Jabalpur city news: जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। आर्टआफ लिविंग की आश्रम मंडली के अठारह मंजे हुए कलाकार जैसे ही जबलपुर के मानस भवन सभागार के मंच पर उतरे दर्शक सम्मोहित होकर उनसे बंध गए। उनकी संगीतमय प्रस्तुति ने मानो टाइम-मशीन में बैठाकर दो घंटे के लिए कलयुग से त्रेतायुग में पहुंचा दिया। मौज-मस्ती और गाने-बजाने के साथ ‘रामलला की माता‘ नाट्य प्रस्तुति को गति दी गई। जैसे-जैसे नाटक आगे बढ़ा दर्शकों की रामायणकालीन दो कालजयी पात्रों माता कैकेयी व मंथरा के प्रति बनी-बनाई सोच बर्फ की मानिंद पिघलती चली गई। इस तरह यह रहस्य सहज रूप से उद्घाटित हो गया कि आखिर रघुकुल के साधारण राजकुमार असाधारण भगवान श्रीराम कैसे बन गए।
सोमवार को सायं साढ़े सात बजे से द आर्ट आफ लिविंग, जबलपुर चेप्टर के तत्वावधान में ‘रामलला की माता‘ नाटक का मंचन अनूठा प्रयोग रहा। बंगलुरू द आर्ट आफ लिविंग आश्रम से जबलपुर आए 18 कलाकारों ने संगीतमय नाट्य प्रस्तुति के जरिये कैकेयी के कार्यों और सोच को दर्शाने में कोई कोर-कसर शेष नहीं रखी।मंचन की व्यवस्था में आर्ट आफ लिविंग मध्य प्रदेश के अपेक्स सदस्य नितिन बरसैया, मनु तिवारी, प्रभा खंडेलवाल, ऋतुराज असाटी, ललित बक्शी, राकेश चौबे व नवीन बरसैया सहित अन्य का सहयोग रहा।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण व सोच से भरपूर रही प्रस्तुति : कलम व कला के धनी पंकज मनी द्वारा लिखित और निर्देशित यह नाट्य प्रस्तुति आध्यात्मिक दृष्टिकोण व सोच से भरपूर थी। इसके संवाद और संगीतमय प्रस्तुति ने कभी दर्शकों को उत्साहित किया तो कभी भावनात्मक रूप से आंखें नम कर दीं।
श्री श्री रविशंकर का सुदर्शन सामने आया : दरअसल, बाल्मीक विरचित महाकाव्य रामायण व तुलसी की मानस के दो पात्र हैं, कैकेयी और मंथरा। इन्हें आज भी स्वार्थ और लालच के लिए जाना जाता है। लेकिन आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने कैकेयी को लेकर एक अलग दृष्टिकोण सबके सामने रखा। उनका सुदर्शन है कि रामायण में हमने कैकेयी को हमेशा खलनायिका का दर्जा दिया। बावजूद इसके कि उन्होंने सारी बुराई अपने ऊपर लेकर राजकुमार राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम बनाने में अपना अहम योगदान दिया।
युगों के कलंक को हसंते-हंसते स्वीकार कर लिया : इस नाटक ने तथ्य रेखांकित किया कि त्रेतायुग में माताओं का बलिदान कितना सार्थक रहा। किस तरह माताओं ने मोह त्यागकर राग से ऊपर प्रेम को रखकर बलिदानी भाव से मानव कल्याण का पथ प्रशस्त किया। इस नाटक ने बताया कि एक मां ही अपनी संतान का चरित्र गढ़ती है। कैकेयी एक मां ही थीं, जिन्होंने साधारण राजकुमार श्रीराम को असाधारण भगवान श्रीराम बना दिया और युगों के कलंक को हसंते-हंसते स्वीकार कर लिया।
संवाद, चौपाई, लोकगीत व नौटंकी विधा का समावेश: आकांक्षा यादव व पूर्वी ने कैकेयी व मंथरा के पात्रों को जीवंत किया। भरत के रूप में अभिषेक शर्मा, कौशल्या के स्प में आस्था श्रीवास्तव ने दिल जीता। सूत्रधार बतौर विकास, विनीत व विक्रम ने रंग जमाया। मुख्य गायक रोहित श्रीधर के देहाती स्वर लाइव संगीत के रूप में कमाल का असर छोड़ गए। बंगलुरू से जबलपुर आए कलाकारों ने संवाद, चौपाई, लोकगीत व नौटंकी विधा का समावेश कर नाट्य प्रस्तुति को अलहदा बना दिया।इस भाव-प्राधन नाटक में बताया गया कि राम को सर्वाधिक स्नेह करने वाली माता कैकयी ने राम को वनवास इसलिए भेजा ताकि उनका शौर्य व कीर्ति सर्वाधिक फैले और वे राजकुमार के बाद सिर्फ राजा न बनें बल्कि सर्वमान्य होकर सभी के दिलों पर चिरकाल तक राज करें।मंथरा ने भी भरत के लिए राजसिंहासन मांगने कैकेयी काे भड़काकर स्वयं को सबकी नजरों में गिराया किंतु उसके उकसावे के नेपथ्य में जगत-कल्याण का महाभाव छिपा था।