Taste of Indore: आदिवासी क्षेत्र की दावत में स्वाद का खजाना लिए दाल-पानिए
Taste of Indore: दाल-पानिए बेहतर बनाने का राज यही है कि इसे पारंपरिक तरीके से ही बनाया जाए।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 23 Mar 2024 02:00:43 PM (IST)
Updated Date: Sat, 23 Mar 2024 02:06:55 PM (IST)
दाल-पानिए HighLights
- भगोरिया में संस्कृति की झलक देखने के साथ ही पारंपरिक भोजन का आनंद भी लिया जा सकता है।
- दाल-पानिए शुरू में दाल-बाफलों की तरह नजर आते हैं, लेकिन दोनों में भिन्नता है।
- पानिए बाफले की तरह नजर आते हैं पर यह सफेद मक्के के आटे से बनाए जाते हैं।
Taste of Indore: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर । अगर आप खानपान के साथ पर्यटन के भी शौकीन हैं और अपने इन दोनों शौक को पूरा करने के लिए आप शहर से दूर भी जा सकते हैं तो इन दिनों धार, झाबुआ, आलीराजपुर की सैर करने जा सकते हैं। जहां आदिवासी संस्कृति की झलक भगोरिया का आनंद भी ले सकते हैं और वहां का पारंपरिक व्यंजन दाल-पानिए का लुत्फ भी उठा सकते हैं।
दाल पानिए यदि आप थाली में परोसे हुए देखेंगे तो हो सकता है कि पहली नजर में आपको यह दाल-बाफले की तरह ही नजर आए लेकिन इसे बनाने का तरीका, सामग्री और जायका तीनों ही दाल-बाफले से कहीं अलग होता है। दाल-पानिए एक ऐसा व्यंजन है जो न केवल स्वाद के मान से यादगार है बल्कि सेहत के लिए भी बेहतर है। पर हम इंदौरी तो सेहत से ज्यादा स्वाद को तवज्जो देते हैं इसलिए पहले बात स्वाद की ही करते हैं।
दाल-पानिए का स्वाद इंदौरियों को इसलिए रास आएगा क्योंकि इसकी दाल बनाने का तरीका बहुत ‘फ्लेक्जीबल’ है। मतलब अगर आप तीखा पसंद करते हैं तो दाल में मिर्च-मसाला बढ़ जाएगा और यदि आप खट्टा-मीठा स्वाद तीखे के साथ चाहते हैं तो दाल वैसी भी बन जाएगी।
आलीराजपुर से करीब 8 किमी दूर लक्ष्मनी में राजेंद्र भोजनालय के दाल-पानिए खासे प्रसिद्ध हैं। इसकी वजह यही ‘फ्लेजिबिलिटी’ है जो लोगों की पसंद के अनुरूप ढल जाती है।
ऐसे बनता है दाल-पानिए
भोजनालय के संचालक राजेंद्र कुमार बघेल बताते हैं कि दाल-पानिए बेहतर बनाने का राज यही है कि इसे पारंपरिक तरीके से ही बनाया जाए। पानिए बाफले की तरह नजर आते हैं पर यह सफेद मक्के के आटे से बनाए जाते हैं। इसके लिए मक्का को रोटी के आटे से मोटा अर्थात् डेढ़ नंबर पिसवाना होता है। आटे में नमक और हल्दी मिलाया जाता है और उसे नर्म बनाने के लिए दूध भी मिलाते हैं। पानी की मदद से इसका आटा गूंधा जाता है और बड़ी लेकिन थोड़ी चपटी लोई बनाकर उसे कंडे पर सेका जाता है।
कंडे पर सेकने के पहले हरेक पानिए को पत्ते में इस तरह लपेटा जाता है कि वह खुले नहीं। इसके लिए खाखरा, बड़ या आंकड़े के पत्ते का इस्तेमाल होता है। पानिए सिक जाने के बाद उसपर प्रेमपूर्वक घी लगाकर परोसा जाता है। इसका साथ देने के लिए अरहर की दाल बनाई जाती है। यूं तो आदिवासी क्षेत्र होने के कारण दाल चटपटी ही बनाई जाती है लेकिन कुछ लोग इसमें मिर्च के साथ अमचूर और गुड़ भी डालते हैं।
सेहत के लिए अच्छा
अब बात थोड़ी सेहत की हो जाए। चूंकि पानिए मक्का के आटे से बनते हैं और आटा मोटा रहता है इसलिए यह सेहत के लिए बेहतर हैं। इसमें देसी घी होने से और भी लाभदायक बन जाता है खासतौर पर जो शारीरिक श्रम ज्यादा करते हैं उनके लिए। दाल में गुड़ और अमचूर का इस्तेमाल उस वक्त कारगर बन जाता है जब आप धूप में सफर कर रहे हों या गर्मी अधिक हो। गुड़ और अमचूर से शरीर में ऊर्जा अधिक वक्त तक बनी रहती है। इसके साथ यदि किसी की सलाद खाने की इच्छा हो तो प्याज और हरीमिर्च मिल जाएगी।