इंदौर, नईदुनिया प्रतितिनिधि National Gardening Day Indore। ऊंची इमारतों अौर सीमेंट-कांक्रीट के जंगल से घिरे शहर के लोग बेशक प्रकृति के बीच जाकर नहीं बस सकते लेकिन अपने साथ प्रकृति की सुंदरता को बगीचे के रूप में तो संजोए ही सकते हैं। विशाल वृक्षों के घनघोर जंगल में रहना ना सही पर तरह-तरह की वनस्पतियों को तो बगीचों, क्यारियों या गमलों में तो लगा ही सकते हैं। बुधवार को नेशनल गार्डनिंग डे है और हम अापको दो ऐसे ही लोगों से मिलवा रहे हैं जिन्होंने अपने गर में प्रकृति के खूबसूरत पहलुअों में से एक वनस्पती को सहेज कर रखा है। इसके लिए न केवल इनके घर अाकर्षण का केंद्र हैं बल्कि ये मिसाल भी कायम कर रहे हैं।
स्कीम नंबर 114 निवासी गोविंद मिश्रा के घर में जहां भी नजर जाती है वहां कोई क कोई पौधा तो दिख ही जाता है। फिर चाहे वह पौधा जमीनी बगीचे में लगा हो या छत पर बने बगीचे में या फिर बालकनी अौर कमरे में रखे गमले ही क्यों न हो। गोविंद के बगीचे में 200 से अधिक वैरायटी के पौधे हैं जिसमें अडेनियम, कैक्टस, सेंसेवेरिया अादि प्रमुख हैं। वे बताते हैं कि पहले वे गुलाब के पौधों पर बहुत ध्यान देते थे लेकिन एक दिन एक ऐसे विशेषज्ञ से मुलाकात हुई जिन्होंने कैक्टस की खूबसूरती अौर उसे लगाने के सही तरीके से मुझे रूबरू कराया अौर मैंने कैक्टस लगाना शुरू किया।
अाज मेरे पास 500 से अधिक कैक्टस के पौधे हैं। 2018 में चंडीगढ़ में हुई अरेविका एडिक्शन कॉम्पीटिशन में मेरे प्रयास को न केवल सराहा गया बल्कि मेरे बगीचे को राष्ट्रीय स्तर की इस स्पर्धा में पहला पुरस्कार भी मिला। लोगों को कहना है कि कैक्टस घर में नहीं लगाना चाहिए पर मेरा मानना है कि वनस्पती कोई भी हो वह प्रकृति के हित में ही होती है अौर उसे सभी को सहेजना होगा।
प्रकृति को अपने बीच रख सकते है
गुलमोहर एक्सटेंशन निवासी नीलम तापडि़या 40 वर्षों से बोनसाई के जरिए प्रकृति के नजारों को घर में संजो रही हैं। इनका मानना है कि हर व्यक्ति प्रकृति के बीच जाकर नहीं रह सकता लेकिन प्रकृति को तो अपने बीच रख ही सकता है अौर उसका जरिया बगीचे होते हैं। चूंकि मुझे बड़, पीपल, नीम अादि विशाल वृक्षों की सुंदरता लुभाती है इसलिए मैंने बोनसाई को अपनाया। हर दिन तीन घंटे पौधों के रखरखाव में बीतते हैं।
जूनिपर एक ऐसा पेड़ होता है जो ठंडे प्रदेशों में पाया जाता है उसे भी मैंने अपने बगीचे में बोनसाई किया है। गर्मी के दिनों में उन्हें सहेजने के लिए कृत्रिम रूप से ठंडक करना होती है जो बहुत मुश्किल होता है लेकिन जैविक तरीके अपनाकर मैं यह प्रयास करती हूं। मैं चाहती हूं कि बोनसाई की कला अौर भी लोगों तक पहुंचे ताकि प्रकृति को घरों में सहेजा जा सके।