Varahamihira Astronomical Observatory: स्थान जहां आज भी है ज्योतिष के तर्क और विज्ञान के प्रमाण
Varahamihira Astronomical Observatory: प्रतिदिन यहां करीब 300 शोधार्थी आते हैं जो खगोलीय गणना आदि के बारे में जानना चाहते हैं।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 11 Mar 2023 10:15:49 AM (IST)
Updated Date: Sat, 11 Mar 2023 01:21:40 PM (IST)
Varahamihira Astronomical Observatory इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। वैदिक काल में समय की गणना कैसे होती थी, तारामंडल क्या है, ग्रह-नक्षत्रों की गति का आकलन कैसे होता है, सूर्य-चंद्रमा की गति के बारे में किस तरह जाना जा सकता है यदि यह सब आप समझना चाहते हैं तो इसके लिए आपको डोंगला गांव जाना होगा। इंदौर से करीब 90 किमी दूर स्थित इस डोंगला गांव में आप इतिहास के उस साक्ष्य से परिचित होंगे जिसके जरिए वर्तमान भविष्य के समय की गणना करता है। विज्ञान के इस दौर में जहां हर बात तर्क और तथ्य पर टिकी हुई है, वहीं आदिकाल से तर्क और तथ्य से वैदिक गणना का प्रमाण डोंगला की यह भूमि दे रही है जहां आज भी समय की गणना प्राचीन पद्धति से होती है।
इंदौर से उज्जैन होते हुए जब आप महिदपुर जाते हैं तो घटिया गांव बायीं ओर मुड़कर डोंगला गांव पहुंचा जा सकता है। घटिया से इसकी दूरी करीब 3-4 किमी है। वैसे तो इसका अस्तित्व सदियों से है लेकिन मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने इसे नए सिरे से विकसित किया और अब यह पर्यटन के साथ अध्ययन के लिए भी मुनासिब स्थान बन गया है। ‘वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला’ नाम से प्रसिद्ध यह वेधशाला विज्ञान और ज्योतिष दोनों में ही रूचि रखने वालों के लिए आकर्षण व अध्ययन का केंद्र है।
रोमांच से भर देता भास्कर यंत्र
ट्रेवलर ज्ञानदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि यह स्थान विज्ञान में रूचि रखने वालों के लिए तो ज्ञान का खजाना लिए ही है साथ ही शोधार्थियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां देश का दूसरा सबसे बड़ा टेलीस्कोप लगा है। यहां लगे 0.5 मीटर के टेलीस्कोप को कम्प्यूटर के जरिए किसी भी दिशा में घुमाकर ग्रह-नक्षत्रों गति समझी जा सकती है साथ ही उनकी तस्वीर भी ली जा सकती हैं। यहां लगे भास्कर यंत्र से सूर्य की गति भी समझी जा सकती है। वक्त देखने के लिए हम जिस घड़ी का उपयोग करते हैं वह कार्य यह भास्कर यंत्र करता है। इस यंत्र को देखना, समझना रोमांच से भर देता है।
कई खूबी वाला यह स्थान
‘वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला’ के प्रभारी डा. भुपेश सक्सेना बताते हैं कि प्रतिदिन यहां करीब 300 शोधार्थी आते हैं जो खगोलीय गणना आदि के बारे में जानना चाहते हैं। कर्क रेखा उज्जैन से होकर गुजरी है। विज्ञान की मानें तो खगोलिय घटनाओं और भौगोलिक परिस्थितियों में आए बदलाव के चलते अब यह कर्क रेखा डोंगला में विस्थापित हो गई है। जिसकी खोज श्रीधर वाकणकर ने की थी। 2013 से यहां खगोल अनुसंधान आदि का कार्य हो रहा है। यहां की छत घूमने वाली (रोटेटिंग रूफ) है जो महज बटन दबाते ही खुल जाती है। वेधशाला का आडिटोरियम अंडाकार बनाया गया है। इस वेधशाला में 5 मीटर डोम में 20’’ का टेलिस्कोप स्थापित है। वेधशाला का मुख्य उद्देश्य प्रदेश व देश के खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान व विकास कार्य को बढ़ावा देना है।
बनता है पंचांग
खगोल विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान की दृष्टी से यह स्थान बहुत मायने रखता है। भौगोलिक दृष्टी से कर्क रेखा ग्राम डोंगला से होकर गुजरती है। इस स्थान को कर्क रेखा और योगोत्तर रेखा का मिलन बिंदु भी माना जाता है। चूंकि यह स्थान कर्क रेखा पर स्थित है इसलिए ग्रह-नक्षत्र आदि की गणना भी यहां से होती है। आज भी यहां से पंचांग तैयार होता है। यहां बने भास्कर यंत्र की मदद से कई लोग शोधकार्य कर रहे हैं।