Tourist Places Near Indore: धार की भोजशाला....जहां इतिहास अपनी कला और सृजनशीलता के देता है लिखित प्रमाण
Tourist Places Near Indore: पत्थरों से बनी यह इमारत पहली नजर में तो किसी खंडहर से कम नजर नहीं आती लेकिन जब इसे गौर से देखा जाए और इसकी बारीकियों पर नजर डाली जाए तो कलाकारी के साथ इतिहास के साक्ष्य भी परत दर परत सामने आने लगते हैं।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 15 Oct 2022 11:17:57 AM (IST)
Updated Date: Sat, 15 Oct 2022 03:29:55 PM (IST)
Tourist Places Near Indore इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। भोजशाला एक ऐसा स्थान जो न केवल ईश्वर में आस्था रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। जहां के बेजान पत्थर न जाने कितनी कहानियां कहते हैं। जहां की इमारत ने न जाने कितने बदलते दौर को देखा, महसूस किया और सहा है। बावजूद इसके आज भी यह स्थान मौन रहकर अपनी गौरवगाथा के साथ स्थापत्य कला की दास्तां बयां करता है। इंदौर से करीब 60 किमी दूर धार में बनी भोजशाला परमारकालीन इमारत है जहां भारत की स्थापत्य कला को करीब से देखा जा सकता है। माना कि यह स्थान संप्रदाय के नाम पर विवादों में रहा पर उसके इतर इस स्थान की खूबसूरती पर्यटन प्रेमियों को आकर्षित कर ही लेती है। फिर चाहे यहां की छत पर की गई नक्काशी हो या स्तंभों पर नजर आती आकृतियां।
पत्थरों से बनी यह इमारत पहली नजर में तो किसी खंडहर से कम नजर नहीं आती लेकिन जब इसे गौर से देखा जाए और इसकी बारीकियों पर नजर डाली जाए तो कलाकारी के साथ इतिहास के साक्ष्य भी परत दर परत सामने आने लगते हैं। भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने करवाया था और कहा जाता है कि उस वक्त यहां देश के प्रकांड विद्वान आकर शास्त्रार्थ किया करते थे। वक्त के साथ परंपरा, मान्यता और यहां की बनावट में भी बदलाव आया और अब यह कौमी एकता का प्रतीक भी बन गया जहां वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है तो नमाज भी अदा होती है। तमाम विवादों से परे जाकर देखा जाए तो प्रदेश का यह स्थान वास्तुकला और शिल्पकारी के लिए एक उत्तम स्थान है। यही वजह है कि वर्तमान में यह पुरातत्व विभाग के अधीन होकर संरक्षित किया जा रहा है।
बलुआ पत्थर से बनी खूबसूरत इमारत
इतिहासकार डा. डीपी पांडे के अनुसार भोजशाला का निर्माण राजपूत शैली में हुआ। यहां के 84 स्तंभ और छत पर की गई नक्काशी इसका प्रमाण है। कुछ हद तक यहां मुगल शैली का अक्स भी नजर आता है। यह बदलाव कब और कैसे हुआ यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह सच है कि इस एक इमारत में दो शैलियों को करीब से देखा जा सकता है। यहां स्थापित वाग्देवी की मूर्ति वर्तमान में इंग्लैंड के संग्रहालय में है जबकि कुछ मूर्तियां अभी भी हैं। भोजशाला का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है।
इतिहासकार के अनुसार यहां खोदाई में कई मूर्तियां भी मिली जो कालखंड का प्रमाण देती हैं। अभिलेख के अनुसार यहां पारिजात मंजरी नाटक और कूर्म शतक की रचना भी हुई थी। यहां की दीवार पर अभिलेख भी हैं जो देवनागरी लिपि में हैं। इनमें से कुछ अभिलेख वक्त की मार और संरक्षण के अभाव में तो नष्ट हो गए लेकिन कुछ को संरक्षित किया गया है जो शोधार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।