सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। शरदपूर्णिमा को जन्मे देश-दुनिया में विख्यात जैनाचार्य विद्यासागर महाराज का व्यक्तित्व पूर्णचंद्र जैसा सुंदर है। उनकी दिव्य-निश्छल मुस्कान का सम्मोहन गजब का है। यही वजह है कि वे जब-जब जबलपुर आते हैं, नगरवासी जैन समुदाय ही नहीं अन्य धर्मावलंबी भी उनके श्रीचरणों का आशीष ग्रहण्ा करने सहज ही खिंचे चले आते हैं। आज उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न् जैन मंदिरों आदि में विविध आयोजन हुए।
वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढ़िया के ब्रह्मचारी त्रिलोक ने बताया कि विद्याधर से विद्यासागर बनने की यात्रा अध्यात्म की महायात्रा रही है। इसमें तपस्या का सूत्र समाया है। अपने गुरुदेव ज्ञानसागर महाराज के प्रति गुरुभक्ति के साथ लगनशीलता ने एक किशोर को महान आचार्य की कोटि तक पहुंचाया। जबलपुर में जब-जब आचार्यश्री का आगमन हुआ, तब-तब कोई न कोई बड़ी घोषणा हुई और जैन धर्म की देशना ने प्रत्येक जबलपुरवासी को प्रभावित किया। जन्मदिवस पर जबलपुर के सभी जैन तीर्थ, मंदिरों व शिक्षण संस्थानों में कार्यक्रम रखे गए हैं।
आठ भाषाओं के ज्ञाता : आचार्य विद्यासागर हिंदी व अंग्रेजी सहित आठ भाषाओं के ज्ञाता हैं। हिंदी के अलावा संस्कृत-प्राकृत सहित विभिन्न् आधुनिक भाषाओं में उनके व्याख्यान व रचनाएं सामने आईं। मराठी और कन्न्ड़ में उनकी विचार अभिव्यक्ति मोहित कर लेती है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना मूकमाटी को जो पढ़ता है, मुरीद हो जाता है। उनकी संवेदनशीलता देखते ही बनती है। मूकमाटी स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम तक में शामिल की गई। कई विश्वविद्यालय के शोधार्थी उनकी रचनाओं पर शोध कर चुके हैं। निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक अद्भुत रचनाएं हैं। शिष्य मुनि क्षमासागर ने अपने गुरु आचार्य विद्यासागर के जीवन पर केंद्रित आत्मान्वेषी शीर्षक पुस्तक रची, जिस पर आधारित नाटक मनोहारी है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर ने अनासक्त महायोगी शीर्षक काव्य भी रचकर गुरु के प्रति श्रद्धा निवेदित की है।