International Family Day: नईदुनिया प्रतिनिधि,जबलपुर। संयुक्त परिवार का समाज में काफी महत्व है। इसमें तीन चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं। आने वाली पीढ़ियाें को घर में रह रहे बुजुर्गों का सानिध्य प्राप्त होता है। उनसे अच्छी बातें सीखने को मिलती हैं। संस्कार का निर्माण होता है। वर्तमान परिवेश में एकल परिवार का चलन बढ़ा है। इससे पारिवारिक रौनक कम हुई है। भागदौड़ भरी इस जिंदगी में संयुक्त परिवार अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। बावजूद इसके कई परिवार हैं, जो संयुक्त परिवार के बिना खुद को अधूरा समझते हैं। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पर शहर के कुछ संयुक्त परिवारों से बातचीत कर, जिसमें उन्होंने अपने विचार कुछ इस तरह साझा किए।
परिवार का साथ सबसे ज्यादा जरूरी
विजयनगर निवासी श्यामबिहारी श्रीवास्वत ने बताया कि मैं अपने को बहुत खुशनसीब मानता हूं। मेरे परिवार के 14 सदस्य साथ रहते हैं। जिसमें बेटे-बहू और पोता-पोती शामिल हैं। संयुक्त परिवार का सबसे ज्यादा फायदा बुजुर्गों को होता है। यह उनके लिए संजीवनी से कम नहीं है। उनकी जिंदगी हंसते हुए कट जाती है। उन्हें देखने वाले लोग घर में होते हैं। किसी तरह का तनाव भी उन्हें रखने में नहीं होता है, लेकिन एकल परिवार में सबसे ज्यादा दिक्कत बुजर्ग को ही होती है। किसी भी चीज को साझा करने की कला संयुक्त परिवार से ही आती है।
इस परिवेश में रहने वाले बच्चे ज्यादा सामाजिक होते हैं। ऐसे परिवार में रहने वाले लोग एक दूसरे का सुख-दुख बांटते हुए बेहतर ख्याल रख सकते हैं। बुजुर्गों का साथ संयुक्त परिवार में मिलता है। परिवार में उनके सानिध्य में अच्छे संस्कार मिलते हैं। दूसरों के लिए सम्मान की भावना विकसित होती है। बच्चों के अच्छे व्यक्तित्व के लिए जो बातें जरूरी होती है, वे सभी हमें संयुक्त परिवार में ही सीखने को मिलती हैं। एकल परिवार में हमें ये सब बातें देखने को नहीं मिलतीं।
कब से हुई शुरुआत ?
पहली बार विश्व परिवार दिवस 1994 में मनाया गया था। हालांकि इस दिन की नींव 1989 में ही रख दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जीवन में परिवार के महत्व को बताने के उद्देश्य से 9 दिसंबर 1989 के 44/82 के प्रस्ताव में हर साल अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने की घोषणा की थी। बाद में साल 1993 में यूएन जनरल असेंबली ने एक संकल्प में परिवार दिवस के लिए 15 मई की तारीख तय कर दी। इसके बाद से हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाने लगा।इंसान कितनी भी तरक्की कर ले, जितनी भी सफलता हासिल कर ले, लेकिन परिवार के बिना वह अधूरा है।