Anhad Naad Column Indore: ईश्वर शर्मा, इंदौर (नईदुनिया)। हर गली, हर मोहल्ला और हर मन इन दिनों गणेशोत्सव के उल्लास और आनंद में रस-सिक्त है। क्या गांव, क्या शहर...सब अपने-अपने सामर्थ्य की भक्ति में जुटे हैं। बड़े लोग पांडालों के प्रबंध में व्यस्त-न्यस्त हैं तो बच्चे उन प्रतियोगिताओं में जुटे हैं, जो गणपति बप्पा की मूर्ति के सामने रची जा रही हैं। कोई नन्हा बच्चा तुलसीदास बना है, तो कोई बालक श्रीकृष्ण बनकर दुर्योधन को चेतावनी देती रामधारीसिंह दिनकर की कविता रश्मिरथी गा रहा है। कोई बालिका राधा बनकर अपने नृत्य से संस्कृति को अपने मन में उतार रही है, तो कोई किशोरी भक्ति-गीत गाकर स्वयं को आनंद-रस में डुबो रही है। यह सब देखकर यदि कोई सबसे अधिक प्रसन्न है, तो वे हैं अंतरिक्ष में भ्रमण-विचरण कर रहे हमारे ऋषि-मुनि। देह से वे सब इस धरती से भले जा चुके, किंतु उनकी आत्माएं अब भी यहीं, इसी भारतभूमि में धड़कती हैं। वे ही तो हैं, जो इन नन्हें बच्चों में रूप धरकर धरा पर पुन: उतर आए हैं। भारत की महान संस्कृति तमाम धूर्तों-मुगलों के आक्रमण के बावजूद इसीलिए बची रही क्योंकि हमने कभी अपनी श्रुति परंपरा को विगलित नहीं होने दिया। इन बच्चों की मीठी मुस्कान मुगलों की तमाम कट्टरता पर भारी है। इनमें ईश्वर मुस्कुराते हैं।
संसद में भाजपा के रमेश बिधूड़ी ने जहरीली जुबान से जो विष-वमन किया, उस पर कांग्रेस हमलावर है। होना भी चाहिए। क्यों न हो। आखिर कांग्रेस वर्ष 2014 के बाद से है ही हमलावर। अब हमला करना ही उसकी नियति है। इसके बिन उसका गुजारा नहीं। किंतु जनता को यह समझना होगा कि रमेश बिधूड़ी कोई आदमी नहीं बल्कि एक प्रवृत्ति है, जो राजनीति के दलदल में धंसे-फंसे हर दल में है। बात भाजपा-कांग्रेस-सपा-बसपा की नहीं, बल्कि सबकी है। इंदौर में शनिवार को एक कार्यक्रम में आए कांग्रेस के बड़के नेता कमल नाथ ने भी ऐसा ही बर्ताव किया, जो स्वीकार्य नहीं। उनके कार्यक्रम से कुछ लोगों को धक्के मारकर बाहर निकालने की बात की गई। यह वही बिधूड़ी प्रवृत्ति है, जो रह-रहकर हर नेता के तन-मन में जाग उठती है। कबीरदास जी आज होते तो बिधूड़ी और नाथ को देखकर लिख डालते- साधो...ये लोकतंत्र के पट्ठे, एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।
यह किस्सा शिवराज सिंह चौहान से जुड़ा है। उन शिवराज से नहीं जो मुख्यमंत्री हैं, बल्कि उन शिवराज से जो मुख्यमंत्री होते हुए भी कोमल ह्रदय वाले सरल-सहज व्यक्ति हैं। हुआ यूं कि ओंकारेश्वर में आदिगुरु शंकराचार्य की विराट प्रतिमा के अनावरण समारोह के दौरान शिवराज संतों से मिल-जुल रहे थे। वे सुरक्षा गार्ड से लेकर तमाम आइएएस-आइपीएस से घिरे हुए थे। एक तरफ संत अवधेशानंद गिरि तो दूसरी तरफ अन्य बड़े संत। तमाम वीवीआइपी से घिरे शिवराज को अचानक एक शब्द सुनाई दिया...मामाजी! उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो कुछ दूरी पर मैले-कुचेले कपड़ों में एक लड़का खड़ा था। वह टेंट लगाने वाली टीम में था। उसकी ओर देख शिवराज बोले- हां भांजे, बोलो। उस लड़के ने हाथ में थामा एक केला शिवराज की ओर आगे बढ़ाया और बोला- मामाजी, आप सुबे से लगे हो, थक गए होंगे, लो केला खा लेना। शिवराज उस युवक की मासूमियत पर मुस्कुरा दिए और पांच-छह कदम चलकर उस तक पहुंचे, उससे केला लिया और सिर पर प्यार से हाथ रख दिया। लगता है कि शिवराज की उपलब्धि मुख्यमंत्री होने से ज्यादा जन का मामा हो जाना है।
बीते दिनों लेखिका समीक्षा तैलंग ने ऐसा कुछ देखा कि उनका मन प्रसन्न हो गया। दरअसल, वे पहले दुबई में रहती थीं और अब भारत में हैं। उन्हें दुबई में रहने वाले मराठी परिवार के सागर कुलकर्णी ने एक वीडियो भेजा, जिसमें कुलकर्णी का घर हूबहू श्रृंगेरी पीठ (आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक) की तरह बना हुआ दिख रहा है। बहुत विशाल घर को पूरी तरह श्रृंगेरी पीठ जैसा बना दिया है। यह केवल साज-सज्जा नहीं है, बल्कि घर का कोना-कोना पूरी तरह बदल दिया है। उसे देख ऐसा लगता है मानो आचार्य शंकर ने पांचवीं पीठ दुबई में स्थापित कर दी हो। कुलकर्णी भारतीय संस्कृति के आनंद में इतने गहरे डूबे हैं कि प्रतिवर्ष अपने घर को भारत के एक प्रसिद्ध मंदिर या मठ के रूप में बदल देते हैं और दुबई के लोग उनके घर को श्रद्धापूर्वक देखते पहुंचते हैं। हमारी संस्कृति हजारों वर्षों से यूं ही नहीं मुस्कुरा रही है।