Anhad Naad Column Indore: ईश्वर शर्मा, नईदुनिया इंदौर। चित्र में दिख रहे इन बुजुर्ग की जीवटता को गौर से देखिए। देह अस्पताल के बिस्तर पर है, नाक पर आक्सीजन मास्क चढ़ा है, हाथों में सलाइन की सुई लगी है और नसों में बह रही हैं दवाइयां। कुल मिलाकर देह अपनी सुध में नहीं। इसके बावजूद इनके हाथ में श्रीमद्भगवद् गीता है। कोई मनुष्य इससे अधिक चैतन्य क्या होगा कि देह कृषकाय हुई जाती हो, किंतु अंतरमन पूरी चैतन्यता के साथ जाग्रत हो हरिनाम जप रहा हो। यह एक भक्त की जीवटता है, जिन्होंने अस्पताल को मंदिर और रुग्ण देह को आनंद का साधन बना लिया। जो लोग चित्र को देख यह सोच रहे हैं कि ये बुजुर्ग बीमार हुए तो इन्हें भगवान की याद आई, वे गलत हैं। ये जिस जिजीविषा के साथ गीता बांच रहे हैं, वह मृत्यु का शोकगीत नहीं बल्कि जीवन के परिपक्व होने का पारायण है।
हर कालखंड में कोई न कोई मीरा, कोई न कोई राधा होती रहती हैं। कन्हैया के प्रति इसी अनन्य प्रेम ने भारत में धर्म को अनुप्राणित कर रखा है। इंदौर में भी ऐसी ही एक राधा हैं, जो कृष्णभक्ति में डूबी हैं। शासकीय स्वास्थ्य महकमे में पदस्थ चंद्रशेखर शर्मा और उनकी धर्मपत्नी राधा शर्मा में कान्हा के प्रति ऐसा लाड़ का भाव है कि वे बीते 32 वर्षों से हर पल कान्हा की मूर्ति को अपने साथ रखते हैं। तीर्थ जाएं तो साथ, आफिस जाएं तो साथ, कार में बैठे तो साथ, सामाजिक आयोजन में जाएं तो साथ। ये पति-पत्नी कान्हा और राधा को लाला और लाली कहते हैं तथा बच्चे की तरह स्ट्रालर में घुमाते हैं। भजन गाते-गाते दोनों के कंठ में भक्ति-काल उतर आया है। वे जहां जाते हैं, मानो वृंदावन साथ लिए चलते हैं।
वाट्सएप को वाट्सएप विश्वविद्यालय कहकर कोसने वालों की कमी नहीं, किंतु यह किसी की जान भी बचा सकता है, यह बीते दिनों पता चला। हुआ यूं कि एक समारोह में एक व्यक्ति को बेचैनी हुई और वह जमीन पर लेट गया। यह देख वहां उपस्थित लोग घबरा गए। तभी एक युवा भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा। लक्षण देख उसे पक्का हो गया कि यह ह्रदयाघात है। वह तुरंत हरकत में आया और सीपीआर देने लगा। इसमें ह्रदयाघात आने पर मरीज की छाती को एक तय पैटर्न से दबाया जाता है ताकि उसका ह्रदय फिर धड़कने लगे। छह-सात मिनट बाद मरीज का ह्रदयाघात टल गया। जब उपस्थित लोगों ने युवक से पूछा कि क्या आप डाक्टर हैं? तब उसने कहा - वाट्सएप पर वीडियो देखा था कि सीपीआर कैसे देते हैं, बस उसी से सीखा। यह घटना बताती है कि अच्छा सीखने की आदत हो, तो वाट्सएप भी सिखा सकता है।
पुराने दौर के शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच गुरु-शिष्य का प्रगाढ़ रिश्ता इतना आत्मीय होता था कि विद्यार्थियों का जीवन संवार देता था। वर्तमान दौर में भले गुरु-शिष्य का रिश्ता छीनता जा रहा हो, किंतु अब भी कुछ ऐसे वाकये हो जाते हैं, जो पुराने दौर की याद दिला देते हैं। हाल ही में ऐसा कुछ हुआ। एक शिक्षिका ने मुंबई से अपने पुराने विद्यार्थियों को फोन कर कहा- बच्चो, मैं तीन दिन के लिए आ रही हूं, क्या तुम मिल सकोगे? शिक्षिका का इतना कहना था कि पुराने विद्यार्थियों में खुशी और आनंद की एक बालसुलभ लहर दौड़ गई। सब दोस्तों ने बात की और पक्का किया कि फलां तारीख, फलां जगह मैडम से मिलेंगे और उन्हें प्रणाम करेंगे। शिक्षिका की इस पहल ने विद्यार्थियों में नई ऊर्जा का संचार कर दिया। वैसे वयोश्रेष्ठ शिक्षिका में इन बच्चों से मिलकर ऊर्जा का कितना संचार हुआ होगा, इसकी तो कल्पना ही की जा सकती।