नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर (Indore BRTS Corridor)। देश में सिटी बसों को सार्वजनिक परिवहन रूप में शुरू करने के बाद बीआरटीएस इस परिकल्पना के साथ बनाया गया था कि यह सार्वजनिक परिवहन में मील का पत्थर साबित होगा। बनने के बाद से ही बीआरटीएस प्रोजेक्ट विवादों में रहा और जनप्रतिनिधियों में भी आधे इसके पक्ष तो आधे विपक्ष में रहे।
अब इसी ऊहापोह के बीच सरकार भोपाल के बाद इंदौर में भी बीआरटीएस को हटाने के निर्णय पर पहुंच गई है। कोलंबिया के बगोटा में वर्ष 2000 में लागू बीआरटीएस के मॉडल को इंदौर ने अपनाया। इंदौर के अधिकारी उस मॉडल को देखने भी गए और उसे इंदौर में आकर लागू किया।
इंदौर में 106.50 किलोमीटर हिस्से में बीआरटीएस की परिकल्पना की गई लेकिन इसमें से पायलट कॉरिडोर के रूप में एबी रोड पर 11.45 किलोमीटर हिस्सा ही बन सका। अब 12 साल में ही इस बीआरटीएस को हटाने की नौबत आ गई है।
आईआईटी व अन्य विशेषज्ञों की रही थी अहम भूमिका
जब बीआरटीएस को तैयार किया जा रहा था तो उसके लिए आइआइटी दिल्ली, डब्ल्यूआरआइ व सैप्ट के विशेषज्ञों की भी अहम भूमिका रही। बीआरटीएस को तैयार करने का उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देना था। एक आइ बस में कुल 65 यात्री सफर करते हैं, जिससे 20 कारों का बोझ सड़क पर कम होता है।
यदि कोई सरकार बसों को प्राथमिकता देती है तो बीआरटीएस को रखना होगा। इसे हटाने से कोई फायदा नहीं है। यदि उसमें कोई दिक्कत है तो स्टडी कर दूर किया जाना चाहिए। बीआरटीएस से बसों को हटाया तो बसें ट्रैफिक जाम में फंसेंगी। प्रदूषण भी बढ़ेगा। - गीतम तिवारी, प्रोफेसर आईआईटी दिल्ली (वे आइआइटी दिल्ली के ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड इंज्युरी प्रिवेंशन सेंटर की पूर्व विभागाध्यक्ष हैं )
पायलट प्रोजेक्ट तो सफल रहा, वाहनों की बढ़ी संख्या ने उठाए सवाल
बीआरटीएस के निर्माण में लोगों ने आगे बढ़कर स्वेच्छा से जमीन दी। कॉरिडोर पर आइ-बसें यात्रियों से भरी रहती हैं। बीआरटीएस का पायलट प्रोजेक्ट तो सफल रहा, लेकिन शहर की जनसंख्या के साथ वाहनों की संख्या भी बढ़ी। बढ़े वाहनों के लिए जगह की कमी हो रही है। आई-बस में भले कार वाले सफर नहीं कर रहे लेकिन आम लोगों के लिए यह काफी उपयोगी है। - केके माहेश्वरी, तत्कालीन चीफ इंजीनियर आईडीए
बगोटा में जगह ज्यादा चौड़ी होने के कारण बीआरटीएस का नेटवर्क आसानी से बना था। इंदौर में पायलट कॉरिडोर के लिए जमीन लेने की मशक्कत थी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के हिसाब से इंदौर का बीआरटीएस काफी उपयोगी रहा। - वीके गंगवाल, तत्कालीन अधीक्षण यंत्री, आईडीए
इंदौर में बीआरटीएस का परिकल्पना थी कि बसों के लिए डेडिकेटेड कॉरिडोर बने। यदि इसकी रिंग पूरी बनती तो ज्यादा लोग उपयोग करते। यदि आइ-बसों को कॉरिडोर के बजाए मिक्स लेन में चलाया जाएगा तो 15 मिनट का सफर आधे घंटे में पूरा होगा। - आशुतोष मुदगल, तत्कालीन चीफ इंजीनियर आईडीए