नईदुनिया ग्वालियर संपादक वीरेंद्र तिवारी का रविवारीय काॅलम
अपने अंदर के माफिया को भी मारें
सरकार पूरे प्रदेश को माफिया मुक्त प्रदेश बनाने का अभियान चला रही है। अच्छा अभियान है, चलना चाहिए। और भी अच्छा होता यदि गैर राजनीतिक रहता। यानी किसी राजनीतिक पार्टी विशेष के लोगों को टारगेट न करके सभी बुरे लोगों पर बराबर से पुलिस और प्रशासन का डंडा चलता । हालांकि माफिया तो सरकारी सिस्टम में भी भरे पड़े हैं। हर दफ्तर में गौर से देखने पर कुछ ऐसे कर्मचारी और अधिकारी मिल जाएंगे जो अपने आप में उस पद से कहीं बड़े हो चुके हैं। प्रशासन, पुलिस या नगरीय निकाय। उस दफ्तर का हर बुरा काम उनके बिना नहीं हो पाता। एक समानांतर सिस्टम चलाते हैं। जड़े इतनी गहरी कि सालों से कोई डिगा नहीं पाया। यही सरकारी माफिया समाज के माफिया को खाद पानी देते हैं। ग्वालियर नहीं पूरे प्रदेश में इन सरकारी माफिया पर भी बुलडोजर चलाने की जरूरत है।
साहब, स्मार्ट सोच लाओ
शहर की सफाई व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। पहले ईको ग्रीन से ठीक से काम नहीं करा पाए। अब झाड़ू भी नहीं लग रहा है। गलियों में या तो जहां-तहां कचरे का ढेर बनाकर रख दिया जाता है या खाली प्लाट को ट्रीचिंग ग्राउंड बना दिया जाता है। आम आदमी क्या करे? कोई केंद्रीयकृत व्यवस्था ही नहीं जहां फोन करने पर उसकी पहली बार में ही सुनवाई हो सके। स्मार्ट सिटी का कंट्रोल कमांड सेंटर एलईडी हाउस बनकर रह गया है। क्या वहां हम एक कॉल सेंटर शुरु नहीं कर सकते जो सिर्फ सफाई व्यवस्था के लिए ही समर्पित हो? बहुत ही बेसिक बात को अधिकारी क्यों नहीं समझ पाते। निगम के पास शिकायत मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था ही नहीं है। किस क्षेत्र से कितनी शिकायतें आ रहीं हैं, उन शिकायतों पर कार्रवाई हो भी रही है या नहीं कोई डेटा नहीं ।
त्रिमूर्ति ठान ले तो अंचल का भला हो
अंचल के साथ इतना उम्दा संयोग पहले कभी नहीं बना होगा। यह पहला मौका है जब केंद्र और राज्य में दखल रखने वाले तीन तीन दिग्गज राजनेता ग्वालियर चंबल अंचल के हैं। यदि यह तीनों ही समन्वय बनाकर एक मंच पर आ गये तो देश के सर्वाधिक विकसित क्षेत्र में ग्वालियर चंबल का नाम शुमार हो सकता है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जिस कुशलता से अभी तक किसान आंदोलन को संभाला है उससे निश्चत तौर से उनका वजन मोदी मंत्रिमंडल में बढ़ा है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा पहले से ही उपमुख्यमंत्री जैसे ताकतवर हैं। अब सिंधिया का नाम फेहरिस्त में शामिल हो गया है। वह भी यदि उच्च सदन में बैठकर शहर की हवाई सेवा, रेल सेवा और विकास की बड़ी योजनाओं को मंजूर कराने के लिए दबाव बन लें तो 2021 में ही अंचल का भला हो सकता है। आमीन।
एक दूसरे को खड़ा करने का साल
कोरोना ने ऐसा कोहराम मचाया कि हमने साल भर हाथ धोते-धोते पूरे साल से ही हाथ धो लिया । हर क्षेत्र में खूब उठापटक हुई। जानें गईं, नौकरियां गईं, व्यापार चौपट हो गया, पारिवारिक ताने बाने बिगड़ गये । लेकिन नये साल का सूरज फिर उदय हो चुका है। मिलकर अपनी खोई हुई पहचान को फिर से पाने का साल है। बताने का है कि हमने महामारी के सामने घुटने नहीं टेके हैं। पिछले साल को सबक की तरह लें जो आगे की जिंदगी को आसान बनाएगा। उनको न भूलें जिन्होंने आपके लाकडाउन में रहते हुए भी आपकी जिंदगी को आसान बनाया । सफाईकर्मी, सब्जी वाले, दूध वाले। और भी अनगिनत । शकील आमी ने शायद ऐसी ही संघर्ष के दिनों के लिए लिखा होगा- हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है ।