By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Mon, 08 Jan 2024 09:58:04 AM (IST)
Updated Date: Mon, 08 Jan 2024 09:58:04 AM (IST)
Ayodhya Ram Mandir: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होना है। बरसों बाद राम मंदिर बनने से उन कारसेवकों की यादें ताजा हो चुकी हैं, जो 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने वालों में शामिल थे। इन कारसेवकों ने अपने अनुभव साझा किए।
राजेश पाठक कहते हैं कि ढांचा गिराने के बाद वहां जो स्थिति बनी तो लगा कि घर पहुंचना मुश्किल है। माता-पिता को वहीं से पत्र लिखा था और आखिरी बार उन्हें अपने हाल-चाल बताए, जबकि अखिलेश तिवारी ने बताया कि ढांचा गिरने के बाद वहां कर्फ्यू की स्थिति बनी गई। बचते-बचाते निकलने के बाद भी पकड़े गए। दस दिन जेल में रहे, पर अब लगता है कि राम मंदिर का बरसों पुराना सपना पूरा हो गया।
पहले भौगोलिक स्थिति का लिया जायजा
कारसेवकों की
लोकमान्य नगर की गुप्त वाहिनी में
बजरंग दल के शहरी सहसंयोजक राजेश पाठक भी शामिल थे। वे बताते हैं कि 2 दिसंबर 1992 को इंदौर से अयोध्या के लिए गुप्त वाहिनी के कारसेवकों का दल रवाना हुआ। 50-70 कारसेवकों का अलग-अलग समूह बनाया। अगले दिन अयोध्या पहुंच गए। अर्जुनदास आश्रम में संगठन ने ठहरने की व्यवस्था करवाई। चूंकि 1990 में कारसेवकों को घेरकर मारा था, जिसमें मेरा भाई घायल हुआ था।
ऐसी परिस्थिति दोबारा न बनें, इसके लिए पहुंचते ही हम लोगों ने पूरे क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का जायजा लिया। यह पता लगाने की कोशिश की गई कि कभी जवानों ने घेर लिया तो कौन-सा रास्ता निकलने के लिए सुरक्षित रहेगा। तीन दिन तक अलग-अलग समूह घूमता रहा। 6 दिसंबर 1992 की सुबह पहले चाय पीने गए। वहां एक बुजुर्ग सीआरपीएफ का आरक्षक मिला। पूछा कि इस बार भी गोली चलेगी तो उन्होंने कहा कि पिछली बार भी हमारी तरफ से कोई फायरिंग नहीं हुई थी। कुछ असामाजिक तत्वों ने चलाई थी। मगर इस बार यह नौबत नहीं आएगी।
हिंदुत्व की भावना और भगवान राम के प्रति आस्था ने मन में जुनून पैदा कर दिया और सुबह बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाने के लिए देशभर से कारसेवक आए। महज कुछ मिनटों में मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। सुरक्षाकर्मियों ने कारसेवकों को दौड़ा दिया। यहां-वहां से बचते-बचाते शाम 6 बजे अर्जुनदास आश्रम पहुंचा। ढांचा को तोड़ने के बाद वहां से छलांग लगाने से पैर में चोट आई।
आश्रम के संत ने लगाने के लिए बाम दिया। दो दिन- रुकने के बाद अयोध्या से निकलने, मगर इंदौर पहुंचने के दौरान कई बार हमारी ट्रेन पर लखनऊ के बाद से हमला होने लगा। ट्रेन में सवार कारसेवकों ने वहां भी लोगों से लड़ाई की। बाद में पुष्पक ट्रेन से भोपाल आते समय इटारसी के पहले भी हमला हुआ। जैसे-तैसे मीनाक्षी ट्रेन में बैठक खंडवा पहुंचे। पाठक बताते हैं कि राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि जीवन का एक काम पूरा होने जा रहा है। वैसे 4 फरवरी को मध्य भारत के पुराने कारसेवक वहां भगवान राम के दर्शन के लिए पहुंचने वाले है।
पकड़े जाए तो चुप रहना
कारसेवक अखिलेश तिवारी बताते हैं कि 1990 से लेकर 1992 के बीच मुझे चार बार कारसेवक बनकर अयोध्या जानने का मौका मिला। वे कहते हैं कि तीसरी बार कारसेवक बनकर गए थे। ट्रेन से लखनऊ जाने से पहले ही चार लोगों को पकड़ लिया, क्योंकि उन्होंने धोती पहन रखी थी। उसके बाद हम लोगों ने तय किया और ट्रैक सूट पहन लिया। मैंने अपने साथियों को बोला कि कोई कुछ भी पूछे तो खुदको खिलाड़ी बताना।
लखनऊ स्टेशन पर उतरते ही पुलिस वालों ने पूछा तो हमने कहा कि क्रिश्चियन कालेज से आए हैं। खिलाड़ी होने की वजह से वहां मैच खेलने गए। फिर उन्होंने जाने दिया। थोड़ी देर बाद कुछ लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया। उन्होंने पूछने पर हमारी जानकारी दी। तीन किमी दूर आने के बाद पुलिस दोबारा आई और बोली कि वाहन में बैठो। हमें तुम्हारे बारे में जानकारी मिल गई है। दस दिन लखनऊ के दुबग्गा सब्जी मंडी में अस्थायी जेल बनाई थी।
वहां दस दिन रखने के बाद हमारी इंदौर की टिकट करवाई। चूंकि तीन बार हम सफल नहीं हो पाए थे तो दिसंबर 1992 में गुप्त वाहिनी से जो कारसेवक गए थे। उन्हें कई बातों का विशेष ध्यान देने को बोला गया था। वैसे लोकमान्य नगर से 50 लोग कारसेवक के रूप में गए थे। इन्हें अलग-अलग समूह में रखा गया। सबको यह हिदायत दी गई कि कोई भी पकड़ा जाए तो किससे कुछ नहीं कहना है। चुप रहना होगा।
न ही अपने साथियों के बारे में बताना है। उस दौरान मेरी उम्र 30 साल रही। युवा होने से लोगों में काफी जज्बा था। हिंदुत्व की भावनाएं लोगों में जमकर भरी हुई थी। तब अशोक सिंघल और राजकुमार पांडे से मिले। फिर 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाने में भी गुप्त वाहिनी ने अपना योगदान दिया। जैसे-तैसे वहां से निकले। पुलिस ने पकड़कर हमें लखनऊ की जेल में दो सप्ताह में रखा।