नईदुनिया.इंदौर
अक्सर ऐसा होता है कि सरकरी विभागों में निर्माण करना होता है और पैसा नहीं होता, लेकिन सेंट्रल म्यूजियम की कहानी उलटी है। यहां निर्माण और विकास कार्य के लिए 1 करोड़ 75 लाख रुपए मंजूर हुए डेढ़ साल से ज्यादा समय गुजर गया, लेकिन आज तक काम नहीं कराया जा सका। नौबत यह आ गई कि शासन ने पुरानी योजना रद्द कर अब नए सिरे से काम करने की योजना बनाकर मंगवाई है। इसे सरकारी प्रक्रिया की गफलत कहें या अधिकारियों की लापरवाही कि समय, सुविधा और पैसा जैसी तमाम जरूरतें पूरी होने के बावजूद पुरातत्व विभाग शहर के सेंट्रल म्यूजियम में निर्माण कार्य नहीं करवा पाया। बिल्डिंग में नई गैलरियां, डिस्प्ले आदि की जरूरतों के हिसाब से 2013 के शुरुआती महीने में तेरहवें वित्त आयोग के तहत 1 करोड़ 75 लाख रुपए स्वीकृृत किए गए थे, लेकिन आज तक काम नहीं हो सका। लिहाजा निर्माण और विकास की पुरानी कार्य योजना ही रद्द करनी पड़ गई। अधिकारियों का कहना है कि पैसा शासन के पास है, और अब नई योजना बनाकर भेजी गई है जो जल्द मंजूर होगी। तभी काम शुरू हो सकेगा।
2009 से हो रही है बात
पुरातत्व धरोहरों को पसंद करने वाले लोग कई साल से सेंट्रल म्यूजियम के हाल और रंगत बदलने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ऐसा होने में अब भी अरसा लगेगा। गौरतलब है कि म्यूजियम में सुधार करने और नई गैलरियां बनाने की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही है। म्यूजियम भवन संवारने की बातें 2009 से हो रही हैं। इसके बाद 2010 में इसके लिए योजनाएं कागजों पर आईं और 2011 में प्रस्ताव बनाकर भेजा गया। 2013 में 1 करोड़ 74 लाख रुपए मंजूर हुआ और इसके लिए टेंडर डालने की प्रक्रिया शुरू की गई। मगर फिर भी काम न हो सका। दरअसल, योजना बनाते वक्त कंस्ट्रक्शन रेट काफी कम थे। बाद में प्रक्रिया में इतनी देरी हो गई कि कंस्ट्रक्शन और रिनोवेशन के रेट बढ़ गए और किसी भी ठेकेदार ने रिनोवेशन के काम में रुचि नहीं ली। एक, दो नहीं बल्कि 6 बार टेंडर डलवाए गए और सातवीं बार भी कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली।
आखिरकर रद्द हो गई योजना
जब बार-बार कोशिश करने और टेंडर डालने के बाद भी बात नहीं बनी तो अधिकारियों ने शासन को लिखित जानकारी दी और तत्कालीन स्थितियों से अवगत कराया। ऐसे में शासन की ओर से पुराना प्रस्ताव रद्द कर दिया गया और नई कार्य योजना बनाकर भेजने के निर्देश दिए गए। यानी इतने समय पैसा रखा रहा और अधिकारी काम नहीं करवा पाए। कुछ दिनों पहले ही बढ़ी हुई कीमतों को ध्यान में रखकर रेट रिवाइज कर नई योजना का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। इसमें पिछले प्रस्ताव में से कई काम कम किए गए हैं, क्योंकि पैसा उतना ही है जितना पहले था। व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों को कई सुविधाओं में समझौता करना होगा। गौरतलब है कि योजना भेजने के बाद भी काम पूरा होने में डेढ़ से दो साल का वक्त लग सकता है।
कमियां कई, मगर ध्यान नहीं
यहां बरसों से दर्शकों को कई तरह की परेशानियां झेलना पड़ रही हैं, लेकिन आज तक इनकी सुध नहीं ली गई। ऐतिहासिक महत्व की मूर्तियों और अवशेषों को रखने तक की जगह नहीं है। गैलरी बनाने के लिए बस बात ही हो रही है। लाइब्रेरी और रीडिंग रूम नहीं होने के कारण लोगों को पर्याप्त जानकारी तक नहीं मिल पाती। न ही बैठक व्यवस्था है और न ही कैंटीन।
ये होने थे काम
- सात नई गैलरियां बनना हैं।
- लाइब्रेरी और रीडिंग रूम बनेगा।
- बैठक व्यवस्था की जाएगी।
- कैंटीन शुरू किया जाएगा।
- नए डिस्प्ले तैयार होंगे।
- आकर्षक लाइट फिटिंग होगी।
- अलग-अलग दीवारों पर थीम बेस्ड पेंटिंग की जाएगी।
2013 में मंजूर हुआ पैसा रखा रहा, लेकिन रिनोवेशन और कंस्ट्रक्शन के रेट बढ़ने के कारण ठेकेदारों ने रुचि नहीं ली। कई बार के टेंडर के बाद भी काम नहीं कराया जा सका। नई योजना बनाकर भेजी गई है। मगर अब भी पैसा उतना ही मिलेगा।
-प्रकाश परांजपे , संग्रहाध्यक्ष, केंद्रीय संग्रहालय
रिनोवेशन के नाम पर पौने दो करोड़ रुपए मंजूर हुए थे। योजना पुराने रेट से बनाई गई थी और बाद में रेट बढ़ गए। कुछ दिनों पहले दोबारा योजना बनाकर भेजी गई है। जल्द ही वो मंजूर हो जाएगी। पैसा लेप्स नहीं होगा, लेकिन काम कम कर दिए गए हैं ताकि जल्द काम शुरू हो सकें
-एसआर वर्मा, सब इंजीनियर, पुरातत्व एवं अभिलेखागार