यादगार है एफिल टावर के सामने लावणी की प्रस्तुति
इंदौर। महाराष्ट्र की लावणी का आकर्षण अब देश की सरहदों को लांघ गया है। भारत महोत्सव के दौरान प
By
Edited By:
Publish Date: Wed, 08 Oct 2014 02:53:20 AM (IST)
Updated Date: Wed, 08 Oct 2014 02:53:20 AM (IST)
इंदौर। महाराष्ट्र की लावणी का आकर्षण अब देश की सरहदों को लांघ गया है। भारत महोत्सव के दौरान पेरिस के एफिल टॉवर के सामने घुंघरूओं की झंकार और ढोलकी के घोड़े की टाप सी निकलती आवाज पर तालियों की उस गूंज को मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकूंगी। यह कहना है 'लावणी शमशेर' के खिताब से नवाजी जा चुकी ख्यात कलाकार माया जाधव का। लावणी को सात समंदर पार ले जाने का श्रेय माया को जाता है।
मराठी सोशल ग्रुप के तीन दिनी फूड फेस्टिवल 'जत्रा' में परंपरागत लावणी और भारूड़, गोंधळ की प्रस्तुति देने आ रही माया जाधव ने सिटी लाइव से विशेष बातचीत में कहा कि लावणी का आकर्षण अब ग्लोबल हो गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहुंच के कारण लावणी को लेकर आमजनों के मन में जो गलतफहमियां थी, वे दूर हुई हैं। माया के मुताबिक अब तो भले घर की लड़कियां ना सिर्फ लावणी देखने आती हैं, बल्कि सीखती भी हैं। यूनिवर्सिटी के यूथ फेस्टिवल में लावणी की प्रस्तुतियां होती हैं, जो कि सम्मानजनक बात है।
नारी शक्ति का प्रतीक है लावणी
बेहद सुशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखने वाली माया स्वयं मुंबई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हैं। उनके मुताबिक उस जमाने में जब पुरुष लंबे समय तक युद्घ के मैदान में घर से दूर रहते थे, तब लावणी उनके मनोरंजन का साधन थी। लावणी को श्रृंगार का प्रतीक माना गया है, जबकि यह नारी शक्ति का प्रतीक है। लावणी अदाकारा की भाव भंगिमाएं, चपलता और पोशाक इस बात की गवाह है। पर्दे के पीछे की हकीकत बहुत कम लोगों को मालूम होती है कि एक लावणी अदाकारा के प्रदर्शन पर 25-30 लोगों के परिवार का चूल्हा जलता है।