Hingot Yudh Gautampura: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। इंदौर से 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा में बुधवार को देवनारायण भगवान के दर्शन के बाद तुर्रा गौतमपुरा और कलंगी रूणजी दल के योद्धाओं ने हिंगोट युद्ध लड़ा। इसमें 31 दर्शक और 15 योद्धा घायल हो गए। हालांकि कोई गंभीर घायल नहीं है। कोरोना के कारण दो साल युद्ध नहीं हो पाया था।
मालूम हो कि गौतमपुरा गांव का हिंगोट युद्ध देशभर में प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। शाम को दोनों दल के योद्धा जुलूस के रूप में अतिप्राचीन देवनारायण मंदिर पहुंचे। शाम करीब पांच बजे दोनों दलों के योद्धा उस्तादों के साथ मैदान में पहुंचे। इसके बाद उस्तादों ने युद्ध की घोषणा के रूप में हिंगोट छोड़ी। संकेत मिलते ही दोनों दलों ने एक-दूसरे पर हिंगोट से वार करना शुरू कर दिया। बचाव के लिए योद्धा हाथ में ढाल भी लिए हुए थे। इस दौरान 450 पुलिसकर्मियों का बल तैनात रहा।
भाईचारे की परंपरा निभाने के लिए होता है युद्ध
गौतमपुरा और रुणजी गांवों के बीच इसकी शुरुआत हुई थी। यह भाईचारे की परंपरा निभाने के लिए लड़ा जाता है। युद्ध की शुरुआत कब हुई थी, इसका इतिहास किसी को नहीं पता है। इसमें हार-जीत का निर्णय नहीं होता है। परंपरा के तौर पर यह युद्ध दो घंटे लड़ा जाता है।
गौतमपुरा में करीब दो सौ वर्षों से हिंगोट युद्ध की परंपरा चल रही है। हालांकि कोरोना महामारी की वजह से दो वर्ष इसका निर्वाहन नहीं हो सका था। हजारों लोग युद्ध की इस परंपरा के साक्षी बनते हैं। खास बात यह कि इस युद्ध में कोई हार-जीत नहीं होती। गले मिलकर योद्धा युद्ध की शुरुआत करते हैं और गले मिलकर ही युद्ध का समापन होता है। गौतमपुरा के योद्धाओं के दल का नाम तुर्रा होता है तो रूणजी गांव के योद्धाओं का कलंगी।
युद्ध मैदान के पास बने देवनारायण भगवान के मंदिर में पूजा के साथ युद्ध की शुरुआत होती है। हिंगोट युद्ध कैसे शुरू हुआ और यह परंपरा में कैसे तब्दील हुआ इसका प्रमाण तो किसी के पास नहीं लेकिन बताया जाता है कि मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक मुगल सेना के घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे। निशाना सटीक बैठे इसके लिए वे कड़ा अभ्यास करते थे। धीरे-धीरे यही अभ्यास परंपरा में बदल गया।
यह होता है हिंगोट
हिंगोरिया के पेड़ का फल होता है हिंगोट। नींबू आकार के इस फल का बाहरी आवरण बेहद सख्त होता है। युद्ध के लिए पेड़ों से हिंगोट तोड़कर इसका गूदा निकालकर इसे सुखाया जाता है। फिर इसमें बारूद भरकर इसे तैयार किया जाता है। हिंगोट सीधी दिशा में चले, इसके लिए हिंगोट में बांस की पतली किमची लगाकर इसे तीर जैसा बना दिया जाता है।
महामारी की वजह से दो वर्ष टला युद्ध
गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन हिंगोट युद्ध की परंपरा करीब दो सौ वर्ष पुरानी है। कोरोना महामारी की वजह से दो वर्षों से इस परंपरा का निर्वाहन नहीं हो सका था। प्रशासन ने आयोजन की अनुमति ही नहीं दी थी। इस वर्ष आयोजन को लेकर ग्रामीणों में ही नहीं आसपास के शहरों में भी जबरदस्त उत्साह है।
12 से 15 रुपये में हिंगोट
गौतमपुरा में हिंगोट का मूल्य 12 से 15 रुपये प्रति नग है। स्थानीय निवासियों ने बताया कि किसी समय हिंगोट एक-डेढ़ रुपये में आसानी से मिल जाता था लेकिन अब लागत बढ़ने की वजह से इसके दाम बढ़ गए हैं।
प्रशासन की तैयारियां
बुधवार को युद्ध को लेकर प्रशासन तैयारियों में जुट गया था। युद्ध मैदान के दोनों ओर सुरक्षा जालियां लगाई। बताया जा रहा है कि दोपहर से ही युद्ध स्थल के आसपास वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से रोक दी गई। युद्ध मैदान के आसपास हिंगोट की बिक्री भी प्रतिबंधित कर दी गई ।