Anhad Naad Column Indore: ईश्वर शर्मा, इंदौर (नईदुनिया)। विक्रम-बेताल की कथा तो हम सभी बेतालों को भली और भांति पता है, किंतु यदि यह कहानी हूबहू किसी सरकारी विभाग में घटित हो जाए तो? बीते दिनों यही हुआ। मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग में एक बड़के बेताल यानी नए-नए पदस्थ हुए अधिकारी ने अपने विक्रम यानी अधीनस्थ से कहा- विक्रम, जरा कि पिछले वाले साहब के जमाने में फलां महोत्सव कितने बजट में आयोजित होता था? सवाल सुनकर विक्रम सुन्न-घुट्ट हो गया। बोले भी तो कयं बोले? यदि बोल दे कि बजट का सत्य अलग था और फाइल में लगे बिल का सत्य अलग, तो ये नया वाला बेताल तरीका पूछ लेगा, और अगर चुप रहे तो ये बेताल जीने न देगा। अब सुनने में आया है कि संस्कृति विभाग का विक्रम भी खुश है और बेताल भी।
कोई साहित्यकार यदि गजलों का भी शौकीन हो तो सोने पर सुहागा।...और अगर इस सुहागे को पुरानी गजलों का जखीरा हाथ लग जाए, तो फिर जगजीत सिंह ही उसका मालिक है। बीते दिनों यही हुआ। एक साहित्यकार ने राखी पर घर आई बहन को पुराने फोटो दिखाने के लिए संदूक खोला तो उसमें जगजीत सिंह के गजल एलबम मरासिम की कैसेट निकल आई। पुरानी कैसेट क्या निकली, लाखों अरमान निकल आए। उन्होंने फोटो का एलबम तो बहन को पकड़ाया और खुद दिनभर पुरानी टेपरिकार्डर पर कैसेट को अल्टी-पल्टी कर गजलें सुनते रहे। कोई गजल दोबारा सुननी होती, तो कैसेट के पहिए में कलम फंसाकर उसे बड़ी उस्तादी से उल्टा घुमाते और फिर सुनते। बावरे ने कुछ यूं अपने मरासिम ताजा किए।
एक जमाना था जब इंदौर में रिकार्डिंग स्टूडियो बहुतै कम थे। एक था भंवरकुआं पर सतप्रकाशन स्टूडियो। इंदौर का पहला निजी व्यवस्थित रिकार्डिंग स्टूडियो। तीस साल पहले यहां कमाल हुआ था। तब यहां जापान और अमेरिका के तकनीशियन किसी रिकार्डिंग के लिए आए हुए थे। उस डबिंग टीम में एक इंदौरी महानुभाव भी थे। वे बताते हैं कि रिकार्डिंग शुरू करने से पहले अमेरिकी व जापानी तकनीशियन को कुछ कमी महसूस हुई। मगर इतना समय और पैसा तो था नहीं कि वापस अमेरिका जाकर बाकी इंस्ट्रूमेंट ले आएं। ऐसे में दोनों तकनीशियनों ने इंदौरी इस्टाइल में जुगाड़ कर डाला और जो कमी थी, उसे यहीं के कुछ टूटे-फूटे कनस्तरों की आवाज से पूरा कर लिया। रिकार्डिंग पूरी हुई और सबने सुनी, तो जुगाड़ की आवाज को कोई पकड़ नहीं पाया। तब लोगों ने कहा- इंदौर ने दोनों बांगडुओं को भी जुगाड़ सिखा ही दिया।
इन दिनों दुनियाभर के 20 बड़े और ठसक वाले चौधरी देश नई दिल्ली में जी-20 का शिखर सम्मेलन कर रहे हैं। चौधरियों के इस सम्मेलन की चौधराहट इस बार भारत के कने है। अध्यक्षता की इसी कवायद में भारत ने बीते एक वर्ष में नगर-दर-नगर छुटपुट और बड़कुट आयोजन किए। विदेशी मेहमां कभी इंदौर की स्वच्छता को देख गए, तो कभी ऋषिकेश में गंगा तट पर आरती कर धन्य भए। मगर कुछ कुंठित यह भी पूछ रहे हैं कि इसमें भला हमारा क्या भला? ऐसा पूछने वालों को लोग खुद ही जवाब भी दे रहे हैं। बीते सप्ताह की बात है। इंदौर के एक चाय ठिये पर एक सिल्डे-बावले ने यही प्रश्न पूछ लिया। उत्तर में उसे क्या-क्या और कैसे-कैसे तर्क सुनने को मिले होंगे, आप इसकी कल्पना ही कर सकते हैं। चाय के साथ गटके गए उस बौद्धिक डोज के बाद अब वह खुद दूसरों को जी-20 के फायदे बताता फिर रहा है।