको स्वस्थ जीवन जीना है तो कुछ वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। मोटापा मधुमेह आदि रोगों का कारण हृदय एवं पाचन तंत्र से संबंधित है इसके लिए हमें भोजन में कुछ वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। आज अमेरिका में एक अभियान चल रहा है जिसमें गेहूं का सेवन नहीं किया जाता है।
पांच तरह के होते हैं विष : आचार्यश्री ने कहा कि पांच तरह के सेवन विष की तरह है उनमें शक्कर, नामक, दूध, पानी, मैदा है। शक्कर जिसमें आजकल केमिकल का प्रयोग किया जाता है जिससे वह जहर के रूप में परिणित हो रही है। मैदा जो गेहूं से बनता है आंतों को नुकसान देती है फलस्वरूप पाचन शक्ति बिगड़ती है। भारत में ग्रामीणजन ज्यादा स्वस्थ रहते हैं क्योंकि उनका आहार बहुत नापा तुला और संतुलित होता है वे शुद्ध भोजन करते हैं और परिश्रम करते हैं जबकि शहरी नागरिकों को हर बात डॉक्टर को समझनी पड़ रही है कि क्या खाना है और क्या नहीं खाना। नमक के लिए भी कहा गया है कि ज्यादा नमक विषाक्त हो जाता है वर्तमान में जो केमिकल युक्त नमक आ रहा है वह शरीर को नुकसान कर रहा है। दूध भी अब विषाक्त हो चला है क्योंकि दूध भी केमिकल युक्त हो गया। कई तरह से दूध बनाया जा रहा है इसे सिंथेटिक दूध कहा जा रहा है, जबकि गाय का दूध सर्वोत्तम है।
भारतीय परंपरा में फल खाने के भी नियम : आचार्य श्री ने कहा कि भारतीय आयुर्वेद में तो स्वप्न आने की विवेचना करने से ज्ञात हो सकता है कि कफ, वात या पित्त से आप पीड़ित हैं, यह बेकार है सुख की नींद से सोना चाहते हैं तो अनिष्ट और अनाचार से बचिए। भारतीय परंपराओं में फल को खाने के भी नियम है। कई सारे रोगों का निदान फल के सेवन से किया जा सकता है। पानी भी विषाक्त हो रहा है। पानी को शुद्ध करने कई केमिकल का प्रयोग किया जाता है। जैन धर्म में प्रासुक जल का प्रयोग बताया गया है, भोजन भी प्रासुक होना चाहिए। आजकल शीतल जल का प्रयोग बढ़ गया है जो हानिकारक है। जल और भोजन प्रासुक लेने से यदि भोज्य पदार्थ में किसी तरह का कोई विषाणु है तो वह समाप्त हो जाएगा और शरीर को नुकसान नहीं करेगा। यदि सामान्य जल का सेवन कर लिया तो इसमें संभावना है कि कई तरह की जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बिना उबला-प्रासुक जल में कई तरह के खनिज पदार्थ होते हैं जो पचान योग्य नहीं होते। कुए का पानी श्रेष्ठ होता है पुरातन भारत में जल प्रबंधन का बहुत महत्व था जो अब खत्म हो गया के परिणाम भी सामने आने लगे हैं।