ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। World Gauraiya Day: चौबीस मील प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ने वाली गौरैया हमसे रूठी हुई है। बढ़ते प्रदूषण और मोबाइल टावर के रेडियशन की वजह से वह न तो घर के आंगन में नजर आती है और न ही शहर में लगे पेड़ों पर बैठी दिखती है। अगर हमने बढ़ते प्रदूषण को रोकने की कोशिश नहीं की और पौधारोपण की ओर ध्यान नहीं दिया तो नई पीढ़ी को गौरैया सिर्फ किताबों में ही पढ़ने व देखने का मिलेगी। हमारे बुजुर्ग कहते हैं एक समय था, जब गौरैया की वजह से घर की छत पर गेंहू या दाल नहीं डाल पाते थे, क्योंकि वह दानों को चुंग जाती थीं। अब अन्न में शामिल खाद्य पदार्थों को खाने वाला कोई नहीं। गौरैया के चहचहाने पर पर्यावरण के स्वस्थ होने का अहसास मिलता था। अब भी वक्त है, अगर हम संभले तो फिर से गौरैया हमारे करीब आ सकती है। बहरहाल, आज हम अंतरराष्ट्रीय गौरैया दिवस मनाने जा रहे हैं, जिसकी थीम इस बार 'आइ लव स्पैरो तय की गई है। यह दिन हमें गौरैया को फिर से अपनी मुंडेर पर बुलाने के लिए संकल्पित करता है। विशेष दिन को ध्यान में रख 'नईदुनिया ने शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय के जूलाजी विभाग की शोधार्थी मीनू शर्मा से मुलाकात की। मीनू साल 2017 से पक्षियों पर शोध कर रही हैं। इस कार्य में उन्होंने गौरैया के हमारे पास की उपस्थिति व अनुपस्थिति पर भी काम किया। उनके शोध के अनुसार ग्वालियर में मार्च 2020 में ग्वालियर किला, सागरताल, जीवाजी यूनिवर्सिटी, इटालियन गार्डन और विनय नगर क्षेत्र में सिर्फ 185 गौरैया देखने को मिली। यह संख्या गौरैया को लेकर काफी चिंतनीय है। खास बात यह है मार्च 2020 में लाकडाउन के बाद इसकी संख्या इन्हीं क्षेत्रों में दोगुनी हो गई। हालांकि शहरी क्षेत्र में कम रही। इसका प्रमुख कारण बढ़ता प्रदूषण और घटती पेड़ों की संख्या निकलकर सामने आई है। शिवपुरी और भोपाल में गौरैया की संख्या अधिक है, क्योंकि इन दोनों शहरों में हरियाली की स्थिति ठीक है।
शोध में साल के अनुसार स्थिति
शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में 2018 -174गौरैयां
भोपाल के हिनोतियाआलम में -2020 गौरैया
भोपाल में 2019-2020 साल में-4000 गौरैया
ग्वालियर में 2020 साल में-185 गौरैया
पक्षियों के लिए बनाए कृत्रिम घौंसलेः रैंज आफिसर स्वाति पाठक का कहना है गौरैया के लिए कुछ शहरवासी काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस काम में थोड़ा सा बदलाव करना होगा। कुछ सदस्य गर्मी के मौसम में उनके लिए प्लास्टिक के सकोरों में पानी रख देते हैं। जबकि प्लास्टिक पानी को जहरीला कर देता है। प्लास्टिक को मजबूती देने के लिए खतरनाक कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। जब पानी अधिक दिनों तक प्लास्टिक के संपर्क में रहता है तो इसमें कैमिकल घुलना शुरू हो जाते हैं। गौरैया की सेहत को बरकरार रखने के लिए मिट्टी के सकोरे में ही पानी भरकर रखना चाहिए। घौंसला बनाने समय स्पेस का भी ध्यान रखना चाहिए।
अब जानते हैं गौरैया के बारे मेंः गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकम है। मध्यप्रदेश में अधिक देखने को मिलती है। भारत में इसकी तीन प्रजाती और विश्व में 43 प्रजातियां देखने को मिलती है। यह लगभग 15 सेंटिमीटर की होती है। यह शहरों के मुकाबले गांव में रहना अधिक पसंद करती हैं, क्योंकि यहां इनके ठहरने के लिए पेड़ अधिक रहते हैं और प्रदूषण भी न के बराबर होता है। इसका अधिकतम वजन 32 ग्राम तक होता है। गौरैया कीडे और अनाज खाकर अपना जीवनयापन करती हैं। हर साल पिछले दस सालों से 20 मार्च को उन लोगों को गौरैया पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है, जो पर्यावरण एवं गौरैया संरक्षण के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं।
गौरैया का करें संरक्षणः ब्रिटेन की रायल सोसायटी आफ बर्ड्स ने विश्व के विभिन्न देशों में किए गए अनुसंधान के आधार पर भारत और कई बडे देशों में गौरैया को रेड लिस्टेड कर दिया है। क्योंकि यह पक्षी अब पूर्ण रूप से विलुप्ति की कगार पर हैं। गौरैया संरक्षण के लिए स्वयं अपने घर के आंगन और छतों पर कृत्रिम घाैंसला बनाएं, जहा गौरैया खुद को सुरिक्षत महसूस करे। अपने घर के आसपास अधिक से अधिक पेड-पौधे लगाएं अपनी छत और आंगन में दाना-पानी रखें। जिससे इन्हें बचाया जा सकता है।