इंदौर, नईदुनिया रिपोर्टर। आपातकाल के समय सरकार का साथ नहीं देने पर गायक किशोर कुमार के गीतों को बैन कर दिया गया था। यहां तक कि रेडियो, टीवी पर उनके गाने तक प्रसारित नहीं किए जाते थे और न ही लोग उनके साथ नए गाने रिकॉर्ड कर रहे थे। जब यह जानकारी मोहम्मद रफी को लगी तो पहले उन्होंने किशोर कुमार से मिलकर पूरे मामले को समझा और फिर संजय गांधी से बैन हटाने की गुजारिश की। जिसे बाद में मान लिया गया।
मशहूर अभिनेता शम्मी कपूर द्वारा साझा किया गया ये वाकया डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'दास्तान-ए-रफी' के जरिए लोगों तक पहुंचा। इस फिल्म का प्रदर्शन 'सूत्रधार फिल्म सोसायटी' द्वारा रविवार शाम प्रीतमलाल दुआ सभागार में किया गया। इस पूरे वाकये में ये बात खासतौर पर गौर करने लायक है कि किशोर कुमार को गाने न मिलने पर बतौर प्रतिस्पर्धी गायक मोहम्मद रफी को बहुत फायदा हो सकता था, मगर उन्होंने इस मौके को भुनाने के बजाय दोस्ती का फर्ज निभाया। डॉक्यूमेंट्री में ये भी बताया गया कि राजेश खन्ना की फिल्म 'आराधना' हिट होने के बाद जब किशोर कुमार हिंदी फिल्म संगीत के परिदृश्य पर पूरी तरह छा गए तो कई लोग रफी पर ताने कसने लगे थे, मगर जब किशोरदा को ये बात मालूम पड़ी तो पूरी सख्ती से उन लोगों को रोकते हुए उन्होंने कहा कि मैं रफी साहब की पूजा करता हूं, इसलिए उनके खिलाफ किए जा रहे दुष्प्रचार को पूरी तरह बंद किया जाए। ऐसी थी रफी-किशोर की अटूट दोस्ती।
यूं हिट हुआ 'तारीफ करूं क्या उसकी'
डॉक्यूमेंट्री में शम्मी कपूर ने एक और वाकया साझा करते हुए बताया कि फिल्म 'कश्मीर की कली' के मशहूर गाने 'तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया' को वो आखिर में लंबा खींचना चाहते थे, ताकि उस दौरान अपने अभिनय का भरपूर जलवा दिखा सकें। जब इस बारे में उन्होंने संगीतकार ओपी नैयर से बात की तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद शम्मी रफी के पास गए तो उन्हें ये आइडिया बहुत पसंद आया। फिर उन्होंने नैयर को भी इसके लिए मना लिया और इस तरह गाना हिट हो गया।
फटी शर्ट के बदले दर्जनभर सूट, साड़ियां और पैंट-शर्ट
रफी के मित्र और उस दौर के चित्रकार मित्र शरद वयाकुल ने एक यादगार अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक बार बैठक में किसी वजह से मैं फटी शर्ट पहनकर चला गया था। रफी साहब कुछ बोले नहीं, बस मेरे कंधे पर हाथ रखकर खड़े हो गए। शाम को उनका ड्राइवर कार में मेरे लिए एक दर्जन पैंट, शर्ट और सूट के साथ घरवाली के लिए भी कई साड़ियां लाया और कहा कि ये सब रफी साहब ने भिजवाया है। शरद के मुताबिक ऐसा ही और यादगार किस्सा ये था कि एक दिन रफी साहब मेरे पास कार लेकर आए और बोले कि इसमें 100 चटाइयां रखी हैं। क्या आप इन्हें पास वाली मस्जिद तक पहुंचवा देंगे। मुझे मालूम पड़ा है कि वहां नमाज के दौरान बैठने के लिए चटाइयां नहीं हैं। ऐसे थे हम सबके अजीज रफी साहब। उन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म में उस दौर की कई अन्य नामचीन हस्तियों ने भी मोहम्मद रफी से जुड़ी अपनी दिलचस्प यादें साझा कीं। कार्यक्रम में संजय पटेल ने भी रफी साहब के बारे में रुचिकर जानकारियां दीं।