Heritage Of Indore: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। जितना प्रसिद्ध इंदौर का कपड़ा बाजार है उतना ही प्रसिद्ध यहां के कपड़ा बाजार के बीच बना वह मंदिर है जो न केवल ईश्वर में आस्था रखने वालों को बल्कि कलात्मकता को निहारने वालों और अध्ययन, शोध करने वालों को भी अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है। शहर के इतवारिया बाजार में दुकानों के बीच राजस्थान की हवेली की याद दिलाती इमारत जितनी खूबसूरत बाहर से नजर आती है उससे भी कई गुना अधिक सुंदर भीतर से है। दिलवाड़ा के जैन मंदिर संगमरमर पर की गई नक्काशी के कारण जग प्रसिद्ध है तो इंदौर का यह मंदिर कांच से सजा होने के कारण सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। बैल्जियम से लाए गए रंगीन कांच और उसके साथ चांदी की कारीगरी वाला यह मंदिर 'कांच मंदिर' के नाम से जाना जाता है। यह तीन मंजिला मंदिर 11 जुलाई को अपने निर्माण के 101 वर्ष पूर्ण कर रहा है।
भगवान शांतिनाथ को समर्पित यह जैन मंदिर होलकर शासनकाल में शहर के सेठ हुकमचंद, कस्तूरचंद और त्रिलोकचंद्र कासलीवाल ने बनवाया था। 1912 में इस मंदिर की नींव रखी गई थी और 1921 में मंदिर का कार्य पूरा हुआ था। मंदिर का संचालन और इसके रखरखाव को लेकर उस वक्त जो व्यवस्था लागू की गई थी वह अब तक बदस्तूर जारी है। मंदिर के साथ ही शांतिनाथ दिगंबर जैन धर्मशाला (हुकुमचंद धर्मशाला) और दुकानें बनाई गई थी ताकि उसके जरिए जो भी आय हो उससे मंदिर का रखरखाव किया जा सके।
रंगीन कांच और चांदी की चमक
मंदिर में केवल दीवार ही नहीं बल्कि छत और फर्श भी कांच से सजाई गए गए हैं। कांच के पीछे चांदी की परत लगाकर उसकी पादर्शिता को रोका गया। इस मंदिर का निर्माण जयपुर और ईरान से कारीगर बुलवाकर कराया गया था। पौराणिक कथाओं का अंकन भी कांच से हुआ तो गर्भगृह में कांच कुछ इस तरह से लगाया गया कि वेदी पर विराजित मूर्तियों के प्रतिबिंब स्वरूप 24 जिन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं।
तीन मंजिला मंदिर का हर भाग है खास
कांच मंदिर सांस्कृतिक कार्यक्रम के संयोजक प्रिंसपाल टोंग्या के अनुसार शुरुआती दौर में यह मंदिर केवल दर्शनार्थियों के लिए था लेकिन बाद में इसे पर्यटकों के लिए भी खोल दिया गया। वर्तमान में सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक पर्यटक इसे देख सकते हैं। तीन मंजिला इस मंदिर के प्रथम तल पर देव मूर्तियां स्थापित हैं और उुपरी मंजिल में सरस्वती भंडार बनााया गया जहां 417 ग्रंथों का संग्रह है जिसमें हस्तलिखित पांडुलिपि भी है। जबकि तलघर का उपयोग भंंडारण और संग्रहण के रूप में होता है।
मंदिर निर्माण के लिए छोड़ दिया था घी
महावीर ट्रस्ट मध्य प्रदेश के महामंत्री बाहुबली पांड्या बताते हैं करीब पांच हजार वर्गफीट में बने इस मंदिर के निर्माण में उस समय करीब पांच लाख रुपये खर्च हुए थे। यह मंदिर जितना खूसबूरत है उतनी ही दिलचस्प इसके निर्माण की गाथा भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के वक्त बैल्जियम से कांच आने में वक्त लग रहा था और जिसके चलते मंदिर का कार्य रूक गया था। तब तीनों सेठों ने यह प्रण लिया था कि जब तक मंदिर का कार्य पूरा नहीं हो जाएगा तक तक तीनों परिवार घी का सेवन नहीं करेंगे।
फोटो: प्रफुल्ल चौरसिया, आशु