उदय प्रताप सिंह, इंदौर। स्वच्छ व स्मार्ट शहर के रूप में विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने वाला इंदौर शहर करीब एक हजार साल पुराना है। चंद्रभागा के सामने व पंढरीनाथ मंदिर के पीछे बने 10वीं शताब्दी के इंद्रेश्वर मंदिर के नाम पर इस शहर का पहले नाम इंद्रपुर पड़ा। उसके बाद 1818 में होलकर शासकों को अंग्रेजों के कारण महेश्वर से अपनी राजधानी छोड़कर इंदौर आना पड़ा। उस समय अंग्रेजों ने होलकरों को लड़ाई में हरा दिया था और मंदसौर संधि के तहत होलकर शासक इंदौर आए।
उसी दौरान इंदौर में भव्य राजवाड़ा और रेसीडेंसी कोठी की स्थापना हुई। होलकर शासकों के आने के बाद ही इंदौर शहर में औद्योगिक विस्तार और विकास होता गया। आज इंदौर शहर मप्र की वाणिज्यिक राजधानी है। ठीक 100 साल पहले पेट्री गिडिज ने 1918 में इंदौर का पहला मास्टर प्लान तैयार किया।
स्कॉटलैंड (इंग्लैंड) से आए आर्किटेक्ट प्लानर पेट्री गिडिज ने अपने मास्टर प्लान में तब एजुकेशन हब, कॉलेज कैम्पस व एमटीएच कम्पाउंड जैसे मेडिकल हब, खेल मैदान के लिए जगह छोड़ी थी। सांस्कृतिक व सामाजिक आयोजनों के लिए दशहरा मैदान, लालबाग, माणिक बाग भी तब से ही मौजूद हैं। होलकर शासनकाल में तो इंदौर का विकास उसी प्लान के आधार पर हुआ लेकिन आजादी के बाद 1950 से स्वरूप में काफी बदलाव आया।
1818 में महेश्वर से इंदौर बना होलकरों की राजधानी
1875 में तुकोजीराव द्वितीय के कार्यकाल में इंदौर देश के अन्य शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा
1939 में सात लाख रुपए की लागत से तैयार हुआ था यशवंत सागर
1948 में आजादी के बाद 'यूनाइटेड स्टेट ऑफ ग्वालियर, इंदौर और मालवा' बना। इसे मध्यभारत के नाम से जाना गया।
1950 में एमवाय अस्पताल का निर्माण शुरू हुआ जो 1955 में पूरा हुआ।
1968 में इंदौर नगर सेविका की स्थापना हुई। इसका मौजूदा स्वरूप इंदौर नगर निगम है।
1905 में इंदौर शहर को बिजली मिली।
शहर की रगों में कायम है दानशीलता
पिछले कई वर्षों में इंदौर शहर में भोगौलिक, आर्थिक व सामाजिक स्तर पर का काफी बदलाव हुआ है। सर सेठ हुकमचंद ने मिलों व कपड़ा बाजार के रूप में उस समय इंदौर शहर को विशेष ख्याति दिलाई, वहीं उनके प्रयास से कई औषधालय और सामाजिक क्षेत्र में स्कूलों की स्थापना हुई। पहले इंदौर दानदाताओं का शहर कहलाता था और आज शहर ने ऑर्गन डोनेशन के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल किया, उससे स्पष्ट है कि शहर की रगों में दानशीलता आज भी कायम है। डॉ. एम रायकवार, इतिहासकार
जब शहर की आबादी 40 हजार थी, तब यशवंत सागर डैम बनवाया
होलकर शासकों ने इंदौर शहर को काफी खूबसूरती से बसाया। उन्होंने उस समय ही शहर में एयरपोर्ट और सेंट्रल इंडिया के सबसे बड़े 500 बेड वाले एमवाय अस्पताल की नींव रख दी थी। जब शहर की 40 हजार आबादी थी, उस दौरान शहरवासियों को पानी की उपलब्धता के लिए यशंवत सागर की स्थापना की। राजेन्द्र सिंह, इतिहासकार
पर्यावरण के विनाश के साथ हुआ शहर का विकास
जिस तरह मुंबई शहर का 80 किलोमीटर तक में विस्तार हुआ है, वैसे ही इंदौर शहर का भी विस्तार होना चाहिए। अभी इंदौर 15 से 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित है। -पद्मश्री भालू मोंढे, पर्यावरणविद् व अध्यक्ष नेचर वालेंटियर संस्था
मध्यभारत में आज भी व्यापार के लिए सेंट्रल पॉइंट है इंदौर
पुराने समय से लेकर अब तक व्यापार की पद्धति में बदलाव आया है। इंदौर में मिलें बंद होने के कारण कपड़ा निर्माण कार्य तो बंद हुआ लेकिन अब भी रेडीमेड कपड़ों का कारोबार यहां पर कायम है। नंदकिशोर अग्रवाल, अनाज व्यापारी
मेरे पिता की सलाह पर होलकर महाराज ने बनवाया था लाल अस्पताल
1946 में जब इंदौर में टीबी का प्रकोप फैला तो मेरे पिताजी होलकर राजवंश के राजगुरु पं. विश्वनाथ राजोपाध्याय ने यशवंत राव होलकर से अस्पताल खोलने का आग्रह किया। उनकी बात का मान रखते हुए मल्हारगंज में टीबी हॉस्पिटल व चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी की स्थापना की गई। वर्तमान में यह लाल अस्पताल के नाम से जाना जाता है। - डॉ. विजय राजोपाध्याय, वंशज होलकर वंश के राजगुरु