History of Indore: इतिहास को अपने में समेटे इंदौर शहर के ये पेड़
History of Indore: नीम का पेड़ 200 साल पुरानी है। इस पर अमझेरा के राजा राणा बख्तावर सिंह राठौर को फांसी दी गई थी।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 07 Jan 2023 01:38:19 PM (IST)
Updated Date: Sat, 07 Jan 2023 01:38:19 PM (IST)
History of Indore: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। शहर के इतिहास, यहां की वीरता और बदलते वक्त की दास्तां केवल इमारते, दस्तावेज ही नहीं बयां करते बल्कि यहां की प्रकृति भी बहुत कुछ कहती है। यूं तो शहर में कई ऐसी इमारते हैं जिनका एतिहासिक महत्व है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि शहर में कुछ पेड़ भी ऐसे हैं जो केवल प्रकृति के नजरिए से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उनका महत्व इतिहास के परिप्रेक्ष्य में भी है।
शहर में होने वाले प्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इंवेस्टर समीट के लिए शहरभर में पेड़ों पर रोशनी की जगमगाहट की जा रही है, वहीं कुछ पेड़ ऐसे भी हैं जिन्हें रोशनी की नहीं पहचान की आवश्यकता है। शहर के एमवाय अस्पताल की नई ओपीडी के पास जो नीम का पेड़ आज भी शान से खड़ा लोगों को छांव और ताजी हवा देता है। असल में यह वही पेड़ है जो स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के बलिदान का गवाह बना।
यह नीम का पेड़ करीब 200 वर्ष पुराना है। इस पेड़ पर 10 फरवरी 1858 को सुबह 9 बजे अमझेरा के 34 वर्षीय राजा राणा बख्तावर सिंह राठौर को उनके साथियों सहित फांसी पर लटकाया गया था। यह वे वीर थे जिन्होंने अंग्रेजो की गुलामी स्वीकारने के बजाए उनसे लोहा लिया और षडयंत्र के तहत गिरफ्तार भी कर लिए गए। फांसी के बाद सभी शवों को दो दिनों तक पेड़ पर ही लटकाए रखा था ताकि लोगों में डर पैदा हो।
यहां से आगे बढ़ने पर शहर की रेसीडेंसी कोठी परिसर जाएं तो वहां भी बरगत का पेड़ इतिहास की गाथा सुनाता है। रेसीडेंसी कोठी परिसर में लगे प्राचीन बरगद के पेड़ पर होलकर सेना के बहादुर तोपची सआदत खां को 1 अक्टूबर 1874 को फांसी दी गयी थी। 1857 में विद्रोह के समय रेसीडेंसी कोठी में हुए संघर्ष व गोलीबारी के समय सआदत खां गिरफ्तारी से बचकर निकल गए थे और वेष बदलकर राजस्थान के झालावाड़ में रह रहे थे। जनवरी 1874 में उन्हें झालावाड़ के जंगलों से अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और माफी नहीं मांगने के कारण उन पर मुकदमा चलाया गया। इस पर भी जब सआदत खां के हौंसले नहीं टूटे तो उन्हें 7 सितंबर 1874 को फांसी की सजा सुना दी गई।
शहर के कृषि महाविद्यालय के मुख्य द्वार के पास लगे नीम के पेड़ इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रकृति प्रेमी थे। यह दोनों पेड़ करीब 85 वर्ष पुराने हैं। महात्मा गांधी 1935 में जब इंदौर आए थे तब उन्होंने तत्कालीन इंस्टीट्यूट आफ प्लांट इंडस्ट्री में जैविक खाद (कम्पोस्ट) बनाने की विधि भी देखी। तब सर अल्बर्ट हावर्ड ने गांधीजी को जैविक खाद में नीम के महत्व को समझाया था। इस दौरान महात्मा गांधी ने ही यह दोनों नीम के पौधे रोपे थे जो आज विशाल वृक्ष बन चुके हैं।
- डा. ओपी जोशी, (पूर्व प्राचार्य और पर्यावरण प्रेमी)