MP High Court रतलाम। इंदौर उच्च न्यायालय ने एक महिला कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी पुत्री को अनुकंपा नियुक्त नहीं देने के मामले में मध्यप्रदेश शासन पर 20 हजार रुपये का जुर्माना किया है। साथ ही संबंधित जनजाति कार्य विभाग कार्यालय के अधिकारी की विभागीय जांच करने और आवेदिका को तीन माह में अनुकंपा नियुक्ति देने के आदेश भी दिए हैं।
अभिभाषक प्रवीण कुमार भट्ट ने बताया कि याचिकाकर्ता दीप्ति सोलंकी और यशवनी सोलंकी की माता सरोज सोलंकी शिक्षाकर्मी के पद पर वर्ष 1998 से नियुक्त थी। वर्ष 2001 में अध्यापक संवर्ग में संविलियन कर उन्हें नियमित किया गया था। 21 फरवरी 2013 को सरोज सोलंकी की उसके पति विक्रम सिंह सोलंकी ने हत्या कर दी । बाद में विक्रम सिंह की मृत्यु जेल में रहते हुए हो गई।
दीप्ति सोलंकी ने इसके बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे तत्कालीन सहायक आयुक्त जनजाति कार्य विभाग ने 12वीं कक्षा में 50 प्रतिशत से कम अंक होने के आधार पर 5 अगस्त 2017 को निरस्त कर दिया था। जिसके बाद दीप्ति सोलंकी व उसकी बहन ने इंदौर उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की थी।
उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2018 को याचिका स्वीकार कर शासन को आदेश दिए थे कि प्रावधान अनुसार दीप्ति सोलंकी को शैक्षणिक योग्यता अनुसार अनुकंपा नियुक्ति दी जाए और सरोज सोलंकी के मृत्यु उपरांत उनके सभी लाभ दोनों पुत्रियों को दें। तत्कालीन सहायक आयुक्त ने न्यायालय के आदेश के विपरीत 29 मार्च 2019 को पुनः आदेश जारी कर 50 प्रतिशत से कम अंक होने के आधार पर दीप्ती सोलकी का अनुकंपा नियुक्ति आवेदन निरस्त कर दिया था। इन आदेशों के विरुद्ध पुनः उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की गई।
इस याचिका को स्वीकार कर उच्च न्यायालय आदेश दिया कि दिप्ती सोलंकी को 90 दिन में शैक्षणिक योग्यता के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति और दोनों बहनों की मां की मृत्यु के बाद मिलने वाले सभी लाभ 30 दिन में देकर इसकी जानकारी न्यायालय में पेश करने के आदेश जारी किए हैं। साथ ही मध्यप्रदेश शासन के प्रमुख सचिव को आदेशित किया है कि विसंगतियों को लेकर जो भी अधिकारी जिम्मेदार है, उसकी विभागीय जांच कर कार्रवाई की जाए।