अनिल त्रिवेदी, इंदौर। Acharya Vidyasagar ji जब मैंने आचार्य विद्यासागर की जिंदगी पर आधारित किताब 'उर्ध्वरेता' लिखनी शुरू की तो अंदाजा नहीं था कि ये प्रकाशन के पहले ही इतनी चर्चित हो जाएगी। छपने के पहले ही इसके नाम पर दो विश्व रिकॉर्ड दर्ज हो चुके थे। पहला, प्रिंट होने के पहले तेज गति से 10 हजार प्रतियां बुक होने का और दूसरा ये संख्या 13749 तक पहुंचने का। इस किताब की अब तक 15640 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इस किताब के प्रकाशन के पूर्व ही इसके लिए मुझे प्रतिष्ठित 'राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त विशिष्ट पुरस्कार' भी मिल चुका था।
यह कहना है इंदौर के लेखक आलोक शर्मा का। आचार्य विद्यासागर के करीब दो दशक बाद इंदौर आगमन के मौके पर उनसे जुड़े अनुभवों और किस्सों को साझा करते हुए आलोक ने बताया कि आचार्य की किताब 'मूकमाटी' पढ़ने से पहले मैं साधु, संतों, महात्माओं और आचार्यों पर बहुत यकीन नहीं करता था। आचार्य पर किताब लिखने से पहले जब मैं उनसे अनुमति लेने गया तो मैंने पाया कि वे 'कामत्यागी, आजन्म ब्रह्मचारी, भीष्म जैसा दृढ़ प्रतिज्ञ और महादेव के समान सदा रामरस में आनंदमग्न रहने वाले हैं। इसलिए नाम रखा 'उर्ध्वरेता'।
आलोक के मुताबिक सामान्य परिस्थितियों में एक आदमी एक साल में बिजली, वाहन, पानी और दूसरे कई उपकरणों का उपयोग कर लगभग 20 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित करता है। यह कार्बन मुख्यतः कार्बन डाइ ऑक्साइड और मीथेन की शक्ल में पर्यावरण को हानि पहुंचाता है। ओजोन परत को भी इससे नुकसान पहुंचता है। आर्थिक रूप से इसका आकलन किया जाए तो एक मीट्रिक टन कार्बन से करीब 3500 रु. की हानि होती है। एक साल में ये नुकसान करीब 70 हजार रु. और व्यक्ति की आयु औसतन 70 वर्ष मानी जाने पर करीब 49 लाख रु. का नुकसान होता है।
इसके अलावा औसत जीवनकाल में एक व्यक्ति की जरूरत पूरी करने के लिए 5-6 बड़े पेड़ काटे जाते हैं। आर्थिक रूप से एक पेड़ अपने जीवन में औसतन 25 लाख रु. की ऑक्सीजन देता है। 6 पेड़ काटे जाने पर ये आंकड़ा करीब डेढ़ करोड़ हो जाता है। इसमें व्यक्ति द्वारा उत्सर्जित कार्बन से होने वाली हानि करीब 49 लाख रु. जोड़ दें तो एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में प्रकृति को करीब 2 करोड़ रु. का नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा वह रोजाना कम से कम दो रु. का पानी व्यर्थ बहाता है। नुकसान में इसे जोड़ने पर एक आदमी द्वारा प्रकृति को नुकसान का आंकड़ा दो करोड़ रु. से भी अधिक हो जाएगा।
इसके विपरीत दिगंबर संतों की आवश्यकता बहुत सीमित होती है। इसलिए वे उक्त दो करोड़ रुपए का बड़ा हिस्सा बचाते हैं। एक संत अपने जीवनकाल में कम से कम एक हजार लोगों को मितव्ययी जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इससे उनका कार्बन उत्सर्जन 45 प्रतिशत तक कम हो जाता है। अगर एक हजार लोग दो हजार करोड़ रुपए का कार्बन उत्सर्जित करते हैं तो दिगंबर संतों की संगत से ये 900 करोड़ रु. तक कम हो जाता है।
वैज्ञानिक तथ्य है कि शाकाहारी भोजन के मुकाबले उतनी ही मात्रा का मांसाहारी भोजन तैयार करने में कई गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जित होता है। औसतन एक संत अपने जीवनकाल में अगर एक हजार लोगों को शाकाहारी बनाता है तो एक इससे प्रति व्यक्ति के जीवनकाल में औसतन 7 लाख रु. का कार्बन उत्सर्जन घटता है तो एक हजार लोगों पर ये राशि 70 करोड़ रु. होगी। इस तरह एक संत द्वारा जीवनकाल में करीब 972 करोड़ रु. की बचत होती है।
राष्ट्रपति भवन से मंगवाई गई किताब की प्रतियां
जब भी कोई नई किताब लिखता हूं तो उसकी एक-एक प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन भेजना मेरी आदत में शुमार है, लेकिन उस वक्त मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब राष्ट्रपति भवन से फोन कर 'उर्ध्वरेता' की और प्रतियां मंगाई गईं।