इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि, District Hospital Indore।कभी पश्चिम क्षेत्र की आठ लाख से ज्यादा जनता का सहारा बना जिला अस्पताल इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। छह महीने में नई इमारत बनाने का दावा था। इसे पूरा करना तो दूर, तीन साल में पुरानी इमारत का मलबा तक नहीं हटा। फंड की कमी के चलते अटके काम की वजह से यह अस्पताल इन दिनों जंगल में तब्दील होने लगा है। काम कब शुरू होगा, कोई बताने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में पश्चिम क्षेत्र की निर्धन व मध्यवर्गीय रहवासियों को महंगे निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर होना पड़ रहा है।
14 जनवरी 1988 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा ने जिला अस्पताल का लोकार्पण किया था। इंदौर दुग्ध संघ की पुरानी इमारत में इसे इस आश्वासन के साथ शुरू किया गया था कि जल्द ही यहां बहुमंजिला नई इमारत तैयार कर दी जाएगी। सालों-साल जिला अस्पताल पुरानी इमारत में चलता रहा। नई इमारत को लेकर कई बार योजनाएं बनीं लेकिन कभी भोपाल तो कभी इंदौर में अटक गई। आखिर 2018 में पुनर्निर्माण के लिए 54 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत हुई और टेंडर भी हो गए। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के माध्यम से गुजरात की कंपनी को ठेका भी दे दिया गया। योजना के मुताबिक जिला अस्पताल की इमारत को जी+3 बनाना तय हुआ था।
2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद जिला अस्पताल का निर्माण अटक गया। कांग्रेस शासन में पुरानी इमारत को तोड़ने का काम हुआ लेकिन राजनीतिक उठापटक के चलते काम फिर अटक गया। पुरानी इमारत का मलबा अब भी जहां-तहां पड़ा है। हाल ही में शासन ने पूर्व के टेंडर को निरस्त कर निर्माण के लिए मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल को टेंडर की जिम्मेदारी सौंपी है। सिंतबर में एक बार फिर टेंडर हुए जिसमें एक दर्जन के लगभग कंपनियों ने हिस्सेदारी निभाई। फंड जारी कर निर्माण शुरू होना था लेकिन कोरोना महामारी के चलते काम फिर अटक गया। कभी राजनीतिक उठापटक तो कभी आचार संहिता के चलते काम शुरू ही नहीं हो सका।
स्टोर में चल रही है ओपीडी
जिला अस्पताल की पुरानी इमारत टूटने से पश्चिम क्षेत्र की आठ लाख से ज्यादा जनता सीधे-सीधे प्रभावित हो रही है। उसे इलाज के लिए निजी अस्पतालों का मुंह देखना पड़ रहा है। जिला अस्पताल परिसर में बने दवाओं के स्टोर में अस्थायी ओपीडी चल रही है लेकिन मरीजों की संख्या के हिसाब से यह अपर्याप्त है।