History Of Indore: तांगे हुआ करते थे शहर की शान, नगर पालिका करता था निगरानी
History Of Indore: एक वक्त था जब तांगे गुजरात से बनकर आते थे बाद में इनका निर्माण शहर में ही होने लगा।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 09 Jul 2022 02:07:29 PM (IST)
Updated Date: Sat, 09 Jul 2022 02:07:29 PM (IST)
History Of Indore: प्रवीण श्रीवास्तव, (लेखक पुरातत्व विभाग से सेवानिवृत्त केमिस्ट)। यह शहर बस्ती हुआ करता था जिसे पेशवाओं ने मल्हारराव होलकर को मालवा की सूबेदारी सौंपकर राजनीतिक मानचित्र पर अलग पहचान दिलाई और होलकर शासकों ने अपनी वीरता, सुशासन और दूरदृष्टि से वैश्विक परिदृश्य में इंदौर का मान बढ़ाया। जिस बस्ती में आवागमन बैलगाड़ी या पैदल ही हुआ करता था होलकरों के आने के बाद यहां बग्घी भी नजर आने लगी और बाद में तांगों ने आवागमन को सुलभ बना दिया। एक जमाने में इंदौर रियासत की शान अपने नागरिकों की सुख और शांति से थी। हाट-बाजार ईमानदारी पर खरे उतरते थे। इंदौर की शान तांगों की बात करें तो उस जमाने में तांगे यहां की शान हुआ करते थे। शहर में सन 1900 के लगभग तांगे चलने लगे थे।
बात अगर आंकड़ों की करें तो 1944-45 में शहर में 517 तांगे थे। उस जमाने में नगर पालिका इनकी गिनती करता था जिसे इस महकमे में तांगा पासिंग किया जाता था। रानी सराय में तांगों की हाजिरी होती थी। उस दौर में तांगों को शाही सवारी के रूप में देखा जाता था। तांगे होते ही इतने आकर्षक थे जो बग्घी से कम नजर नहीं आते थे। आरामदायक बैठक, पर्दा और साज सजावट सबकुछ आला दर्जे की होती थी। चार सवारियां ही तांगे में बैठाई जाती थी और चारों छोर पर तकिए लगे होते थे जिनपर सफेद खोल चढ़ी रहती थी। तांगे की छत पर पीतल की नक्काशी और रंगीन मीनाकारी होती थी और कुछ तांगों की छत पर तो छोटे झूमर भी लगे रहते थे। मौसम के अनुरूप यात्रियों की सुविधा का ध्यान तांगे की सजावट में किया जाता था।
एक वक्त था जब तांगे गुजरात से बनकर आते थे बाद में इनका निर्माण शहर में ही होने लगा। कड़ावघाट, बियाबानी, मल्हारगंज और छोटी ग्वालटोली में तांगे बना करते थे। सवारी बिठाने के लिए जंगमपुरा, छत्रीपुरा, कड़ावघाट, बियाबानी, कड़ाबीन, जूनी इंदौर प्रमुख केंद्र थे। शहर के तांगे अपनी सजावट के लिए भी जाने जाते थे। तांगे केवल यात्रा के लिए ही नहीं थे बल्कि रोजगार का जरिया भी थे। नाल चढ़ाना- उतारना, कमानी ठीक करना, घास वाले, तांगा धुलाई, लीद की सफाई आदि में रोजगार उपलब्ध थे। प्रशिक्षित घोड़ों को ही तांगों में जोता जाता था। घोड़ों के पैरों में घुंघरू बंधे होते थे जिससे टापों की आवाज के साथ घुंघरू की आवाज आने से लोग उसे कौतुहल से सुनते और देखते थे।