History Of Indore: सेठों की नगरी में भव्य हुआ करता था दीपों का उत्सव
History Of Indore: होलकर शासकों से सेठों तक ने शहर की चमक को दीपावली पर बढ़ाया। उस दौर में सेठों ने यह कहकर बल्ब नहीं लगवाए कि कहीं उसकी रोशनी से उनकी आंखें न खराब हो जाएं। आतिशबाजी के लिए मुंबई-कोलकाता से पटाखे मंगवाए जाते थे।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 22 Oct 2022 09:14:13 AM (IST)
Updated Date: Sat, 22 Oct 2022 09:14:13 AM (IST)
History Of Indore इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। अहिल्या की नगरी ने दीपावली का वह नजारा भी देखा जब यहां अमावस्या की रात केवल दीपों की रोशनी से जगमगाती थी और उस दौर का भी साक्षी रहा जब सराफा, मारोठिया, शीतलामाता बाजार आदि बाजारों के सेठों ने यह कहकर बल्ब नहीं लगवाए कि कहीं उसकी रोशनी से उनकी आंखें न खराब हो जाएं। होलकर शासकों से सेठों तक ने शहर की चमक को दीपावली पर बढ़ाया। शहर के विकास ही नहीं बल्कि दीपोत्सव पर यहां की शान बढ़ाने में सर सेठ हुकमचंद का भी अमूल्य योगदान रहा। बात अगर दीपोत्सव की करें तो सेठ हुकमचंद के शहर के बाजार में बने तीन मंजिला मुख्यालय को दीपक से सजाया जाता था। ऐसी ही सजावट सेठ कल्याणमल की हवेली पर भी होती थी। सेठ हुकमचंद शीतलामाता मंदिर के सामने अपनी पेढ़ी पर बैठते थे और मुंबई-कोलकाता से उच्चकोटि का आतिशबाजी का सामान यहां बुलवाया जाता था।
शीतलामाता बाजार में मंदिर के सामने उस वक्त विशाल मैदान हुआ करता था जहां हुकमचंद सेठ आतिशबाजी किया करते थे। शाम करीब 6 बजे से रात 12 बजे तक आतिशबाजी का सिलसिला जारी रहता था। आला दर्जे की इस आतिशबाजी को देखने के लिए शीतलामाता बाजार, मारोठिया बाजार तथा नलिया बाखल के मार्ग पर जनता एकत्रित हो जाती थी। आतिशबाजी के बाद स्थिति यह होती थी कि इस मैदान पर पटाखों की राख से पांच-छह इंच मोटी परत जम जाती थी।
महाराजा तुकोजीराव कपड़ा मार्केट में ऐसी रोशनी की जाती थी कि उसे देखने के लिए हर कोई आतुर रहता था। यहां महावीर चौक में इंदौर की प्रसिद्ध कपड़ा मिलों के मुख्य प्रतिष्ठान थे और उनकी ऊपरी मंजिलों पर विद्युत चलित चित्रावलियां सजाई जाती थी। ठीक वैसी ही जैसे अनंत चतुर्दशी के जुलूस में लगने वाले रंगीन बल्ब की झालर। इस बाजार की हर दुकान फूल और आम के पत्तों की वंदनवार, बल्ब की झालर से सजाई जाती थी। हर दुकान में पांच से लेकर 11 बत्तियों वाली बड़ी-बड़ी समई लगाई जाती थी जिसमें घी और इत्र होता था और पूरा बाजार उससे महक उठता ता। दुकानों पर लक्ष्मीपूजा के बाद चांदी की थाल में रखी मिठाई और सूखे मेवे रख एक-दूसरे को दिए जाते थे। एक बार जब दीपोत्सव के दौरान पं. नेहरू ब्रिटिश कारावास में थे तब क्लाथ मार्केट में मुरलीधर नीमा ने अपनी दुकान पर दीपावली की सजावट में पं. नेहरू पर केंद्रित एक झांकी बनाई थी।
- बबीता चंदानी (लेखिका इतिहास की जानकार हैं)