GST Tax System: जीएसटी में आइटीसी क्लेम बनाया कठिन, नियम ऐसे कि करे कोई-भरे कोई
GST Tax System: कार्यशाला में बोले कर विशेषज्ञ, कोर्ट के निर्णयों की की व्याख्या। जब भी कोई कानून बनता है और लागू होता है तो उसकी खूबियों के साथ कमियां भी सामने आती है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Tue, 09 Jan 2024 12:58:07 PM (IST)
Updated Date: Tue, 09 Jan 2024 12:58:07 PM (IST)
जीएसटी में आइटीसी क्लेम बनाया कठिन, नियम ऐसे कि करे कोई-भरे कोई HighLights
- जीएसटी कानून को लागू करते समय इसकी सबसे बड़ी खासियत इसमें वर्णित इनपुट टैक्स क्रेडिट यानी आइटीसी के नियम को बताया गया था।
- अब आइटीसी को ही सबसे दुरुह बनाते हुए ऐसा स्वरुप दे दिया गया है कि करे कोई और भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
- कानून की बारीकियों और उन पर आए न्याय निर्णयों को समझने के लिए 200 से ज्यादा कर पेशेवर कार्यशाला में शामिल हुए।
GST Tax System: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। जीएसटी कानून को लागू करते समय इसकी सबसे बड़ी खासियत इसमें वर्णित इनपुट टैक्स क्रेडिट यानी आइटीसी के नियम को बताया गया था। इसे जीएसटी की रीढ़ करार दिया जा रहा था। लेकिन अब आइटीसी को ही सबसे दुरुह बनाते हुए ऐसा स्वरुप दे दिया गया है कि करे कोई और भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। जीएसटी में आइटीसी की व्यवहारिकता का विश्लेषण करते हुए कर और कानून विशेषज्ञों ने यह बात कही। सोमवार शाम माहेश्वरी भवन में मध्य प्रदेश टैक्स ला बार एसोसिएशन ने आइटीसी पर विभिन्न कानूनी निर्णयों के विश्लेषण पर कार्यशाला का आयोजन किया था।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में कस्टम और सेंट्रल जीएसटी विभाग के अपर आयुक्त मोहम्मद सालिक परवेज मौजूद थे। कानून की बारीकियों और उन पर आए न्याय निर्णयों को समझने के लिए 200 से ज्यादा कर पेशेवर (सीए-करसलाहकार व एडवोकेट) कार्यशाला में शामिल हुए। अपर आयुक्त मोहम्मद सालिक परवेज ने कहा कि कर सलाहकार विभाग और व्यवसायी को जोड़ने वाले पुल की तरह काम करते हैं। राजस्व संग्रहण में मदद कर आप राष्ट्र निर्माण में भी योगदान देते हैं।
उन्होंने कहा कि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जब भी कोई कानून बनता है और लागू होता है तो उसकी खूबियों के साथ कमियां भी सामने आती है। जीएसटी में ऐसी कमियां है तो आप सभी कर पेशेवरों की मदद से वे दूर होंगी और इस दिशा में काम भी हो रहा है। इससे पहले कार्यशाला की शुरुआत करते हुए प्रमुख वक्ता एडवोकेट एके दवे ने कहा कि आइटीसी को तमाम धाराओं, नियमों और अधिसूचनाओं से बांध दिया गया है।
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आइटीसी को करदाता का हक बताया गया था उसे पाने के लिए उसे खासी मशक्कत करना पड़ रही है। कई मामलों में तो माल की आपूर्ति करने वाले की अनियमितता के चलते प्राप्तकर्ता की आइटीसी रोकी जाती है। सुप्रीम कोर्ट भी निर्णय दे चुका है कि अनियमितता के मामले में सप्लायर पर कार्रवाई होना चाहिए ना कि प्राप्तकर्ता पर।हाई कोर्ट ने भी विभिन्न निर्णय पारित किए हैं। इसमें कुछ पक्ष में है कुछ विपक्ष में। ऐसे में असमंजस की स्थितियां बनती है। शीर्ष न्यायालय को इन बिंदुओं पर संज्ञान लेकर स्वत: कार्रवाई करना चाहिए।
कानून का उद्देश्य खत्म हो रहा
दूसरे वक्ता एडवोकेट अरविंद चावला ने कहा कि आइटीसी
जीएसटी की रीढ़ है लेकिन जितना सहज इसके बारे में सोचा गया था उससे विपरीत यह लागू हो रहा है। इसमें जो प्रविधान लागू कर दिए गए हैं तो स्थिति ऐसी बन गई है कि करे कोई और भरे कोई। माल का सप्लायर टैक्स नहीं भरता तो वसूली माल खरीदने वाले से की जा रही है जो अनुचित है।
100 से अधिक ऐसे अव्यवहारिक नियम बना दिए गए हैं जिनकी आड़ लेकर आइटीसी के जायज क्लेम को रोका जा रहा है। चावला ने कहा कि देश में सिर्फ पांच प्रतिशत लोग ऐसे होंगे जो आदतन टैक्स चोरी करते हैं। इनके कारण आइटीसी की क्लेम प्रक्रिया को अव्यवहारिक बनाकर शेष ईमानदार 95 करदाताओं को परेशान किया जा रहा है।
मप्र टैक्स ला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विन लखोटिया ने कहा कि एक निश्चित समय के बाद आइटीसी क्लेम लेने से रोका जा रहा है। यह अव्यवहारिक है। इसके खिलाफ भी याचिका कोर्ट में पहुंची है। ऐसे तमाम मामलों में कोर्ट लगातार निर्णय दे रहा है। कमर्शियल टैक्स प्रेक्टिशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष देवेंद्र जैन ने भी कार्यशाला में मौजूद अतिथि व सदस्यों का स्वागत किया। प्रदेशभर के एक हजार कर सलाहकार आनलाइन माध्यम से कार्यशाला में शामिल हुए थे।