Indore News: राघव तिवारी, इंदौर। कहते हैं न कि कोई काम न करने के लिए हजार बहाने भी कम पड़ जाते हैं, वहीं अगर कुछ करने का जज्बा हो तो उसके लिए एक वजह ही काफी होती है। हौसले और हिम्मत से भरी ये सूक्ति इन दिनों शहर में चल रहे दिव्य कला मेले में आए उन हुनरमंदों ने सच कर दिखाई है, जो देह से भले दिव्यांग हैं, लेकिन संकल्प से मानो सम्राट हैं। मेले में करीब 100 दिव्यांगों ने अपने स्टाल लगाए हैं।
आर्टिफिशियल गहने, हैंडीक्राफ्ट, हैंडलूम, अचार, क्राफ्ट समेत कई प्रकार के स्टाल लगाकर ये दिव्यांगजन आम लोगों के साथ कदम कदम से मिलाकर चल रहे हैं। इनमें से किसी को नौकरी से निकाला गया, तो किसी को नौकरी पर रखा ही नहीं गया, लेकिन इन्होंने कभी हार नहीं मानी। इन्होंने स्वयं का काम शुरू किया और अपने साथ-साथ कई अन्य लोगों को भी रोजगार दिया।
पढ़ाई पूरी करने के लिए शुरू किया काम
भोपाल के रहने वाले अमन बुंदेला बचपन से ही अपने दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। अमन ने बताया कि 12वीं करने के बाद पढ़ने का मन था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पापा मजदूरी करते थे। पढ़ाई पूरी करने के लिए नौकरी करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने नौकरी नहीं दी। इसके बाद एक कंपनी में फाइन क्राफ्ट का काम सीखा। इसमें बांस से बनने वाले फ्राफ्ट, आर्ट वर्क के जरिए कई प्रकार की चीजें बनाना सीखीं।
इसके लिए पहले उस कंपनी के साथ ही काम करके पूरा काम सीखा। अमन बताते हैं कि वे इस कंपनी से पहले एक सामाजिक संस्था में काम करते थे। फिलहाल वे बीते पांच साल से क्राफ्टिंग का काम कर रहे हैं। स्वाभिमानी इतने हैं कि बिजनस में किसी से मदद नहीं लेते। हां, जब कभी पूरी कोशिश करने के बाद भी बैठना, कुछ उठाना या चलना नहीं हो पाता, तभी जाकर किसी से मदद लेता हैं।
गलत इंजेक्शन ने बनाया दिव्यांग, अब 25 को दे रहे रोजगार
मूल रूप से आगरा (उत्तर प्रदेश) के निवासी 38 वर्षीय विष्णु कुमार को पांच साल की उम्र में भयंकर बुखार ने जकड़ लिया। गांव में ही एक डाक्टर को दिखाने पर उसने गलत इंजेक्शन लगा दिया, जिसके कारण विष्णु के दोनों पैरों में पोलिया हो गया। उस घटना ने इन्हें जीवनभर के लिए दिव्यांग बना दिया। किंतु विष्णु ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी दिव्यांगता को कभी अपने हौसले पर हावी नहीं होने दिया। सन 2000 में दिल्ली की एक कंपनी में विष्णु ने नौकरी की। करीब 10 साल बाद कंपनी बंद हो गई।
इसके बाद विष्णु ने एक सामाजिक संस्था में आर्टिफिशियल गहने बनाने की कोचिंग ली। दुर्भाग्य देखिए कि करीब सात वर्ष बाद वह संस्था भी बंद हो गई। विष्णु कहते हैं- जब कंपनी बंद हुई तो मुझे दुख हुआ, किंतु तब तक मैंने पूरी तरह से आर्टिफिशियल गहने बनाना सीख लिया था। दूसरों को कोचिंग देने से बेहतर तब मैंने खुद का काम शुरू किया। करीब पांच साल पहले विष्णु ने आर्टिफिशियल गहने बनाने का काम शुरू किया और अब उनके ग्रुप में 25 लोग शामिल होकर रोजगार पा रहे हैं।
दिव्यांगता के कारण नौकरी से निकाला तो शुरू कर लिया अपना काम
भोपाल निवासी 24 वर्षीय सोहित राय बचपन से ही दिव्यांग होने की वजह से उपेक्षित होते रहे। बचपन में दोस्तों के तानों से लेकर भविष्य के लिए नौकरी पाने तक में उन्हें ताने सुनने को मिले। वर्ष 2020 में सोहित ने भोपाल स्थित एक माल में नौकरी शुरू की। सोहित ने बताया कि पैरों में दिक्कत होने की वजह से कैशियर बनकर खड़े रहने में मुझे काफी मुश्किल होती थी, किंतु आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से नौकरी करना मेरी विवशता थी।
किंतु तब दुख का पहाड़ टूट पड़ा जब कुछ ही दिनों में सोहित को यह कहकर नौकरी से निकाल दिया गया कि दिव्यांग होने की वजह से माल की छवि पर असर पड़ रहा है। ग्राहक माल में आने से कतरा रहे हैं। इससे बाद सोहित ने कई जगहों पर नौकरी की तलाश की, लेकिन किसी ने भी उन्हें नौकरी नहीं दी। किंतु सोहित ने हिम्मत नहीं टूटने दी और अपने हौसले के दम पर बैंक से 50 हजार रुपये का लोन लेकर कपड़े का व्यवसाय शुरू किया। इसमें परिवार ने भी 50 हजार रुपये की सहायता की। वर्तमान में सोहित का कारोबार ठीक चल रहा है। खाली समय में वे एसएससी की तैयारी करते हैं।