Madhya Pradesh News: जितेंद्र यादव, इंदौर (नईदुनिया)। मेट्रो रेल प्रोजेक्ट इंदौर और भोपाल के ड्रीम प्रोजेक्ट हैं, जो आने वाले सौ साल के लिए होंगे, लेकिन ऐसी बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में भी बड़े पदों पर लोग किस तरह जुगाड़ से काबिज हो जाते हैं, इसका एक उदाहरण मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एमपीएमआरसी) है। एमपीएमआरसी के टेक्निकल डायरेक्टर के पद पर वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन के इंजीनियर जितेंद्र दुबे हैं।
दुबे करीब तीन साल से इस पद पर हैं। उनकी नियुक्ति पर लंबे समय से सवाल उठ रहे हैं। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी दुबे की नियुक्ति पर सवाल उठाए थे और कहा था कि वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन के इंजीनियर का मेट्रो में क्या काम?
एमपीएमआरसी के पूर्व एमडी और प्रदेश के नगरीय विकास के पूर्व प्रमुख सचिवों ने भी दुबे को इस पद से हटाकर मेट्रो और रेलवे के किसी अफसर को बैठाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन बड़े राजनेताओं के प्रश्रय के कारण दुबे अब तक टिके हैं।
मेट्रो प्रोजेक्ट के कई कामों में देरी की वजह भी यही सामने आ रही है कि तकनीकी पद पर मेट्रो के जानकार अधिकारी नहीं हैं। अपनी नियुक्ति और हटाने के सवाल पर एमपीएमआरसी के टेक्निकल डायरेक्टर दुबे सफाई देते हैं कि शासन मुझे जो काम देता है, वही काम कर रहा हूं। इस तरह के प्रोजेक्ट में समस्याएं और देरी भी होती है। काम भले ही देरी से शुरू हुआ हो, लेकिन हम अगस्त 2023 तक प्रोजेक्ट पूरा कर लेंगे।
एमपीएमआरसी में रेलवे के सुरक्षा विभाग के सेवानिवृत्त कमिश्नर चेतन बक्षी को सलाहकार, रेलवे के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक भुवनेश प्रसाद खरे को डायरेक्टर प्रोजेक्ट और मध्य प्रदेश सेतु निगम की सेवानिवृत्त कार्यपालन यंत्री शोभा खन्नाा को महाप्रबंधक सिविल बनाया गया था।
इन तीनों विशेषज्ञों को अनुबंध पर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया था। इनके कार्यकाल में इंदौर और भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट का सर्वे पूरा हुआ और कई बाधाएं दूर हुईं। इन विशेषज्ञों का अनुबंध खत्म होने के बाद एक साल से अधिक समय से ये पद खाली हैं। बताया जाता है कि इनके अनुबंध समाप्त होने के बाद एमपीएमआरसी में अब मेट्रो ट्रेन, रेलवे सुरक्षा और मेट्रो ट्रैक में बनने वाले पुल-पुलिया व डक्ट से संबंधित विशेषज्ञ अधिकारी नहीं हैं।