Anhad Nad Column Indore: ईश्वर शर्मा, इंदौर (नईदुनिया)। इन दिनों देश-दुनिया में सेवा और पुण्य करके दिखाने का बहुत शोर-शराबा है। यह वह दौर है, जब मरीज को एक केला देकर दस लोग फोटो खिंचवाते हैं और बेशर्मी से उसका शोर मचाते हैं। ऐसे घटाटोप शोर के बीच कुछ लोग हैं, जो इतनी खामोशी से एक नदी को जिंदा कर रहे हैं कि उनके लिए शोर मचाने को जी चाहता है। ये लोग हैं धर्मनगरी उज्जैन के कुछ दीवाने, जो मोक्षदायिनी शिप्रा की सहयोगी नदी चंद्रभागा को पुनर्जीवित करने में जुटे हैं। आधुनिक भगीरथ की तरह सोनू गेहलोत और उनके साथ आ खड़े हुए सहयोगी चिलचिलाती धूप में सूखी नदी को इतना खोद चुके हैं कि जमीन से तरपन (पानी) निकलने लगा है। अब यहां पानी देख कछुए भी आने लगे हैं, परिंदे मंडराने लगे हैं। मानो वे कह रहे हों, चंद्रभागा के साथ-साथ हमारे भी भाग जगा दिए।
इंदौर की देह पर एक काला तिल है, जो इसके सौंदर्य, कीर्ति और यश को अपयश में बदल देता है। यह है यहां का बिगड़ा हुआ यातायात। ऐसे में कुछ दीवाने हैं, जो इसे सुधारने के लिए सड़क पर उतरते रहते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं राजकुमार जैन। उम्र में वरिष्ठ हैं, लेकिन काम करते समय सिर पर वरिष्ठता का बोझ लादे नहीं फिरते। इन्होंने इंदौर के चौराहों पर ट्रैफिक बेहतर करने की कवायद में कई छोटे-मोटे काम किए। नतीजतन, इनकी आवाज जनता तक तो पहुंची ही, पुलिस विभाग तक भी पहुंच गई। यातायात पुलिस ने इन्हें सम्मानित किया है और अब इन्हीं के जैसे कई और लोगों को सेवा के लिए तैयार करने की तैयारी है।
एक किस्सा राजनीति का। इस वर्ष के अंत में प्रदेश में चुनाव हैं और यह देखते हुए हर दूसरे घर में एक भावी विधायक ने जन्म ले लिया है। कुकुरमुत्तों की तरह उग आए युवा हिरदै सम्राटों ने पट्ठों को इकट्ठा कर यहां-वहां छोटे-मोटे कार्यक्रम करने शुरू कर दिए हैं। इसी बीच एक नेता के कुछ उत्साही पट्ठों ने फेसबुक पर भिया के समर्थन में लिखना शुरू कर दिया। यहां तक भी ठीक था कि पोस्ट लिखते और जंगल में नाचे मोर को कोई न देखता। मगर ये इतने उतावले निकले कि इन्होंने प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक के अकाउंट को टैग करना शुरू कर दिया। जब इन उत्साहीलालों के इस कारनामे की भनक भिया को लगी तो भिया सन्नाटे में आ गए। कुछ देर तो संपट नी बैठी कि खुश हो जाएं या दुखी। समझ में आई तब पट्ठों को रोका। मगर तब तक तो पट्ठे कई तीर छोड़ चुके थे, जो न जाने कहां-कहां जा लगे होंगे।
इंसानी जिंदगी अगर एक कहानी है, तो इंसान की देह उस कहानी की किताब है। इस किताब को लिखती है मां, जब वह हमें जन्म देती है। अगर कोई लेखक अपनी पहली किताब का विमोचन मां के हाथों करवाए, वह भी दिवंगत हो चुकी मां के हाथों, तो इससे मर्मस्पर्शी बात और क्या होगी? देवास जिले के सोनकच्छ में रहने वाले लेखक भूपेन्द्र भारतीय ने यही किया है। जिस देह को मां ने अपने स्नेह, प्रेम और ममता से रचा था, उस देह ने जब शब्द साधकर इक किताब लिखी, तो वह किताब दिवंगत मां के चित्र के सामने अपने बच्चों को बैठाकर समर्पित कर दी गई। फिर लेखक किताब लेकर मां के पैतृक गांव पहुंचा और गांव की कांकड़ पर ग्राम-देवता को जैसे नारियल चढ़ाते हैं, उसी तरह मातृ-देवी को पुस्तक चढ़ाई। अहा, विमोचन, अहा नमन।