World Health Day: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। जब हम अपने घरों में कैद थे, तब वो मैदान में थे। घंटों पीपीई किट पहनकर उन्होंने पाजिटिव ही नहीं, सामान्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजों का उपचार किया। इस दौरान न तो उन्होंने खुद की परवाह की और न ही अपने परिवार की। दिमाग में विचार भी आया, मगर उन्होंने इस विचार को सेवा से छोटा पाया। बात हो रही ही चिकित्सकों की, क्योंकि आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है और हमारे स्वास्थ्य को बेहतर रखने में चिकित्सक ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी हमारे जीवन में कितनी वैल्यू है, स्पष्ट हुआ मार्च 2020 में हर वर्ग के जीवन में दस्तक देने वाले कोरोना संक्रमण की शुरुआत के साथ। हर मोर्चा चिकित्सकों ने संभाला। जिनकी कोविड के मरीजों को संभालने और जांच करने में ड्यूटी लगी उन्होंने आठ से दस घंटे तक काम किया। घर पहुंचने के बाद ये अपने परिवार से नहीं मिलते थे। अलग कमरे में ठहरते थे और दूसरे दिन सुबह होते ही बाहर से अपने परिवार को बाय कर हास्पिटल आ जाते थे। इनके अलावा लोगों के स्वास्थ्य की चिंता स्वयंसेवक, एनसीसी कैडेट्स, पुलिस प्रशासन और समाजसेवियों ने की।
ड्यूटी के दौरान घर पर बच्चों से की दूर से बातः आइसीयू कोविड इंचार्ज डा. नीलिमा टंडन कहती हैं मां कोई भी हो, उसकी इच्छा घर पहुंचने के बाद अपने बच्चों को सीने से लगाने की रहती है। बच्चे भी यही चाहते हैं, लेकिन कोविड ने उनके घर का माहौल ही बदल दिया। सुबह से शाम तक आइसीयू में ड्यूटी करने के बाद जब घर पहुंचती थीं तो अपने बच्चों से दूरी बनाए रखती थीं। घर के चार कोनों पर परिवार की मौजूदगी रहती थी। आंखों के सामने आइसीयू में भर्ती मरीजों की ही तस्वीर रहती थी। पति से मिले हौसले से डा. टंडन अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकीं। जब माहौल सामान्य हो गया तब उन्होंने अधिकतर समय अपने बच्चों के साथ ही बिताया।
निजी जिंदगी गई थी सिमटः जीआरएमसी के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. विजय गर्ग बताते हैं कोविड ने उन्हें अपने बेटे से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया। शहर में जब कोरोना की शुरुआत हुई तब से लेकर अभी तक वे टीम के साथ काम कर रहे हैं। हास्पिटल में सुबह से रात कब हो जाती है पता ही नहीं चल पाता है। इनका एक साल का बेटा है, जिसे वे चाहकर भी घर लौटने के बाद अपनी गोद में नहीं ले पाते। कोविड के कारण डा. गर्ग की निजी जिंदगी सिमट सी गई है। वे कहते हैं हम भले ही डिप्रेशन में हों, मगर कोविड के पेशेंट को डिप्रेशन से दूर रखना हमारी जिम्मेदारी है। कई बार पीपीई किट घंटों पहनने से घुटन होने लगती है। वे कहते हैं इस दौर ने उन्हें हालातों के अनुसार खुद को ढालना सिखाया है।
दूसराें की चिंता कर निकले संक्रमण मेंः शहर की सामाजिक संस्थाओं का समर्पण इस कोरोना काल में निकलकर सामने आया है। सामाजिक संस्थाओं ने एक स्टेट से दूसरे स्टेट तक पहुंचने वाले मुसाफिरों को खुद के खर्चे पर खाना खिलाया। कुछ तो कालेज के विद्यार्थी मैदान में आए। उन्होंने दूसरों के स्वास्थ्य की चिंता कर अपनी पाकेट मनी खर्च की। पंजाब परिषद की प्रमिला मारवाह कहती हैं उन्होंने लॉकडाउन के दौरान एक माह तक शिविर चलाया। इसमें उन्होंने जरूरतमंदों को खुद के खर्चे से भोजन कराया। इस काम में ऋषि महाराज ने सहयोग दिया। शहर को जागरूक करने के लिए अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े स्वयंसेवक सड़कों पर रहे। वे अभी तक राहगीरों को मास्क की ताकत से रूबरू करा रहे हैं और दो गज की दूरी बनाए रखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।