Vikram Samvat 2080: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। दुनिया के सभी समुदाय अपने-अपने रीति रिवाजों से नववर्ष मनाते है। नववर्ष नवीनता का प्रतीक होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सनातन धर्मावलंबयिों नववर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा को पूरे उल्लास के साथ मनाते हैं। नववर्ष व्यक्ति के जीवन में उत्साह और आशा का नया प्रकाश लेकर आता है। इस दिन व्यक्ति अपने नए लक्ष्य तय करता है। वहीं नव वर्ष पर बसंत भी अपने पूरे यौवन पर होता है और संकल्प लेकर उनको पूरा करने के लिए मनुष्य आगे बढ़ता है। माना जाता है कि इसी दिन ब्राह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन से आदिशक्ति की आराधना शुरु होती है। मराठी समाज द्वारा इस दिन परिवार व समाज की सुख-समृद्धि की गुढ़ी सजाई जाती है। इसके साथ ही सिंधी समाज चेटी चंड के रूप में नववर्ष मनाता है। सिंधी समाज के अनुसार इसी दिन भगवान झूलेलाल धरा पर अवतरित हुए थे। सिंधी समाज के लोग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। वहीं आंध्र प्रदेश में इसे उगादी के रूप में मनाया जाता है, साथ ही कई राज्यों में किसान नई फसल घरों में पहुंचने पर खुशी के तौर पर मनाते हैं। कश्मीरी पंड़ित भी इसे धूमधाम से मनाते हैं।
महाराष्ट्रीयन समाज भी नववर्ष चैत्र प्रतिपदा को मनाता है। इस दिन गुढ़ी सजाने का विशेष महत्व है। महाराष्ट्रीयन समाज कई धार्मिक संस्थाओं से जुड़े निशिकांत सुरंगे ने बताया कि इस दिन सुबह स्नान कर पांरपरिक वेशभूषा गुढ़ी सजाई जाती है। पांच फीट से ऊंची लकड़ी पर जरी की साड़ी बांधी जाती है। उस पर नीम के पुष्प की माला व शंकर के गाढ़ी चढ़ाई जाती है। उसके ऊपर चांदी व ताबे का गिलास रखा जाता है। सुख-समृद्धि की कमाना के साथ गुढ़ी का पूजन किया जाता है और इस दिन सार्वजनिक रूप से गुढ़ी का चल समारोह निकलता है।
सनातन धर्म, चैत्र प्रतिपदा को नवसंवत्सर के रूप में मनाता सनातन धर्म के लोग नवसंवत्सर चैत्र प्रतिपदा के दिन मनाते हैं। इस दिन कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं सूर्योदय पर भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना भी की जाती है। वहीं शहर मंे परंपरागगत रूप से जल बिहार में नव वर्ष मनाने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। लोग तड़के समूहिक रूप से भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हैं और माथे पर चंदन का टीका लगाकर एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।
चेटीचंड का त्योहार 22 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। चैत्र मास को सिंधी में चेट कहा जाता है तथा चांद को चंड, इसलिए चेटीचंड का अर्थ हुआ चैत्र का चांद। चेटीचंड को अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के तौर पर जाना जाता है। सिंधी समाज चैत्र प्रतिपदा को चेटी चंड के रूप में मनाता है। राजेश कुमार बाधवानी ने बताया कि इस दिन भगवान झूलेलाल पावन धरा पर अपने भक्तों को अत्याचार से मुक्त कराने के लिए अवतरित हुए थे। वहीं माधवगंज और दानाओली स्थित भगवान झूलेलाल मंदिर आकर्षक रूप में लाइटिंग की सजावट की गई है। चैत्री चंड पर भारतीय सिंधु सभा शोभायात्रा निकालेगी जो कि माधवगंज से शुरु होकर दानाओली पहुंचेगी।