भोपाल के बाद इंदौर बीआरटीएस भी टूटेगा, मुख्यमंत्री ने कहा सरकार कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी
इंदौर बीआरटीएस को इंजीनियर श्रीलाल प्रसाद निराला की टीम ने डिजाइन किया था। यह परियोजना वर्ष 2007 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत शुरू की गई थी। शुरुआत में इस परियोजना की लागत 90 करोड़ रुपये थी जो धीरे-धीरे बढ़कर करीब 350 रुपये तक पहुंच गई थी।
By Kuldeep Bhawsar
Publish Date: Thu, 21 Nov 2024 07:21:32 PM (IST)
Updated Date: Thu, 21 Nov 2024 09:55:14 PM (IST)
इंदौर के बीआरटीएस को हटाए जाने की बात चल रही है। HighLights
- सीएम ने कहा बीआरटीएस को लेकर मिल रही थीं शिकायतें।
- सरकार का कहना है इसे तोड़ने पर यातायात में सुधार होगा।
- मप्र हाईकोर्ट की मुख्य बेंच जबलपुर में इस पर निर्णय होगा।
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। भोपाल का बस रैपीड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (बीआरटीएस) तोड़ने के बाद सरकार ने इंदौर बीआरटीएस भी तोड़ने की घोषणा कर दी है। 11.45 किमी लंबा बीआरटीएस वर्ष 2013 में 350 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ था। सरकार का दावा है कि बीआरटीएस तोड़ने के बाद शहर में यातायात सुगम होगा।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने गुरुवार को इंदौर में कहा कि बीआरटीएस को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। शहर के विकास को लेकर हुई पिछली दो बैठकों में जनप्रतिनिधियों ने भी यह बात उठाई थी। अब हमें जो भी तरीका लगाना पडे वह लगाएंगे और इंदौर के बीआरटीएस को हटाएंगे।
सरकार न्यायालय में भी अपना पक्ष रखेगी। चौराहों पर जहां यातायात की समस्या आ रही है वहा ब्रिज बनाकर समाधान तलाशेंगे। जब ब्रिज बनाएंगे तो बीआरटीएस तो हटाना ही पड़ेगा।
शहर का यातायात सुगम हो, आवागमन की सुविधा हो यह हम सबकी जिम्मेदारी है। इन सब बातों को ध्यान रखते हुए यह निर्णय लिया है। इंदौर बीआरटीएस को लेकर हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में दो जनहित याचिकाएं चल रही थीं, जिन्हें 18 नवंबर को ही मुख्य खंडपीठ ट्रांसफर किया गया है।
इंदौर बीआरटीएस
- इंदौर में बीआरटीएस की लंबाई करीब साढ़े 11 किमी है। यह निरंजनपुर से शुरू होकर राजीव गांधी प्रतिमा तक जाता है।
- 10 मई 2013 को बीआरटीएस पर वाहनों का आवागमन शुरू होने के साथ ही समस्याएं और विवाद शुरू हो गया था।
- वर्ष 2013 में ही सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने बीआरटीएस प्रोजेक्ट को चुनौती देते हुए मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की थी।
- याचिका वर्तमान में लंबित है। इसमें कहा है कि बीआरटीएस में 43 प्रतिशत सड़क दो प्रतिशत यात्रियों के लिए आरक्षित कर दी गई है।
- 98 प्रतिशत यात्रियों को 57 प्रतिशत सड़क ही उपयोग के लिए मिल पा रही है। इसमें पैदल और साइकिल यात्री भी शामिल हैं। याचिका में बीआरटीएस को तोड़ने के आदेश देने की मांग की गई है।
- निरंजनपुर से शुरू होकर राजीव गांधी प्रतिमा तक जाता है बीआरटीएस
- 11.45 किमी लंबा है बीआरटीएस
- 21 बस स्टैंड बीआरटीएस पर
- 14 क्रास चौराहे आते हैं
- 500-500 मीटर पर एक बस स्टैंड बनाया गया है
हाई कोर्ट ने बनाई थी पांच सदस्यीय समिति
- इंदौर में 23 सितंबर 2024 को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने वर्तमान परिस्थिति में बीआरटीएस की उपयोगिता और व्यावहारिकता को जांचने के लिए पांच विशेषज्ञों की समिति गठित करने का आदेश दिया था।
- इस समिति को आठ सप्ताह में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करना थी। मामले में सुनवाई 22 नवंबर को होना थी।
- इसके पहले ही 18 नवंबर को हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इन याचिकाओं को जबलपुर ट्रांसफर कर दिया था।इंदौर बीआरटीएस की वर्तमान परिदृश्य में उपयोगिता और व्यवहारिकता जांचने के लिए हाई कोर्ट निर्णय करेगा।
यह ऐतिहासिक निर्णय है
- तुलसीराम सिलावट, कैबिनेट मंत्री ने कहा कि बीआरटीएस को हटाने का निर्णय ऐतिहासिक और साहसिक है। यह इंदौर की जनता को राहत देने वाला निर्णय है। इंदौर के बारे में कहा जाता है कि यह शहर जब भी करता है एतिहासिक ही करता है। इस निर्णय से यह एक बार फिर साबित हुआ है। मैं शहर की जनता की तरफ से मुख्यमंत्री को इस निर्णय के लिए धन्यवाद देता हूं।
- कैलाश विजयवर्गीय, नगरीय प्रशासन मंत्री मप्र शासन कहते हैं कि यातायात के हिसाब से जरूरी थाबीआरटीएस को लेकर यह निर्णय लेना जरूरी था। मैं शुरू से ही बीआरटीएस का विरोध कर रहा था। शहर में यातायात लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में बीआरटीएस को हटाने का निर्णय सही है। यातायात की व्यवस्था सुधारने के लिए ऐसे निर्णय जरूरी हैं।
- सुमित्रा महाजन, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष कहती हैं कि इंदौर में बीआरटीएस प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक चल रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधियों ने इसे तोड़ने का निर्णय लिया है तो कुछ सोच-समझकर ही लिया होगा, लेकिन इतना जरूर है कि बीआरटीएस पर चल रही बसों से विद्यार्थियों और अन्य लोगों को बड़ी राहत है। एम्बुलेंसों को भी इसमें चलाने की अनुमति है। इससे मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने में मदद मिलती है।