इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि Indore News। व्यंग्य केवल लेखन की विधा ही नहीं है बल्कि यह तो साहित्य की उतकृष्ट विधा है। व्यंग्य शोषित, दमित और वंचितों की आवाज है। व्यंग्यकार के भीतर कबीर का धड़कना आवश्यक है तभी शास्वत व्यंग्य जन्म ले सकता है। यह बात अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रान्त द्वारा आयोजित वेबिनार में श्रीधर पराड़कर ने मुख्य अतिथि के रूप में कही। व्यंग्य विषय पर आयोजित हुए वेबिनार के विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी थे।
चौधरी ने कहा कि विष पीकर अमृत का सृजन करना ही व्यंग्य है। व्यवस्था के चेहरे की विकृति की शल्य चिकित्सा व्यंग्य के पैने नश्तर से की जाती है। व्यंग्य व्यवस्थागत विसंगतियों के विरुद्ध एक जीवंत दस्तावेज है। विशिष्ट अतिथि डा. पिलकेन्द्र अरोरा ने व्यंग्य का मूल अर्थ समझाते हुए कहां की व्यक्ति जन्मजात व्यंग्यकार होता है। यह विधा भीतर से ही आती है। जब अचानक से आपके बाहर बिना प्रयास के तंज निकले कटाक्ष हो तो व्यंग्य सार्थक होता है। संस्था अध्यक्ष त्रिपुरारि लाल शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि व्यंग्य साहित्य की एक विधा है जिसमें उपहास, मजाक और इसी क्रम में आलोचना का प्रभाव रहता है। हास्य व व्यंग्य में अंतर है। हास्य मनोरंजन के लिए होता है जिसमें पाठक सुनने के बाद खिलखिलाता है जबकि व्यंग्य प्रहार करने के लिए होता हैं जिसे सुनकर पाठक आक्रोशित हो जाता है।
इस वेबिनार में साहित्यकारों ने व्यंग्य भी प्रस्तुत किए। प्रकाश हेमावत ने लाकडाउन पर निंदिया और जागरूक बाबू का चुटीला संवाद प्रस्तुत किया। मनोरमा पंत ने कोरोना की गूगल मीट बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत की। सौम्या श्रीवास्तव ने कलम की कहानी कलम की जुबानी व्यंग्य सुनाया। डा. पूर्णिमा मंडलोई ने कोरोना में शिक्षकों का दर्द बयां करता व्यंग्य प्रस्तुत किया। इसके अलावा रंजना जैन, कर्नल डा. गिरिजेश सक्सेना, मनोज महाजन, डा. रत्नेश खरे, महेश शर्मा, कीर्ति दुबे, डा. अर्चना राठौर, चन्दा देवी स्वर्णकार, नन्दकिशोर राठौर, विनीता प्रशांत खंडेलवाल, पुष्पलता शर्मा, सुरेंद्र खेड़े, मनोहर सिंह चौहान आदि ने भी व्यंग्य प्रस्तुत किए। संचालन पूजा त्रिवेदी और मोनिका भट्ट ने किया। आभार सुनील पुरोहित ने माना।