ईश्वर शर्मा, नईदुनिया। चिकमंगलूर क्षेत्र में रहने वाले वर्मा परिवार ने अपना शानदार चार मंजिला भवन बनाया। मगर, इसके लिए आंगन में लगे दो पेड़ों को नहीं कटवाया। ये दोनों पेड़ मकान की डिजाइन में बाधा बन सकते थे। लिहाजा, वर्मा परिवार ने मकान की डिजाइन ही बदल डाली।
अब आम का विशाल पेड़ वर्मा परिवार के घर की पहली से लेकर चौथी मंजिल की गैलरी का स्थायी हिस्सा है। वहीं, छत पर यह किसी गुलदस्ते जैसा खिला हुआ है। वहीं दूसरा पेड़ गूलर का है, जो घर के बार लहलहा रहा है। वर्मा परिवार इन दोनों पेड़ों को पेड़ नहीं, बल्कि अपने मां और बाबूजी मानता है।
बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कभी इन पेड़ों से पीठ टिकाकर बैठते हैं, तो कभी इनकी छांव में बैठकर चाय पीते और गप्पे लड़ाते हैं। ये दोनों पेड़ इस परिवार का अभिन्न हिस्सा हैं। हरियाली और पेड़ों की कीमत को अपने घर (सरस्वती निवासी) की कीमत से अधिक समझने वाला यह परिवार चिकमंगलूर चौराहा निवासी बृजेश वर्मा का है।
इनके आंगन में 50 वर्ष पुराना आम का विशाल वृक्ष और गूलर का एक बड़ा चार मंजिला ऊंचाई का पेड़ है। वर्मा बताते हैं- हमारे पिता की पीढ़ी के बाद हमारा भी बचपन इन पेड़ों की छांव में खेलते हुए बीता था, इसलिए जब मकान नया बनाने की योजना बनी, तो आंगन के इन दोस्तों को कैसे काट सकते थे।
सनातन धर्म में नदी, पहाड़, पेड़ पूजे जाते हैं। वर्मा परिवार भी दीपावली पर दोनों पेड़ों की सफाई-छंटाई और आम के पेड़ के तने पर रंगरोगन करता है। दीपावली पर यहां दीपक भी लगाए जाते हैं और होली पर इन पेड़ों को रंग भी लगाया जाता है।
बृजेश वर्मा बताते हैं, जब नया घर बनाने लगे तब हमारे बाबूजी ने स्पष्ट कहा- पेड़ नहीं कटेंगे, चाहे नए मकान के आगे आधी जगह आंगन की तरह खुली छोड़नी पड़े। चूंकि परिवार में सदस्य संख्या अधिक हो रही थी, इसलिए मकान तो बड़ा बनाना ही था, इसलिए बीच का रास्ता निकाला। बाबूजी के कहे अनुसार मकान की डिजाइन बदली और आम के पेड़ को भूतल से लेकर चौथी मंजिल तक कहीं गैलरी तो कहीं आगे के कमरे की दीवार में शामिल रखा।
बालकनी में जहां-जहां से पेड़ निकला है, वहां इतना जगह खाली छोड़ी है कि यदि हवा, तूफान भी चले तो न बालकनी को नुकसान होता है, न पेड़ को। मकान बनता रहा, पेड़ लहलहाते रहे। अंतत: जब मकान बन गया, तो इन पेड़ों के कारण वह ढांचा मकान के बजाय घर में तब्दील हो गया। अब हमारे परिवार के कुल सदस्यों में ये दोनों सदस्य भी हैं।