खंडवा। 'इक ओंकार सतनाम करतापुर..." यानी ईश्वर एक है और सभी में समाए हैं। 1511 ईस्वी में सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानकदेवजी तीर्थनगरी ओंकारेश्वर आए थे और उन्होंने पंडितों के साथ शास्त्रार्थ में यह संदेश दिया था। इसलिए ओंकारेश्वर के गुरुद्वारे को गुरुनानकदेवजी द्वारा प्रदेश में की गई यात्रा से जुड़े छह प्रमुख सिख धर्मस्थलों में एक माना जाता है। अपने गुरु के संदेश को आत्मसात कर सिख समाज गुरुद्वारे में अरदास के साथ मानव सेवा में जुटा है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास स्थित इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में नियमित अरदास होती है।
गुरुनानकदेवजी के चरण यहां पड़ने से इसे पवित्र माना जाता है। तीर्थनगरी आने वाले हर श्रद्धालु के साथ बड़ी संख्या में सिख समाजजन भी दर्शन करने यहां जरूर पहुंचते हैं। गुरुनानकदेवजी के ओंकारेश्वर आने का उल्लेख धार्मिक कथाओं और प्रवचनों में भी है। अलवर के ज्ञानी संतसिंह मस्कीन ने अपने प्रवचन और किताबों में गुरुनानकदेवजी के ओंकारेश्वर आने का उल्लेख किया है। बताया जाता है कि ओंकारेश्वर के बाद नानकदेव खंडवा भी आए थे। खंडवा के श्री गुरुसिंघ सभा गुरुद्वारे के ज्ञानी जसबीरसिंह राणा कहते हैं कि गुरुनानकदेवजी 1535 में खंडवा आए थे। उन्होंने ओंकार पर्वत से एक ओंकार वाणी कही थी। खंडवा का गुरुद्वारा 1954 में बना और यहां नियमित कीर्तन होते हैं। अमृतसर से नांदेड़ जाने वाली सचखंड एक्सप्रेस में प्रतिदिन सिख समाज लंगर वितरित करता है।
गुरुद्वारे में बढ़ेंगी सुविधाएं
मध्य प्रदेश सरकार गुरुनानकदेवजी का 550 वां प्रकाश पर्व भव्य रूप से मना रही है। इस संदर्भ में गुरुनानकदेवजी की यादों से जुड़े प्रदेश के छह प्रमुख सिख धर्मस्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का निर्णय भी शासन ने लिया है। ओंकारेश्वर गुरुद्वारे में विकास कार्य और सुविधाओं के विस्तार के लिए प्रदेश सरकार दो करोड़ रुपए देगी।
उज्जैन का गुरुनानक घाट गुरुद्वारा आस्था का केंद्र
उज्जैन। हिंदुओं के साथ ही सिख समाज के लिए भी उज्जैन तीर्थ है। असल में सन् 1500 के आसपास गुरुनानकदेवजी यहां पधारे थे। शिप्रा के तट पर इमली के पेड़ के नीचे उन्होंने तीन शबद भी कहे थे। गुरुग्रंथ साहब में अंक 223 और 411 में उन शबद का उल्लेख है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी, अमृतसर ने शिप्रा के तट को गुरुद्वारा गुरुनानक घाट के रूप में विकसित किया है। करीब 100 करोड़ रुपए की लागत से यहां भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है।
बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे ठहरे थे गुरुनानक देव
बुरहानपुर। सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानकदेवजी ताप्ती तट पर जिस जगह विराजे थे, राजघाट का वह प्राचीन गुरुद्वारा आज भी विद्यमान है। राजघाट गुरुद्वारे के ज्ञानी मुकुंदसिंहजी एवं लोधीपुरा बड़े गुरुद्वारे के ज्ञानी चरणसिंहजी बताते हैं कि भक्तों को मार्गदर्शन देने और सच्चा रास्ता दिखाने के लिए गुरुनानकदेवजी ने कई यात्राएं की। वे संभवत: नासिक से होते हुए मप्र के बुरहानपुर पहुंचे थे। यहां वे ताप्ती नदी के कि नारे ठहरे थे। यहां से वे ओंकारेश्वर गए और फिर इंदौर। महिपतजी ने अपनी पुस्तक लीलावती में इंदौर यात्रा का वर्णन कि या है। राजघाट स्थित प्राचीन गुरुद्वारे में गुरुनानकदेवजी कु छ दिन रुके थे और भक्तों को दर्शन और प्रवचन दिए थे। सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंहजी भी बुरहानपुर के लोधीपुरा स्थित बड़े गुरुद्वारे में कुछ दिन रुके थे।