इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। अतिवृष्टि ने मालवा की सोयाबीन पट्टी में भारी तबाही मचाई है। फसल कटाई के शुरुआती आंकड़े बता रहे हैं कि किसी खेत में एक बीघा पर डेढ़ तो कहीं सिर्फ दो क्विंटल सोयाबीन निकल रहा है। क्षेत्र में सोयाबीन की औसत पैदावार करीब साढ़े चार क्विंटल है, लेकिन किसी भी जगह यह आंकड़ा नहीं पहुंच पा रहा है। माना जा रहा है कि इंदौर जिले में 40 से लेकर 60 फीसदी तक नुकसान हुआ है। नुकसानी की अंतिम रिपोर्ट तो आना बाकी है, लेकिन हालात से साफ है कि किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है। इंदौर जिले में लगभग 2.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल बोई गई है। लगातार बारिश के कारण जल्दी पकने वाली सोयाबीन की वेरायटी को तो नुकसान हुआ ही है, देर से पकने वाली किस्में भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। जिले के हर गांव में फसल को नुकसान हुआ है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा।
इंदौर, देपालपुर, हातोद, सांवेर और महू तहसीलों के कई गांवों में तो 80 फीसदी तक नुकसान बताया जा रहा है। राजस्व और कृषि विभाग के फसल कटाई के संयुक्त सर्वे से कई गांव अभी तक अछूते हैं, लेकिन जिन गांवों में सर्वे हुआ है, वहां से खबर आ रही है कि किसानों की लागत निकलना भी मुश्किल है। बताया जाता है कि फसल कटाई प्रयोग के लिए हर गांव में कम से कम छह नमूने लेकर सर्वे करना है। इनमें चार खेतों में पटवारी को और दो जगह ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी को प्रयोग करना है। सनावदिया गांव के किसान नेता जगदीश रावलिया बताते हैं कि हमारे यहां केवल कृषि विभाग के ग्रामसेवक ने ही सर्वे किया है, पटवारी की ओर से अब तक सर्वे की जानकारी नहीं है। अधिकांश सोयाबीन दागी और सड़ी हुई निकल रही है। लगातार बारिश से पौधे पर नीचे की फलियां अधिक खराब हुई हैं।
ऐसे समय जब किसान संकट में है, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी करनी चाहिए। हातोद के किसान भगवत राठौड़ ने बताया कि मेरे खेत में पिछले साल एक बीघा पर 7 क्विंटल सोयाबीन निकली थी, लेकिन इस साल दो-तीन क्विंटल ही निकल रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को फसल बीमा का लाभ दिया जाए। उप संचालक कृषि विजयकुमार चौरसिया ने बताया कि फसल सर्वे में कृषि विभाग तो साथ है ही, लेकिन राजस्व विभाग की भूमिका बड़ी है। फसल कटाई का प्रयोग जारी है और अधिकांश जगह से नुकसान के आंकड़े आ रहे हैं। पूरा सर्वे होने के बाद ही स्थिति साफ होगी।