Mahakal Song : इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। महाकाल लोक के लिए बना गीत ‘भारत मध्ये स्वयंभू ज्योतिर्लिंग यजामहे, है परब्रह्म शिव शंभू दयामहे’ केवल स्तुति गान ही नहीं, बल्कि यह हमारी धार्मिक मान्यताओं के भी बहुत करीब है। इसके निर्माण के बाद जब विचार किया गया तो देखा कि यह गीत सवा माह में तैयार हुआ। इसमें 108 संगतकारों ने संगीत दिया है तो नाथ संप्रदाय के 21 वादकों ने बीन बजाई है। यही नहीं, इसमें मंत्रोच्चार का गान भी 21 ब्राह्मणों ने किया। मेरा मानना है कि जब स्वयं को ईमानदारी से ईश्वर को समर्पित कर देते हैं तो फिर वही होता है जिसके लिए आपका जन्म हुआ है। उसके द्वारा निर्धारित कार्य का आप माध्यम बन जाते हैं।
यह बात ख्यात गायक पद्मश्री कैलाश खेर ने सोमवार को इंदौर आगमन पर मीडिया से हुई चर्चा में कही। प्रेस क्लब में "चाय पर चर्चा" कायर्क्रम में कैलाश खेर ने अपने जीवन और गायन से जुड़े कई मुद्दों पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा शहर है जिस पर फिल्मों का भी प्रभाव है तो इल्मों का भी। भारतीयों का अध्यात्म से तानाबाना पहले से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में भारत जाग रहा है और यह बड़ा बदलाव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जगाने का जो कार्य किया, वह पहले किसी ने नहीं किया। मैं उन्हें अवधूत अवतारी मानता हूं। उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार पर ध्यान दिया। केवल मंदिर ही नहीं बल्कि मंदिर के बाहर फूल व पूजन सामग्री बेचने वालों तक पर ध्यान दिया जो अभी तक किसी ने नहीं दिया था। यदि हमारी संस्कृति को बचाना है तो गाय और गायकों को बचाना होगा। यह पुरातन सभ्यता का अंग है। आवश्यक्ता है कि हर व्यक्ति एक गाय को गोद ले। हमारे उत्सव, पर्व, पूजन पद्धति, जीवनशैली विज्ञानी भी है और सनातनी भी। वास्तव में सनातन जीवन पद्धति है उसे धर्म कहकर संकुचित नहीं किया जा सकता।
बाहूबली के अलावा कोई फिल्म नहीं देखी - मैं ना तो फिल्म देखता हूं और न ही टीवी शो। मेरे घर में टीवी ही नहीं है। मैंने जितनी भी फिल्मों के लिए गाया, उनमे से सिवाए बाहूबली के कोई फिल्म नहीं देखी। बाहूबली तो मैंने कई बार देखी। यह फिल्म इसलिए देखी क्योंकि वह भारत की संस्कृति, सभ्यता को दर्शाती है। यह ऐसी फिल्म है जो बड़ों का सम्मान, राष्ट्र का सम्मान, वचन की रक्षा आदि का पालन करने की सीख हमें देती है। वास्तव में हर व्यक्ति अपने आप में एक किताब, एक फिल्म है जो गहन अध्ययन कराता है।