Anhad Nad Column Indore: ईश्वर शर्मा, इंदौर (नईदुनिया)। भारत अर्थात परंपराओं का देश। वह राष्ट्र, जहां जनमानस ने अपनी परंपराओं को इतना सुदृढ़ किया है कि देवत्व को मनुष्य में उतार लिया है। तभी तो गांवों में लोग अपनी पीड़ाएं किसी निराकार ब्रह्म को नहीं बल्कि पत्नी-बच्चों वाले भगवान शिव को कहते हैं। यह फोटो ऐसी ही परंपरा की कहानी कहता है। यह कोई झाड़ियों में उलझा कपड़ा भर नहीं, बल्कि ग्राम्य देवी को कांकड़ पर ओढ़ाई गई चुनर है। जब भी कोई बरात गांव से जाती या गांव में आती है, तो लोग गांव की देवी को अपनी बेटी मानकर उसे वस्त्र पहनाते हैं। कितनी मर्मस्पर्शी है यह परंपरा, जो मिट्टी, पत्थर, पेड़ से बने गांव को अपनी बेटी मानती है। बस यही है भारत...इन्हीं परंपराओं से है भारत। प्रकृति, मिट्टी, वृक्ष, नदी और गांव से यह प्रेम न हो तो भारत फिर भारत नहीं।
कोई छोटी-सी हां की स्वीकृति कितना बड़ा काम कर देती है, इसका उदाहरण बीते सप्ताह देखने को मिला। हुआ यूं कि एक निर्धन किंतु स्वाभिमानी हिंदू परिवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी से सहायता मांगी। कोरोना ने इस परिवार का रोजगार छीन लिया था और बाद के वर्षों में इस परिवार पर कर्ज चढ़ गया। यह परिवार धन नहीं बल्कि रोजगार चाहता था, ताकि मेहनत करके स्वाभिमान से जीवन भी चलाए और कर्ज भी उतार ले। एक प्रतिष्ठित चिकित्सक डा. कात्यायन मिश्र ने रोजगार शुरू करवाने की स्वीकृति दी। इस एक हां से राशि एकत्रित होनी शुरू हुई और अंततः बीते सप्ताह उस परिवार को दुकान दिलाकर काम शुरू हो गया। इस तरह एक चिकित्सक की हां ने एक परिवार का स्वाभिमान बचा लिया।
एक वह दौर था, जब प्रधानमंत्री के हाथों प्रमाण पत्र केवल पद्म सम्मान या साहस, शौर्य से भरे विलक्षण कार्य करने पर ही मिलते थे। किंतु अब प्रधानमंत्री से प्रमाण पत्र पाना सहज-सुलभ और आसान हो गया है। इसका प्रमाण बीते दिनों मिला। हुआ यूं कि हाल ही में स्कूली बच्चों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से शिक्षा का संकल्प दिलवाया गया। यह आनलाइन हुआ और इसकी लिंक स्कूलों के जरिए बच्चों तक पहुंची। छुट्टियों में मग्न बच्चों ने बड़े चाव से प्रधानमंत्री के सवालों के आनलाइन जवाब दिए और सही उत्तर देने पर पुरस्कार स्वरूप प्रमाण पत्र पाया। अब यह प्रमाण पत्र फ्रेम होकर इंदौर के कई घरों में पूरे गर्व से भित्ति पर लग रहे हैं। बच्चों से कनेक्ट करना कोई प्रधानमंत्री से सीखे।
गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं और बच्चे छोटी-बड़ी स्किल्स सीख रहे हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश स्किल्स जीवन में कभी काम नहीं आतीं। स्केटिंग कौन जीवन में रोज-रोज कर पाता है? कैलीग्राफी का जीवन में बहुत ज्यादा प्रभाव कहां होता है? किंतु इंदौर में मानव विकास चेतना केंद्र ने ऐसी अनोखी स्किल्स सिखाने का बीड़ा उठाया है, जो बच्चों को जीवनभर काम आएंगी। इंदौर से करीब 20 किलोमीटर दूर कम्पेल के पास बसा है यह अनूठा केंद्र, जिसमें बच्चों को यह सिखाया जा रहा है कि जीवन कैसे जिया जाए। खुश रहने के लिए क्या करें। तैरना, गाय पालना, ब्रेड बनाना, दोस्ती करना और उसे निभाना, अच्छा व्यवहार करना तथा सबसे बढ़कर जीवन को खुलकर जीना। बच्चे अपने घर से दूर इस केंद्र में ही रहकर जीवन का यह ककहरा सीख रहे हैं।