इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि Indore News। गर्मी में हरे-भरे रहने वाले अंजन प्रजाति के पेड़ सालों से मालवा-निमाड़ की पहचान रहे हैं, लेकिन लापरवाही की वजह से इनकी संख्या लगातार कम होने लगी है। कुछ समय पहले तक यहां के जंगलों से गुजरने के दौरान काफी मात्रा में अंजन के पेड़ दिखते थे। इससे यह अंदाजा हो जाता है कि मालवा-निमाड़ की सीमा शुरू हो गई है। मगर अवैध कटाई और धीमी गति से पेड़ों के बढ़ने की वजह से अंजन प्रजाति लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। खतरे में पड़ी इस प्रजाति को अब बचाने की कवायद वन विभाग ने शुरू हो चुकी है। यहां तक कि नर्सरी में प्रजाति को बचाने के लिए शोध चला रहा है। साथ ही नर्सरी में पौधों को बड़ा करने पर ध्यान दिया जा रहा है।
जानकारों के मुताबिक अंजन की पत्तियां चौपाए जानवरों के लिए चारे का काम करती है। खासकर गाय और बकरी के लिए काफी उपयोगी है। अंजन की पत्तियां इन पशुओं के दुध की क्षमता बढ़ाती है। उधर इकोसिस्टम में अंजन की अहम भूमिका है, क्योंकि यह भी काफी मात्रा में ऑक्सीजन उत्पन्न करता है।
28 लाख पेड़ जीवित
अंजन को बचाने के लिए भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आइआइएफएम) ने मालवा-निमाड़ के नौ-दस जिलों को चिन्हित किया है। जहां इनकी संख्या बढ़ाने पर विचार हो रहा है। वन विभाग के मुताबिक चालीस साल पहले अंजन के 60 से 70 लाख पेड़ हुआ करते थे। मगर इन दिनों अवैध कटाई की वजह से महज 28-30 लाख पेड़ बचे है। अब इंदौर, धार, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, नीमच, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, देवास में इन्हें रोपने की योजना बनाई है। आइआइएफएम इन दिनों किसानों को प्रशिक्षण देकर अंजन के पौधे तैयार करने में मदद कर रहा है।
फसलों के लिए उचित वातावरण
अंजन के इन पेड़ को खेत के किनारे यानी मेड़ों पर लगाते हैं। पेड़ को लगाने से गर्म-ठंडी हवाओं से फसलों को होने वाले नुकसान से काफी हद तक बचाया व कम किया जा सकता है। अंजन की पत्तियां पशुओं के साथ ही इकोसिस्टम के लिए भी उपयोगी है। जानकारों के मुताबिक पत्तियां मिट्टी में सड़कर हुमस का निर्माण करती है जो मृदा कार्बन की मात्रा को बढ़ाने में योगदान करती है।
झेल सकता है 48 डिग्री तापमान
इकोसिस्टम के लिए उपयोगी अंजन भरी गर्मी में भी हरा-भरा रहता है। यह 48 डिग्री से लेकर माइनस पांच डिग्री तापमान तक झेल सकता है। पूरी तरह पनपने के बाद अंजन को बेहद कम पानी की आवश्यकता होती है। इस वजह से ही निमाड़ और आस-पास इन्हें रोपने पर अधिक जोर दिया जाता है। जानकारों की माने तो पांच साल में अंजन पूर्ण रूप से विकसित होता है। करीब 15 साल में पेड़ की ऊचाई करीब 8-10 मीटर तक होती है। यहां तक पेड़ की उम्र करीब 100 साल की रहती है।
दो साल तक बढ़ा रहे नर्सरी में
लुप्त हो रही अंजन प्रजाति को बचाने का काम वन विभाग ने शुरू कर दिया है। वन विभाग के शोध व अनुसंधान केंद्र ने नर्सरियों में कम से कम दो साल तक इन पौधों को बढ़ाने और विकसित करने का फैसला लिया है। ताकि जंगल में रोपने पर आसानी से पनप सके। खंडवा रोड स्थित नर्सरी प्रभारी डिप्टी रेंजर संतोष सेंगर ने बताया कि इंदौर, देवास, उज्जैन, बड़गोदा सहित अन्य नर्सरियों में एक-डेढ़ लाख पौधे तैयार किए जा रहे हैं। तीन से चार फीट वाले पौधे जंगल में लगाएंगे।
20 फीसद पौधे लगाना जरूरी
अंजन की स्थिति को देखकर वन विभाग इनके संरक्षण और बचाने में लगा है। विभाग ने हर साल होने वाले पौधारोपण में 20 फीसद पौधे अंजन के रोपने पर जोर दिया है। खासकर मालवा-निमाड़ वनक्षेत्र व आस-पास के इलाकों में। 2017 से सागौन-शीशम, बरगद के अलावा अंजन प्रजाति के पौधों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
ये है विशेषताएं
- अंजन प्रजाति के पेड़ की अपनी विशेषताएं है। इसकी पत्तियां यानी पाला काफी पौष्टिक रहती है, जिसे पशु व मवेशियों के लिए चारे में उपयोग आती है। पत्तियों में आयरन और विटामिन की मात्रा सबसे ज्यादा है, जो गाय, भैंस, बकरी सहित अन्य दुधारु जानवरों में दुध की क्षमता को 40 फीसद तक बढ़ने का काम करती है।
- सागौन व शीशम की तरह अंजन की लकड़ी काफी टिकाऊ व मजबूत होती है। फर्नीचर की बजाए अंजन की लकड़ी से घरेलु सामान व कृषि के औजार भी बनाए जाते है। चकला, बेलन, मथनी तो बनती ही है। साथ ही हसिया आदि के हत्थे में लकड़ी का इस्तेमाल होता है।
- ठीक से पनपने के बाद अंजन को काफी कम मात्रा में पानी लगता है। इसकी वजह से वह गर्मियों में भी हरा-भरा रहता है। ग्रामीण इसकी पत्तियां यानी पाला तोड़कर चारे के रूप में इस्तेमाल करते है। इतना ही नहीं आदिवासी पत्तियों को तोड़कर 40 से 50 रुपये बोरी मूल्य पर बेचते है। अधिकांश ग्रामीणों की जीविका का भी अंजन साधन बन चुका है।
जंगलों में बढ़ाएंगे पेड़
जंगलों में अंजन प्रजाति धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अब नर्सरी में कम से कम डेढ़ से दो साल पौधे तैयार करेंगे। उसके बाद जंगलों में इन्हें रोपा जाएगा। विभाग पेड़ों की संख्या बढ़ाने में लगा है। यहां तक किसानों को भी अंजन लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- रेखा काले, रेंजर, वन शोध व अनुसंधान केंद्र, इंदौर वृत्त