Indore Temple Accident: रोज सुबह जिंदगी बांटते थे सोलंकी, उस क्रूर सुबह मौत आ गई
Indore Temple Accident: रोज सुबह प्रकृति व साइकिल के साथ एक फोटो लेते और जिंदादिली से भरा एक शेर लिखते।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Fri, 31 Mar 2023 01:55:27 PM (IST)
Updated Date: Fri, 31 Mar 2023 06:35:19 PM (IST)
Indore Temple Accident: ईश्वर शर्मा, इंदौर। बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर की हत्यारी बावड़ी ने जिन जिंदादिल लोगों को शव में बदल दिया, उनमें वह सुनील सोलंकी भी थे, जो इंदौर में रहकर भी विश्व स्तर पर साइकिलिंग के लिए जाने जाते थे। सेना, एनडीआरएफ, एसडीईआरएफ, पुलिस और प्रशासन जिसे पूरी रात शिद्दत से खोज रहे थे, शहर को पता नहीं था कि सुबह वह एक ऐसे शख्स का शव होगा, जिसने अपने पूरे जीवन में हर पल लोगों को जिंदगी ही बांटी है। सुनील सोलंकी अपने जीवन के आखिरी क्षणों में भी बावड़ी के भीतर लोगों को बचाकर जिंदगी बांट रहे थे, लेकिन मौत खुद झपट्टा मारकर उन्हें ले गई। बताया जा रहा है कि उन्होंने लोगों को बचाने की कोशिश की और कुछ को बचाया भी, लेकिन किसी ने बचने के लिए इन्हें पकड़ लिया, जिससे यह पानी में डूब गए।
ब्रह्म मुहूर्त में उठते, रोज 60 किलोमीटर साइकिल चलाते
सुनील सोलंकी इंदौर के प्रतिष्ठित साइकिलिस्ट थे। वे प्रतिदिन औसतन 50 से 60 किलोमीटर साइकिल चलाते थे। प्रातः 4:00 बजे घर से साइकिल लेकर निकलते थे और सुबह 9:00 बजे लौटते थे। वह बहुत अच्छे तैराक भी थे, इसलिए ही उन्हें बावड़ी में लोगों को बचाने का आत्मविश्वास रहा होगा। लेकिन यही आत्मविश्वास उनके लिए काल बन गया।
सोलंकी की आखिरी शब्द थे- आज रामनवमी है, भगवान राम का नाम लेकर आज किताब फाइनल कर देंगे
सोलंकी बहुत शानदार डिज़ाइनर भी थे। हादसे वाले दिन मंदिर जाने से ठीक पहले सुबह 9:50 बजे इन्होंने अमृत महोत्सव की किताब डिजाइन करने के लिए अपने एक क्लाइंट से आखिरी बात की थी। उनके आखिरी शब्द थे - 'सर आज रामनवमी है। भगवान राम का नाम लेकर आज किताब फाइनल कर देंगे।' उसके बाद यह मंदिर में दर्शन करने गए और यह हादसा हो गया।
लोग पूछते - तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो?
वह ठहाका लगाकर कहते- मुस्कुराहट ईश्वर की देन है
सुनील सोलंकी कितने खुशमिजाज थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह सदैव मुस्कुरा कर ही बात करते थे। यदि कोई उनसे पूछ भी लेता कि तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो, तो वे कहते कि मुस्कुराहट ईश्वर की देन है और इससे चेहरे की मांसपेशियों का व्यायाम भी हो जाता है। इतना कहकर वह जोर का ठहाका लगाते और सामने वाले को भी हंसने पर मजबूर कर देते थे।
बेटे को सिखाया था - जीवन भर ईमानदार रहना लोगों की सेवा करना
इनका इकलौता बेटा है, जो इन दिनों दिल्ली में पढ़ता है। यह उसे हर जन्मदिन पर महापुरुषों के चित्र के साथ जीवन के प्रति गहरे संदेश लिख कर देते थे। चूंकि स्वयं डिजाइनर थे इसलिए प्रत्येक जन्मदिन पर स्क्रैप बुक डिजाइन करते और उसमें संदेश देते कि- बेटे जीवन में ईमानदार बने रहना, खूब मेहनत करना और समाज व देश की सेवा करते रहना।
प्रतिदिन सुबह अन्नपूर्णा मंदिर जाते और एक शायरी लिखते
सुनील सोलंकी प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठते, स्नान करते और साइकिल व कैमरा लेकर घर से निकल जाते। सबसे पहले वह अपने घर से करीब 6 किलोमीटर दूर अन्नपूर्णा मंदिर दर्शन करते, फिर इंदौर से बाहर खेतों, पहाड़ियों, पगडंडियों, ग्रामीण इलाकों में साइकिलिंग के लिए निकल जाते। प्रतिदिन 50 किलोमीटर का लक्ष्य रखते थे। वे रास्ते में ही प्रकृति के बीच कहीं अपनी प्रिय साइकिल के साथ अपना एक फोटो लेते और उस पर एक ताजी शायरी लिखकर अपने मित्रों, परिचितों को पोस्ट करते। उनका यह सिलसिला बीते 2 साल से प्रतिदिन चल रहा था।
फिट रहना था जीवन का सबसे बड़ा मंत्र
स्वस्थ रहना उनके जीवन का सबसे बड़ा मंत्र था। फिट रहने का जुनून केवल उन्हें ही नहीं था, बल्कि अपने पूरे परिवार को भी फिट रखते थे। बेटे को भी साइकिलिंग के लिए प्रेरित किया था, साथ ही कई मित्रों को भी उन्होंने साइकिलिंग के शौक से जोड़ दिया था।
कुछ महीने पहले ही जीता था विश्व स्तर का खिताब
फ्रांस की संस्था द्वारा वैश्विक स्तर पर आयोजित साइकिलिंग स्पर्धा में कुछ महीने पहले ही उन्होंने विश्व स्तर पर खिताब जीता था। इस किताब के लिए सोलंकी ने अपनी साइकिलिंग प्रतिदिन 50 किलोमीटर से बढ़ाकर 60 किलोमीटर तक कर ली थी। प्रतियोगिता का नियम था कि रोज 60 किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने मोबाइल एप्लीकेशन के जीपीएस रिकॉर्ड को फ्रांस के एप पर भेजना होता था। इस आधार पर वे विश्व भर में प्रतिदिन 60 किलोमीटर साइकिल चलाने वालों के ग्रुप में शामिल हो गए थे। उनकी तगड़ी कंपटीशन ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अफ्रीकी देशों के साइकिलिस्ट से होती थी। यह एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा थी, जिसमें हार-जीत नहीं बल्कि एक-दूसरे को लंबी दूरी तक साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करने का भाव था।