Taste Of Indore: लस्सी जिसकी सादगी में भी है स्वाद का खजाना
Taste Of Indore: अपनी सादगी से लोगों का दिल जीतने वाली पंजाबी लस्सी 1919 से इंदौर की जान बनी हुई है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 08 Apr 2023 02:14:44 PM (IST)
Updated Date: Sat, 08 Apr 2023 02:14:44 PM (IST)
Taste Of Indore: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। लस्सी बनाना कोई राकेट साइंस नहीं। बावजूद इसके अच्छी लस्सी बनाना हर किसी के बस की बात भी नहीं होती। हर व्यक्ति, हर दुकान और हर स्थान पर बनने वाली लस्सी का अपना एक अलग और दिलचस्प जायका होता है, अपना अंदाज होता है। इंदौर में भी लस्सी के निराले अंदाज हैं। खानपान की दुनिया में एकतरफा राज करने वाले इस शहर में ऐसी कई दुकानें हैं, जहां लस्सी अपने अलग-अलग अंदाज से इतराती नजर आती है।
कहीं इसके स्वाद को सूखे मेवों की खातिरदारी बढ़ा देती है तो कहीं केसर की रंगत इसके तेवर बढ़ा देती है। कहीं इसे पीने के बजाए खाने वाली लस्सी का तमगा मिला है तो कहीं इसकी सादगी स्वाद के शौकीनों को अपना दीवाना बना लेती है। इसकी सादगी में ही स्वाद का खजाना है। सादगी की बात करें तो ऐसी ही एक लस्सी शहर के उस इलाके में मिलती है जहां तकनीक, सजावट, उपहार और प्रसाधन का बड़ा बाजार हर दिन लगता है। चकाचौंध वाली दुकानों के बीच अपनी सादगी से लोगों का दिल जीतने वाली पंजाबी लस्सी 1919 से इंदौर की जान बनी हुई है।
जेल रोड़ पर नावेल्टी मार्केट में सिर्फ गैजेट्स की ही दुनिया नहीं सजती बल्कि लस्सी की दावत भी मेहमानों की खातिरदारी करती है। 1919 से शहर में इसी स्थान पर संचालित हो रही दूध की इस दुकान पर बहादुर सिंह सोलंकी ने पंजाब की तासीर को मालवा में कुछ इस तरह परोसा कि अब वह यहां की शान बनकर रह गई है। पंजाब में बनने वाली लस्सी जिसका हर कोई मुरीद होता है उसे इंदौरियों की जुबां तक का सफर कराने के लिए इन्होंने पंजाब में रह रहे मित्रों से यह हुनर सीखा और उसे विस्तार इंदौर आकर दिया। बाद में इनके बेटे शंभुसिंह सोलंकी और अब पोता चंद्रभान सिंह इस स्वाद को ज्यों का त्यौं आगे बढ़ा रहा है।
चंद्रभान सिंह बताते हैं कि आज भी यहां बनने वाली लस्सी की निर्माण विधी यहां तक की दही जमाने से उसे परोसने तक का तरीका वही रखा गया जो दादाजी ने बताया था। अपने ही फार्म के पशुओं से प्राप्त दूध से दही जमाया जाता है और ताजे दही से ही लस्सी बनाई जाती है। दही जमाने का तरीका जरूर खास है जो इसके स्वाद को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें सिर्फ शकर मिलाई जाती है। आज भी पीतल के भगोनों में ही दूध औटाया जाता है और दही 8 घंटे से अधिक नहीं रखा जाता। लस्सी मशीन से नहीं बल्कि लकड़ी की रवई से ही बिलोकर तैयार की जाती है।
किसी भी प्रकार का एसेंस या अतिरिक्त स्वाद बढ़ाने की कोशिश नहीं होती ताकि लस्सी का मूल स्वाद लोगों तक पहुंचे। 500 और 300 एमएल लस्सी की क्षमता वाले स्टील के गिलास में लस्सी भरने के बाद दही की और भी मोटी परत बिछाई जाती है जो इसके स्वाद और टैक्स्चर को खास बना देती है। मौसम चाहे कोई भी हो सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक यहां लस्सी का लुत्फ लेने वालों की भीड़ लगी रहती है।